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आयोजन की व्याख्या और इसकी विधि/प्रक्रिया समझाइए ।

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  • डॉ. बीली गोऐट्ज : ‘आयोजन का कार्य अर्थात् चयन का कार्य ।’
  • डॉ. ज्योर्ज टेरी : ‘कार्य की योजना अर्थात् परिणामों की पूर्व विचारणा, कार्य का अनुसरण करने की नीति, प्रक्रिया और उपयोग में ली जानेवाली पद्धति निश्चित करना ।’
  • डॉ. उर्विक डेविड : ‘आयोजन मुख्य रूप से ऐसी बौद्धिक प्रक्रिया है’ व्यवस्थित कार्य करने, इसके लिए पूर्व विचारणा करते है, और केवल अनुमानों के स्थान पर सचोट वास्तविकताओ पर कदम उठाये जाते हैं ।’
  • एम. एस. हर्ले के मतानुसार “आयोजन अर्थात् क्या करना है ? यह पहले से ही निश्चित करना इसमें उद्देश्य, नीति, कार्यवाहियाँ और कार्यक्रम के विविध विकल्पों की पसंदगी सम्मलित है ।”
  • हेनरी फोथोल के मतानुसार “कार्य का आयोजन करना अर्थात् परिणामों की पूर्ण विचारणा करना, कार्य करने की योग्य पद्धतियाँ निर्धारित करना ।”
  • डॉ. टेरी के मतानुसार “आयोजन अर्थात् योग्य परिणामों को प्राप्त करने के लिए वास्तविकता की पसंदगी करना । इसके
    लिए पूर्वानुमान द्वारा योग्य पद्धतियों की पसंदगी करना ।”
  • मेरी कुशिंग नाइल्स के मतानुसार “आयोजन अर्थात् निर्धारित उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए योग्य कार्यक्रम की पसंदगी करना । इसके आधार पर संचालकीय प्रक्रिया में उत्साह एवं तीव्र बनती है ।”

आयोजन प्रक्रिया के विविध पहेलू : आयोजन भविष्य के लिए वर्तमान में तैयार किया गया विशिष्ट स्वरूप है । आयोजन यह बौद्धिक प्रक्रिया है । इसकी निष्फलता इकाई के लिए हानिकारक है । अर्थात् आयोजन की प्रक्रिया निश्चित पहलूओं से प्रसार होनी चाहिए ।

आयोजन के पहलू निम्नलिखित हैं :

(1) उद्देश्य निश्चित करना : आयोजन प्रक्रिया का प्रथम पहलु उद्देश्य को निश्चित करना है । सर्वप्रथम किन उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए आयोजन करना है । इसका निश्चित होना आश्यक है । उद्देश्य निश्चित होने के बाद भविष्य में क्या करना है ? कैसे करना ? कब करना ? यह निश्चित होता है । निर्धारित हेतु व्यवस्थित एवं स्पष्ट तथा सुसंकलित होना चाहिए । कारण कि इस उद्देश्य के आधार पर अलग-अलग विभागों के उद्देश्य निश्चित किए जाते है ।

(2) आयोजन का आधार स्पष्ट करना : आयोजन की रचना वर्तमान के आधार पर नहीं परन्तु भविष्य के अनुमानों एवं भूतकाल के अनुभव पर आधारित है । आयोजन तैयार करते समय योग्य आधार स्पष्ट होना चाहिए जैसे भविष्य की परिस्थिति का अनुमान करना, भविष्य की परिस्थिति कैसी होगी उसका विचार करना, इसमें बाजार की स्थिति, विक्रय का प्रमाण वस्तु की कीमत इत्यादि है । आयोजन का आधार मुख्यतः तीन प्रकारों से रख सकते है :

  1. अंकुश बाहर के परिबल जैसे – सरकारी नीति, भावस्तर
  2. अर्ध अंकुशित परिबल जैसे शाजनीति, उत्पादन नीति
  3. अकुशित परिबल जैसे कंपनी के भविष्य सम्बन्धि विकास की योजना, बिक्री का प्रमाण ।

(3) सूचनाओं का एकत्रीकरण करना व वर्गीकरण व विश्लेषण करना : 

