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1971 ई० के उपरान्त भारत-पाक सम्बन्धों का विवेचन कीजिए। या भारत और पाकिस्तान के सम्बन्धों का वर्तमान सन्दर्भ में परीक्षण कीजिए। |
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Answer» 15 अगस्त, 1947 को भारत को अंग्रेजी दासता से मुक्ति प्राप्त हुई तथा दो स्वतन्त्र राष्ट्र ‘भारत व पाकिस्तान’ अस्तित्व में आये। पाकिस्तान का निर्माण साम्प्रदायिकता की पृष्ठभूमि पर आधारित था तथा अपने शैशवकाल से ही यह भारत व भारतीयों के प्रति घृणा व द्वेष की भावना रखने लगा। इस अमित्रतापूर्ण वातावरण के कारण भारत-पाक सम्बन्ध मधुर न रहे। पाकिस्तान द्वारा 1947 ई० में कश्मीर पर आक्रमण के बाद कश्मीर को भारत में विलय हो गया, परन्तु पाकिस्तान ने इस विलय को पूर्ण अवैधानिक बताते हुए अपना वैमनस्य सन् 1965 व सन् 1971 में भारत पर आक्रमण करके प्रदर्शित किया। 1971 ई० के युद्ध के बाद दोनों देशों ने सम्बन्ध सुधारने पर बल दिया तथा इसी कड़ी में 1972 ई० का शिमला समझौता और 1973 ई० का दिल्ली समझौता सम्पन्न हुआ। सन् 1974 ई० में पाकिस्तान ने बांग्लादेश को मान्यता प्रदान की। सन् 1974 व 1976 में भारत-पाक सम्बन्ध मधुर न रह सके। 1976 ई० में टूटे सम्बन्धों को फिर से जोड़ने का प्रयास किया गया। 1978 ई० में भारतीय विदेश मन्त्री की पाकिस्तान यात्रा तथा इसी कड़ी में पाकिस्तानी विदेश सलाहकार श्री आगाशाही को भारत-यात्रा ने सम्बन्धों को मधुर बनाने की दिशा में योगदान दिया। अप्रैल, 1978 में भारत-पाक सलाह जल सन्धि सम्पन्न हुई। यह एक प्रगतिशील व सराहनीय कदम बताया गया। भारत ने पाकिस्तान के प्रति सदैव सहयोगपूर्ण रवैया अपनाया, परन्तु पाकिस्तान की नीति अनुकूल नहीं रही। पाकिस्तान अपनी सैन्य-शक्ति मात्र भारत के विरुद्ध प्रयोग करने का प्रयास करता रहा है। चीन व अमेरिका इस कार्य में पाकिस्तान की खुले हृदय से सहायता करते रहे। यद्यपि भारत व पाकिस्तान के मध्य वार्ताओं व यात्राओं को क्रम चला आ रहा है, परन्तु मतभेद पूर्णतया दूर नहीं हो सके हैं। सियाचीन विवाद अभी तक समाप्त नहीं हो पाया है। पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक के समय तक भारत-पाक सम्बन्ध तनावपूर्ण ही रहे। बार-बार कश्मीर विषय को उठाया जाता रहा। साथ ही पाकिस्तान ने प्रत्येक सम्भव तरीके से पंजाब में आतंकवाद को प्रोत्साहित किया। यद्यपि कई स्तरों पर राजनीतिक सम्बन्धों में सुधार हुआ। जिया उल हक कई बार भारत यात्रा पर आये। राजीव गाँधी ने भी उनसे कई बार भेंट की तथा सम्बन्ध सुधारे जाने पर बल दिया। जिया उल हक की मृत्यु के बाद नवम्बर, 1988 में श्रीमती बेनजीर भुट्टो के नेतृत्व में पाकिस्तान में लोकतन्त्रीय शासन-प्रणाली स्थापित हुई। परिवर्तित राजनीतिक परिस्थितियों में आशी बनी कि भारत-पाक सम्बन्ध सुधरेंगे और आपसी द्वेषभाव व वैमनस्य का वातावरण दूर होगा। दिसम्बर, 1988 के अन्तिम सप्ताह में इस्लामाबाद में हुए ‘दक्षेस (सार्क) सम्मेलन के समय दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों के बीच वार्ता हुई और 1 जनवरी, 1989 को दोनों देशों में तीन समझौते हुए पहले समझौते के अनुसार, भारत-पाक एक-दूसरे के परमाणु संयन्त्रों पर हमला नहीं करेंगे; दूसरा समझौता सांस्कृतिक आदान-प्रदान से सम्बन्धित है तथा तीसरे समझौते के द्वारा दोहरी कर-नीति को समाप्त करने की बात कही गयी। भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी की पाकिस्तानयात्रा इस दिशा में मील का पत्थर सिद्ध होगी, ऐसी आशा थी; किन्तु यह आशा निराधार सिद्ध हुई। पाकिस्तान भारत में उग्रवादी गतिविधियों को प्रोत्साहन देता रहा है। पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियों को भारी मात्रा में अस्त्र-शस्त्र दिये गये, उन्हें प्रशिक्षित किया गया तथा शरण भी दी गयी। इन सबसे भारत-पाक सम्बन्ध प्रभावित हुए। भारत में