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आयोजन की सीमाएँ (Limitations of Planning) समझाइए ।

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प्रस्तावना : आयोजन यह एक वैकल्पिक प्रक्रिया है । आयोजन भविष्य के लिए तैयार किया जाता है । जो सामान्यतः अनिश्चितता पर निर्भर है । आयोजन के बिना दैनिक जीवन व्यवस्थित नहीं चल सकता । प्रत्येक व्यक्ति परिवार, समाज, नगर, राज्य एवं देश इत्यादि सभी के लिए आयोजन आवश्यक है । आयोजन का स्वीकार सर्वव्यापी है । इसके बावजूद भी आयोजन में कई मर्यादाएं रही हुई हैं । आयोजन की अनेकों मर्यादाएं, दोष बतलाए गए हैं । उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :

आयोजन की सीमाएँ :

(1) आयोजन के अनुसार कार्य न होने से आयोजन आवश्यक नहीं : आयोजन तैयार करने के पश्चात भी आयोजन अनुसार कार्य न होने से आयोजन बिन आवश्यक प्रवृत्ति है । आयोजन तैयार करने का खर्च इकाई के लाभ से अधिक होता है । कई बार तो आयोजन सम्पूर्णतः निष्फल हो जाता है ।

(2) आयोजन का आधार अनिश्चित है : आयोजन भूतकाल के अनुभव एवं भविष्य के अनुमान पर आधारित होता है । भविष्य के अनुमान निश्चित नहीं परन्तु अनिश्चित होते हैं । आयोजन अधिकाशत: अनिश्चितता पर निर्भर होता है । अत: आयोजन का आधार अनिश्चित है ।

(3) आयोजन अधिक खर्चीली एवं लंबी प्रक्रिया है : आयोजन तैयार करते समय अनेक सूचनाएँ, अभिप्राय एकत्रित करने पड़ते हैं । इनका विश्लेषण करना पड़ता है । ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर वैकल्पिक योजनाएँ तैयार की जाती हैं । इन सबके लिए अनुभवशील, कुशल व्यक्तियों की सलाह ली जाती है । जिसका खर्च बहुत अधिक होता है । आयोजन अनेक पहेलुओं से पसार होता है । अतः यह लम्बी प्रक्रिया है ।

(4) आयोजन से संचालन की प्रवृत्ति स्थिर बनती है : निर्धारित हेतु की सफलता हेतु कार्य की शुरूआत से पहले आयोजन तैयार । किया जाता है । राजकीय, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक कारणों से परिस्थिति में परिवर्तन होता है । परंतु संचालक आयोजन के अनुसार ही प्रवृत्ति करते हैं । आयोजन के विपरीत आंशिक प्रवृत्ति करने में स्वयं जोखिम नहीं उठाते ।

(5) बाह्य परिस्थिति की अनिश्चितता : वर्तमान में भविष्य के अनुमानों पर विचार विमर्श करके आयोजन की रचना की जाती है । आयोजन वर्तमान में तैयार अवश्य किया जाता है । लेकिन इसका उपयोग भविष्य में होता है । आयोजन तैयार करने से उपलब्ध साधनों का योग्य उपयोग किया जाता है । परंतु राज्यस्तर अथवा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की परिस्थितियों में परिवर्तन होने से आयोजन, असफलता के रास्ते पर चला जाता है । जैसे – पेट्रोल, डिज़ल के भाव में वृद्धि ।

(6) अपूर्ण (अधूरी) जानकारी : आयोजन के लिए योजनाएँ तैयार की जाती है । योजनाओं के लिए अनेक सभी प्रकार की जानकारियाँ प्राप्त की जाती हैं । जानकारियाँ अधूरी एवं अस्पष्ट होने से सही योजना तैयार नहीं होती इस आधार पर तैयार किया जाता । जैसे – भारत में क्रेडिट कार्य का उपयोग कम होता है । इसका यह कारण नहीं कि यह आवश्यक नहीं है । परन्तु इसके लिए एकत्रित जानकारियाँ अधूरी एवं अस्पष्ट होती है ।

(7) कर्मचारी की स्वतंत्रता पर अंकुश प्रहार : निश्चित हेतु को पूर्ण करने के लिए आयोजन तैयार किया जाता है । कर्मचारियों . को तैयार किए गए आयोजन के अनुसार अधिकारियों द्वारा आदेश दिया जाता है । इसके अनुसार ही कर्मचारी कार्य करते हैं । कुशल एवं अनुभवशील कर्मचारी मात्र कर्मचारी ही होता है । वह तैयार किए गए आयोजन के विपरीत कार्य नहीं कर सकता ।

(8) क्षतियुक्त पद्धति का उपयोग : आयोजन तैयार करते समय गणितीक पद्धतियाँ, आंकड़ाशास्त्रीय जानकारी एवं कम्प्यूटर का विशाल उपयोग होता है । इनके उपयोग में कई बार क्षतियुक्त निर्णय लेने से आयोजन में क्षतियुक्त योजनाओं की रचना की जाती है । जिससे आयोजन क्षतियुक्त बनता है । एक लेखक ने कहा है कि आयोजन परिवर्तन को अंकुश में रखने का श्रेष्ठ साधन है ।

(9) भविष्य के अनुमान सम्पूर्णत: सत्य नहीं होते : आयोजन भविष्य के लिए किया जाता है । भविष्य अनिश्चित होता है । अनिश्चित भविष्य के कारण आयोजन में तैयार की गई योजनाएँ निश्चित नहीं होती अर्थात् आयोजन का आधार ही अनिश्चित है । प्रत्येक क्षेत्र में आयोजन का महत्व बढ़ता ही जा रहा है । आयोजन से निर्धारित हेतु समयानुसार सफल होता है । आयोजन की कोई मर्यादा नहीं परन्तु आयोजन की रचना करने वाले व्यक्तियों में कुशलता का अभाव, अपूर्ण जानकारी, प्राप्त करने की इच्छा सलाहकार की सलाह सूचन का अभाव इन सभी कारणों से आयोजन त्रुटिओं का पात्र बना है ।

(10) आयोजन का अप्रचलित होना : आयोजन में सदैव अनिश्चितता रहती है । समय, संजोग अथवा इकाई को असर करनेवाले परिबलों को कारण से पूर्व निर्धारित आयोजन कई बार अप्रचलित बन जाता है, जिसके कारण से आयोजन असफल हो जाता है ।



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