आयोजन का आधार निश्चित होने के बाद इन आधारों से सम्बन्धित सूचनाओं का एकत्रीकरण किया जाता है । सूचनाओं का एकत्रीकरण करते समय सूचनाओं का प्रमाण एवं आवश्यक सूचना की प्राप्ति आवश्यक है । जैसे कंपनी के भूतकाल की प्राप्ति आवश्यक है । जैसे कंपनी के भूतकाल का रिकोर्ड, वर्तमानपत्र, सरकारी प्रकाशन इत्यादि ।

आयोजन भविष्य के लिए तैयार किया जाता है । एकत्रित सूचनाएँ आवश्यक, अनावश्यक, उलझन पूर्ण एवं विस्तृत होता है । इंन सूचनाओं का पालन करने से भविष्य के अनुमानों पर स्पष्ट विचार नहीं किया जा सकता । अतः प्राप्त सूचनाओं का वर्गीकरण एवं विश्लेषण करने से अर्थघटन सम्भव बनता है । जिससे एकत्रित सूचना के बीच कार्यकारण का संबंध बढ़ता है ।

(4) वैकल्पिक योग्यता तैयार करना : आयोजन के लिए तैयार की गई योजनाओं का आधार सूचनाओं के वर्गीकरण एवं विश्लेषण के साथ-साथ वैकल्पिक योग्यता पर भी होता है । उद्देश्य निश्चित करने के लिए कई वैकल्पिक मार्ग पसंद किए जाते है । जिससे उद्देश्य की सफलता का मार्ग सरल बनता है । जैसे – अतिरिक्त पूँजी प्राप्त करने के लिए सामान्य अंश, प्रेफरन्स अंश, डिबेन्चर प्रकाशित करना इन तीनों में से कोई एक विकल्प पसंद किया जाता है ।

(5) विकल्पों पर विचार करना : आयोजन अर्थात् पसंदगी अनेकों विकल्पों में से योग्य विकल्प पसंद किया जाता है । जैसे लाभकारक, उत्पादकता ग्राहक संबंधी, नगद प्रवाह इत्यादि अनेक प्रकार से करनी पड़ती है । इसके लिए संसोधन लेख एवं सेमिनार के द्वारा बौद्धिक प्रक्रिया से ग्रहण कर सकते हैं ।

(6) योजना की पसंदगी : आयोजन यह अनिश्चितता को दूर करता है । इसके लिए विकल्पों की पसंदगी की जाती है । विचार करते समय गणितिक व आंकड़ाशास्त्र के उपयोग द्वारा संस्था कार्यात्मक संशोधन का कार्य करती है । अर्थात् कम्पनियाँ Operation Research द्वारा एक आदर्श योजना तैयार करती है । योग्य विकल्प की पसंदगी विकल्पों के अभ्यास में होती है ।

(7) गौण (सहायक) योजना का गठन व जाँच : योजना की पसंदगी करने के पश्चात इस योजना को सरलता से सफल बनाया जा सके इसलिए सहायक योजनाएँ बनाई जाती हैं । योजना तैयार करते समय इसकी छोटी से छोटी बातों पर भी विशेष गौर किया जाता है । इकाई में विविध विभाग या खाते हों तो प्रत्येक के लिए योजना का चयन किया जाता है ।

(8) गौण योजना का मूल्यांकन करना : आयोजन सतत सर्वव्यापी एवं बौद्धिक प्रक्रिया हो । आयोजन तैयार करते समय योजनाओं का विचार एवं चिंतन किया जाता है । यह विचार-विमर्श अलग-अलग पहेलुओं पर किया जाता है । अर्थात् Look & Leap देखो ओर आगे बढ़ो के सिद्धांत पर आधारित है । इसके लिए कंपनियाँ सलाहकारों की सहायता लेती है । जिससे सही निर्णय एवं नुकसान घटता है ।

सारांश : उपरोक्त चर्चा से यह निष्कर्ष निकलता है कि आयोजन एक प्रक्रिया है । इसे कई पहलूओं से प्रसार होना पड़ता है । यह बौद्धिक व्यायाम (कसरत) है । आयोजन में अनेको विकल्पों पर विचारणा करने के बाद ही योग्य विकल्प पसंद करके निश्चित योजनाएँ तैयार की जाती है । जिससे आयोजन के कारण लाभकारकता एवं उत्पादन में वृद्धि देखने को मिलती है ।



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