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| 1. | ‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक के आधार पर कालिदास का चरित्र-चित्रण कीजिए | 
| Answer» कालिदास मोहन राकेश द्वारा रचित प्रसिद्ध ऐतिहासिक नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ का नायक है। उसको नाटककार ने निम्नलिखित विशेषताओं द्वारा मंडित करके प्रस्तुत किया है- 1. वंद्वग्रस्त कवि- कालिदास एक कवि है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषता उसका अंतर्वंद्व है। सबसे पहला अंतर्वंद्व मल्लिका के रूप में प्राप्त होता है। वह स्वयं सर्वहारा व अभावग्रस्त है। अपनी प्रेमिका मल्लिका के साथ घर बसाना चाहता है परंतु विपन्नता रास्ते में आ जाती है और उसके द्वंद्व सामने आ खड़ा होता है। दूसरा द्वंद्व उज्जयिनी जाकर कवि बनने या न बनने का है। उज्जयिनी से निमंत्रण आने पर यह दवंद्व और अधिक मुखरित हो उठता है। वह भाग कर जगदंबा के मंदिर में जा छिपता है। वह सोचता है क्या वह मल्लिका से ग्राम प्रांतर से, अपी जन्म-भूमि से दूर चला जाए। क्या इससे उसकी प्रेरणा तो न छिन जाएगी? क्या वह वहाँ जाकर साहित्य सर्जना कर सकेगा?’नई भूमि सुखा भी तो दे सकती है?-और उस जीवन की अपनी अपेक्षाएँ भी होंगी। फिर भी कई-कई आशंकाएं उठती हैं। मुझे हृदय में उत्साह का अनुभव नहीं होता…..’ इसी द्वंद्व के कारण वह काश्मीर जाता हुआ मल्लिका से मिलने नहीं आता। मिलने आता तो फिर क्या वह लौट पाता? संभवतः नहीं? अपनी स्थिति का स्पष्टीकरण करता हुआ वह कहता है-“मैं तब तुम से मिलने के लिए नहीं आया, क्योंकि भय था तुम्हारी आँखें मेरे अस्थिर मन को और अस्थिर कर देंगी। मैं उन से बचना चाहता था।’? 2. करुण हृदय- कालिदास के व्यक्तित्व में करुणा, कोमलता और सहृदयता है। यही कारण है कि नाटक के प्रारंभ में हम उसे हिरण के बच्चे के प्रति करुणा से भरा हुआ पाते हैं। वह घायल हिरण के बच्चे को गोद में लिए मल्लिका के घर में आता है। वह कहता है-“न जाने इसके रूई जैसे कोमल शरीर पर उससे बाण छोड़ते बना कैसे?” फिर हिरण-शावक से बातें करता हुआ कहता है-“हम जिएँगे हिरण शावक। जिएंगे न! एक बाण से आहत होकर हम प्राण नहीं देंगे। हमारा शरीर कोमल है तो क्या हुआ? हम पीड़ा सह सकते हैं………….” कालिदास हिरण-शावक और स्वयं में कुछ अंतर नही समझते ……….” हम सोएँगे? हाँ, हम थोड़ी देर सो लेंगे तो हमारी पीड़ा दूर हो जाएगी।” कालिदास के भीतर छिपी करुणा व कोमलता को मल्लिका भी अच्छी तरह जानती है। इसीलिए जब मातुल कालिदास के पीछे तलवार पर हाथ रखकर जाने को कहता है, तो उससे कहती है “ठहरो राजपुरुष! हिरण-शावक के लिए हठ-मत करो। तुम्हारे लिए प्रश्न अधिकार का है, उनके लिए संवेदना का। कालिदास निःशस्त्र होते हुए भी तुम्हारे शस्त्र की चिंता नहीं करेंगे।” 3. प्रेम-भावना- नाटककार ने कालिदास को एक प्रगाढ़ प्रेमी के रूप में दिखाया है। उसके हृदय में मल्लिका के लिए असीम व एकनिष्ठं प्रेम है। प्रेमपाश में बंधा होने के कारण ही वह उज्जयिनी नहीं जाना चाहता। मल्लिका उसे प्रेरित करके भेज तो देती है परंतु वहाँ जाकर भी वह ग्राम-प्रांतर में ही विचरण करने की कल्पना और मल्लिका की स्मृतियों में खोया रहता है। प्रियंगुमंजरी इस प्रेम की प्रगाढ़ता की गवाही देते हुए कहती है कि कालिदास ‘मेघदूत’ लिखते हुए उसे ही स्मरण किया करते थे। स्वयं कालिदास कहता है-“एक आकर्षण सदा मुझे इस सूत्र की ओर खींचता था जिसे तोड़ कर मैं यहाँ से गया था। यहाँ की एक-एक वस्तु में जो आत्मीयता थी वह यहाँ से जाकर मुझे कहीं नहीं मिली ………. और तुम्हारी आँखें। जाने के दिन तुम्हारी आँखों का जो रूप देखा था वह आज तक मेरी स्मृति में अंकित है।” कालिदास ने जो भी लिखा, मल्लिका के प्रेम को सामने रख कर ही लिखा “……….. मैंने जब-जब लिखने का प्रयत्न किया तुम्हारे और अपने जीवन के इतिहास को फिर-फिर दोहराया।” 4. राजकवि- कालिदास एक श्रेष्ठ कवि है परंतु उसे राजकवि बनने का अवसर दिया जाता है तो वह दुविधा में पड़ जाता है। उज्जयिनी में राजकवि के रूप में भी उसका जीवन वंव में रहता है। उसकी कवि-प्रतिभा का सहज और स्वाभाविक रूप दब जाता है। नाटककार बताना चाहता है कि इस प्रकार के राज्याश्रय में प्रायः साहित्यकारों की सहज प्रतिभा कुंठित हो जाती है। 5. प्रकृति-प्रेम- कालिदास मूलतः एक कवि रूप में चित्रित हुआ है। वह प्राकृतिक संपदा में विचरने वाला कवि है। उसकी रचनाएँ ऋतु संहार, मेघदूत आदि इसी प्रकृति-प्रेम की ओर संकेत करती हैं। कालिदास स्वयं स्वीकार करता है-“मैं अनुभव करता हूँ कि यह ग्राम-प्रांतर मेरी वास्तविक भूमि है। मैं कई सूत्रों से इस भूमि से जुड़ा हूँ। उन सूत्रों में तुम हो, यह आकाश और ये मेघ हैं, यहाँ की हरियाली है, हिरणों के बच्चे हैं, पशुपाल हैं।” 6. अहं एवं व्यक्ति-चेतना-मोहन राकेश के साहित्य के कई पात्रों में अहं और व्यक्ति-चेतना पाई जाती है। कालिदास भी अपवाद नहीं है। वह अहं की सजीव मूर्ति है। वह उज्जयिनी जाकर अपनी व्यक्तिवादी चेतना का अनुभव करता है। वह मल्लिका के सामने स्वीकार करता है-“मन में कहीं यह आशंका थी कि वह वातावरण मुझे छा लेगा और मेरे जीवन की दिशा बदल देगा और यह शंका निराधार नहीं थी।” इस प्रकार कालिदास का चरित्र प्रवृत्तियों की ओर संकेत करता है। | |