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Answer» आधुनिक भारतीय शिक्षा के लिए बौद्ध-शिक्षा की देन बौद्धकालीन भारतीय शिक्षा की कुछ मौलिक विशेषताएँ थीं, जिनके कारण इस शिक्षा-प्रणाली ने सम्पूर्ण भारतीय शिक्षा-व्यवस्था पर विशेष प्रभाव डाला। बौद्धकालीन शिक्षा प्रणाली एवं व्यवस्था के कुछ तत्त्व ऐसे थे जिनका अनुकरण आगामी भारतीय शिक्षा-व्यवस्था में भी किया जाता रहा तथा आज भी हमारी शिक्षा में उन्हें किसी-न-किसी रूप में देखा जा सकता है। इन तत्त्वों को बौद्धकालीन शिक्षा की आधुनिक भारतीय शिक्षा की देन माना जा सकता है। इन तत्त्वों या कारकों का सामान्य परिचय निम्नवर्णित है- ⦁ आधुनिक युर्ग में सब कहीं पाये जाने वाले सामान्य विद्यालय मूल रूप से बौद्धकालीन शिक्षा-प्रणाली की ही देन है, क्योंकि सर्वप्रथम बौद्धकाल में ही सामान्य विद्यालय स्थापित हुए थे। ⦁ वर्तमान समय में सार्वजनिक प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था है, इसे प्रारम्भ करने का श्रेय भी बौद्धकालीन शिक्षा-प्रणाली को ही था। ⦁ आधुनिक युग में स्त्री-शिक्षा को विशेष आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। इस अवधारणा को भी सर्वप्रथम बौद्धकालीन शिक्षा-प्रणाली में ही प्रस्तुत किया गया था; अतः इसे भी बौद्ध-शिक्षा की ही देन माना जाता है। ⦁ आधुनिक युग में छात्रों के सुचारु शारीरिक विकास के लिए विद्यालयों में खेल-कूद तथा शारीरिक व्यायाम की विशेष व्यवस्था की जाती है। इस व्यवस्था को भी सर्वप्रथम बौद्धकालीन शिक्षा-व्यवस्था में ही लागू किया गया था; अत: इसे उसी की देन माना जाता है। ⦁ वर्तमान समय में प्राविधिक तथा विज्ञान सम्बन्धी शिक्षा को विशेष महत्त्व दिया जाता है। इस प्रकार की शिक्षा का प्रचलन भी सर्वप्रथम बौद्धकाल में ही हुआ था; अतः वर्तमान शिक्षा के लिए यह बौद्धकालीन शिक्षा की ही देन माना जा सकता है। ⦁ बौद्धकालीन शिक्षा की एक अन्य सराहनीय देन है–शिक्षा के क्षेत्र में व्यावसायिक शिक्षा तथा लाभप्रद विषयों को सम्मिलित करना। आज भी इस वर्ग की शिक्षा को अति आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण माना जाता है। ⦁ आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में लौकिक तथा सामान्य विषयों के समावेश को विशेष प्राथमिकता दी जाती है। इस प्रचलन को भी बौद्धकाल में ही प्रारम्भ किया गया था। ⦁ बौद्धकालीन शिक्षा की एक देन शिक्षा के क्षेत्र में सामूहिक प्रणाली को अपनाना, शिक्षण के लिए। बहु-शिक्षक व्यवस्था को लागू करना भी है। आज भी इन व्यबस्थाओं को अपनाया जा रहा है। ⦁ बौद्धकालीन शिक्षा की एक देन शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न स्तरों की शिक्षा की अवधि को निर्धारित करना भी रही है। ⦁ आज प्रत्येक शिक्षण संस्था के सँभी नियम पूर्व-निर्धारित तथा निश्चित होते हैं। शिक्षण संस्थाओं में इस व्यवस्था को प्रारम्भ करने का श्रेय बौद्धकालीन शिक्षा को ही है; अत: इसे भी उसकी देन माना जा सकता है। ⦁ आज शिक्षा के क्षेत्र में अवसरों की समानता की अवधारणा को आवश्यक माना जा रहा है। मौलिक रूप से यह अवधारणा बौद्ध शिक्षा की ही देन है। ⦁ आज अधिकांश विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने वाले बालक अपने घरों में अपने परिवार के साथ ही रहते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में इस व्यवस्था को प्रारम्भ करने का श्रेय बौद्ध शिक्षा-प्रणाली को ही | है, अत: इस व्यवस्था को भी बौद्ध शिक्षा की देन ही स्वीकार किया जाता है।
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