सत्ता परिवर्तन हुआ। प्रधानमन्त्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने दोनों देशों के सम्बन्ध मधुर बनाये रखने की इच्छा व्यक्त की, किन्तु पाकिस्तान द्वारा भारत की एकता व अखण्डता को आघात पहुंचाने के प्रयत्नों ने भारत-पाक सम्बन्धों में कटुता पैदा कर दी। पंजाब और कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों को पाकिस्तान खुलेआम बढ़ावा दे रहा है। सन् 1990 के मध्य मार्च तक पंजाब से लगी सीमा पर बड़ी संख्या में सैनिक तैनात थे, जिन्हें धीरे-धीरे जम्मू-कश्मीर मोर्चे पर फैला दिया गया। (उल्लेखनीय है कि 1971 ई० में इसी क्षेत्र में भयंकर टैंक युद्ध हुआ था।) पाकिस्तान में बेनजीर भुट्टो की सरकार परास्त हुई और नवाज शरीफ पाकिस्तान के नये प्रधानमन्त्री बने। उन्होंने भी वही पुरानी नीति अपनायी। 1990 ई० में गठित चन्द्रशेखर सरकार के काल में भी दोनों देशों के सम्बन्धों में कोई परिवर्तन नहीं आया। जून, 1991 में सत्ता में आयी श्री नरसिम्हाराव सरकार के काल में पाकिस्तान के साथ भारत के सम्बन्ध बद से बदतर हो गये। पाकिस्तान द्वारा कश्मीर समस्या का अन्तर्राष्ट्रीयकरण करना, कश्मीर के आतंकवादियों को सशस्त्र समर्थन देना तो जारी था ही, किन्तु जब 1993 ई० में हुए मुम्बई बम-काण्ड में उसका हाथ होने का पता चला तब पूरे विश्व के आगे उसका असली चेहरा सामने आ गया, यहाँ तक कि पाकिस्तान को आतंकवादी राज्य घोषित करने की माँग भी उठने लगी। 1999 ई० का वर्ष भारत-पाक सम्बन्धों की दृष्टि से बड़ा घटनापूर्ण रहा। प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 20-21 फरवरी को बस द्वारा दिल्ली से लाहौर तक शान्ति-यात्रा कर इस बसमार्ग का शुभारम्भ किया, किन्तु मई में कारगिल क्षेत्र में घुसपैठियों की आड़ में पाकिस्तानी फौज ने भारतीय क्षेत्र में कुछ जगह अनाधिकृत कब्जा कर लिया। भारतीय फौज ने अप्रतिम धैर्य, शौर्य और बलिदान द्वारा युद्ध कर कारगिल क्षेत्र मुक्त करा लिया। यह भारत की विजय और पाक की पराजय थी। पाकिस्तान में घटना-चक्र तेजी से बदल गया, वहाँ निर्वाचित सरकार का तख्ता पलटकर तथा प्रधानमन्त्री नवाज शरीफ को गिरफ्तार कर जनरल परवेज मुशर्रफ ने सैनिक तानाशाह के रूप में सत्ता सँभाल ली। उनके भारत विरोधी विचार सर्वविदित हैं। भारत चाहता था तथा अमेरिका सहित अनेक देश प्रयत्नशील थे कि भारत और पाकिस्तान के बीच शिखर वार्ता हो। अतः जुलाई, 2001 में आगरा में ‘वाजपेयी-मुशर्रफ शिखर सम्मेलन’ आयोजित हुआ। सम्मेलन में भारतीय प्रधानमन्त्री ने भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेद के सभी विषयों पर समग्र बातचीत के प्रयत्न किये, लेकिन मुशर्रफ कश्मीर को केन्द्रीय मुद्दा बतलाते हुए कश्मीर का ही राग अलापते रहे। भारत ने इस बात पर बल दिया कि ‘सीमा पार का आतंकवाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की जड़ है, लेकिन मुशर्रफ ने कश्मीर में पाक प्रायोजित आतंकवाद को स्वतन्त्रता संग्राम की संज्ञा दी। ऐसी स्थिति में 36 घण्टे की ‘कूटनीतिक बाजीगरी’ को असफल होना ही था। अन्त में मुशर्रफ को बिना किसी औपचारिक विदाई के भारत से लौटना पड़ा। इस असफल शिखर वार्ता के बाद पाक-प्रायोजित आतंकवाद ने उग्र रूप ग्रहण कर लिया। पहले तो श्रीनगर में जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हमला हुआ तथा इसके बाद 13 दिसम्बर, 2001 को लोकतन्त्र का हृदयस्थल संसद आतंकवादियों के हमले का निशाना बनी। इस हमले में संलग्न पाँचों आतंकवादी मारे गये। अब यह बात पूर्णतया स्पष्ट और प्रमाणित हो चुकी है कि ये पाँचों व्यक्ति पाकिस्तान के नागरिक और पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के निवासी थे। इस प्रकार हमले का पूरा दायित्व पाकिस्तान पर आता है। यह दुस्साहस की पराकाष्ठा थी। ऐसी स्थिति में भारत ने पाकिस्तान के विरुद्ध कूटनीतिक कार्यवाही करते हुए पाकिस्तान स्थित अपने उच्चायुक्त को वापस बुलाने का फैसला कर लिया। 