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आधुनिक युग की मीरा:महादेवी वर्मा कथन की समिक्षा कीजिये ।​

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EXPLANATION:

ग़ौरतलब है कि महादेवी वर्मा ने सात साल की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। उनके काव्य का मूल स्वर दुख और पीड़ा है, क्योंकि उन्हें सुख के मुक़ाबले दुख ज़्यादा प्रिय रहा। ख़ास बात यह है कि उनकी रचनाओं में विषाद का वह भाव नहीं है, जो व्यक्ति को कुंठित कर देता है, बल्कि संयम और त्याग की प्रबल भावना है।

उन्होंने ख़ुद लिखा है, मां से पूजा और आरती के समय सुने सुर, तुलसी तथा मीरा आदि के गीत मुझे गीत रचना की प्रेरणा देते थे। मां से सुनी एक करुण कथा को मैंने प्राय: सौ छंदों में लिपिबद्ध किया था। पड़ोस की एक विधवा वधु के जीवन से प्रभावित होकर मैंने विधवा, अबला शीर्षकों से शब्द चित्र लिखे थे, जो उस समय की पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए थे। व्यक्तिगत दुख समष्टिगत गंभीर वेदना का रूप ग्रहण करने लगा। करुणा बाहुल होने के कारण बौद्ध साहित्य भी मुझे प्रिय रहा है।

उन्होंने एक आम विवाहिता का जीवन नहीं जिया। 1916 में उनका विवाह बरेली के पास नवाबगंज क़स्बे के निवासी वरुण नारायण वर्मा से हुआ। महादेवी वर्मा को विवाहित जीवन से विरक्ति थी, इसलिए पति से उनका कोई वैमनस्य नहीं था। वह एक संन्यासिनी का जीवन गुज़ारती थीं। उन्होंने पूरी ज़िंदगी सफ़ेद कपड़े पहने। वह तख़्त सोईं। कभी श्रृंगार नहीं किया। 1966 में पति की मौत के बाद वह स्थाई रूप से इलाहाबाद में रहने लगीं। 22 सितंबर, 1987 को प्रयाग में उनका निधन हुआ। बीसवीं सदी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार रहीं महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य में धुव्र तारे की तरह प्रकाशमान हैं।



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