1 जनवरी, 2002 से समझौता एक्सप्रेस ट्रेन व दिल्ली-लाहौर बस सेवा रद्द कर दी गयी तथा भारतीय वायुमण्डल पर पाक विमानों की आवाजाही पर रोक लगा दी गयी। इसके साथ ही भारत ने 20 आतंकवादियों की सूची पाकिस्तान को देते हुए माँग की कि पाकिस्तान द्वारा इन्हें भारत को सौंप दिया जाना चाहिए। ये ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी भारत में आतंकवादी कार्यवाही में प्रमुख भूमिका रही और अभी पाकिस्तान में रह रहे हैं। पाकिस्तान ने अमेरिकी दबाव के कारण आतंकवाद का मौखिक विरोध और कुछ आतंकवादी संगठनों को अवैध घोषित करने जैसी कुछ सतही कार्यवाहियाँ तो कीं, लेकिन वह इन आतंकवादियों को भारत को सौंपने के लिए तैयार नहीं है। जनवरी, 2002 से मार्च, 2003 तक का 15 महीने का समय भारत और पाक के बीच अत्यधिक तनावपूर्ण सम्बन्धों का रहा, दोनों देश युद्ध के कगार तक पहुँच गये। सितम्बर-अक्टूबर, 2003 में जम्मू-कश्मीर राज्य की विधानसभा के स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न हुए और अन्ततोगत्वा अप्रैल, 2003 में भारतीय नेतृत्व ने दोनों देशों के आपसी सम्बन्धों में गतिरोध को तोड़ने की पहल की। परन्तु इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला। 18 फरवरी, 2007 को आतंकवादियों ने समझौता एक्सप्रेस रेलगाड़ी में बम विस्फोट किया जिसमें लगभग 68 लोग मारे गए। इस कारण इस रेलगाड़ी का संचालन कुछ समय तक के लिए बन्द कर दिया गया। पुनः सन् 2008 में पाकिस्तानी आतंकवादियों ने मुम्बई पर हमला किया जिसमें लगभग 173 लोग मारे गए तथा लगभग 308 लोग घायल हुए। अनेक इमारतें तहस-नहस हो गयीं। विश्वप्रसिद्ध ताज होटल भी उनमें से एक है। इसी प्रकार की घटनाएँ समय-समय पर पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी करते रहते हैं जिस कारण से दोनों देशों के सम्बन्ध मधुर नहीं बन पाते हैं। अमेरिका और अन्य कुछ देश भी इस बात के लिए निरन्तर चेष्टा करते रहे हैं कि भारत और पाक के बीच वार्ता प्रारम्भ हो। पाकिस्तान सरकार ने अगस्त, 2011 में भारत को व्यापार में सबसे पसंदीदा देश (एम०एफ०एन०) का दर्जा देने पर सहमति जताकर कुछ सकारात्मक रुख दिखाया था। वर्तमान में नवाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हैं। भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने 27 मई, 2014 को उनसे मुलाकात करके पाकिस्तान के साथ शान्तिपूर्ण, मित्रवत् एवं सहयोगपूर्ण द्विपक्षीय सम्बन्ध बनाने की नीति के रूख को दोहराते हुए कहा कि भारतवर्ष पाकिस्तान के सभी लम्बित मुद्दों को सन् 1972 के शिमला समझौते के दायरे में सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध है। इस सन्दर्भ में श्री नरेन्द्र मोदी जी ने अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर शान्ति एवं सौहार्द तथा नियन्त्रण रेखा को सुनिश्चित करने के लिए आतंकवाद एवं हिंसा से मुक्त माहौल बनाने पर जोर दिया। हालाँकि पाकिस्तान के उच्चायुक्त ने हुर्रियत के नेताओं को बुलाकर भारत के समस्त कूटनीतिक प्रयासों पर पानी फेर दिया और 25 अगस्त, 2014 को इस्लामाबाद में होने वाली बातचीत के लिए भारत को विदेश सचिव की यात्रा रद्द करने के लिए मजबूर कर दिया। आज भी भारत अपनी शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की घोषित नीति के कारण पाकिस्तान के साथ सम्बन्ध सुधारने को तैयार है, लेकिन यह सम्बन्ध कश्मीर तथा देश की एकता व अखण्डता की कीमत पर सुधारने के लिए भारत का कोई विचार नहीं है। दोनों देशों के बीच सम्बन्ध सामान्य रखने के लिए पहले पाकिस्तान को भारत के अन्दरूनी मामलों में दखल देना बन्द करना होगा तथा भारत की एकता व अखण्डता के विरुद्ध साजिशें रचना बन्द करना होगा तब ही जाकर भारत के पाकिस्तान के बीच सम्बन्ध सामान्य हो सकते हैं। |
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