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आयोजन (Planning) का अर्थ एवं इसके लक्षण समझाइए ।

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आयोजन अर्थात भविष्य में क्या सिद्ध करना है व किस तरह ? इसके लिए विभिन्न विकल्पों की विचारणा करके उन विकल्पों की सूची में से श्रेष्ठ विकल्प अपनाने के लिए जो योजना तैयार किया जाये ।

लक्षण/विशेषताएँ (Characteristics) आयोजन के लक्षण निम्नलिखित है :

(1), आयोजन सर्वव्यापी है : प्रत्येक प्रकार की प्रवृत्ति में आयोजन करना अनिवार्य बनता है । चाहे वह राजकीय, धार्मिक, शैक्षणिक, या सामाजिक प्रवृत्ति हो, प्रत्येक इकाई के उच्च, मध्य एवं निम्न स्तर में आयोजन करना पड़ता है । इकाई का कद छोटा हो या बड़ा आयोजन करना ही पड़ता है । अतः आयोजन सर्वव्यापक है ।

(2) आयोजन संचालन का सर्वप्रथम कार्य है : संचालन प्रक्रिया का प्रारंभ आयोजन से ही होता है । इसके पश्चात ही अन्य – कार्य होते हैं । जब तक योजनाएँ नहीं बनती तब तक व्यवस्थातंत्र की रचना नहीं होती । आयोजन के साथ संचालन. के सभी कार्य सम्बन्ध रखते हैं ।

(3) आयोजन चैतन्य (वास्तविक) एवं बौद्धिक प्रक्रिया है : आयोजन द्वारा धंधाकीय इकाई के उद्देश्यों को सिद्ध करने के लिए विचार किया जाता है । आयोजन करते समय निर्धारित हेतु को लक्ष्य में रखा जाता है । तथा भविष्य के परिणामों पर विचार किया जाता है । आयोजन तैयार करते समय ग्राहक कर्मचारी, मुद्रा इत्यादि परिबलों पर होने वाली असरों को ध्यान में लिया जाता है ।

(4) आयोजन सतत प्रक्रिया है : इकाई की स्थापना के समय आयोजन किया जाता है । इसका अंत नहीं होता – उद्देश्य निर्धारित करने के बाद इसे पूर्ण करने के लिए आयोजन तैयार करना उद्देश्य पूर्ण होने के बाद पुनः उद्देश्य निर्धारित करना पुन: आयोजन तैयार किया जाता है । जब तक संचालन का कार्य अस्तित्व रखता है । तब तक आयोजन का कार्य सतत किया जाता है ।

(5) आयोजन परिवर्तनशील है : आयोजन तैयार करते समय भविष्य के आंतरिक एवं बाहरीय परिबलों में परिवर्तन होते रहते
हैं । जैसे विक्री बढ़ेगी तो उत्पादन बढ़ेगा, उत्पादन बढ़ेगा तो कच्चामाल अधिक खरीदना होगा । ऐसे परिवर्तनों के कारण आयोजन में भी परिवर्तन करना पड़ता है । अतः आयोजन परिवर्तनशील है ।

(6) आयोजन में निश्चयात्मक होती है : आयोजन में निश्चितता होनी चाहिए । आयोजन करते समय बुद्धिपूर्वक एवं भविष्य के निश्चित अनुमानों पर विचार किया जाता है । आयोजन मात्र स्वप्न एवं इच्छाओं की सूची नहीं है । आयोजन में एकत्रिक की गई सूचनाओं का निर्णय बुद्धिपूर्वक एवं निश्चिता के अनुसार किया जाता है ।

(7) आयोजन के लिए पूर्वानुमान अनिवार्य है : धंधे में भविष्य में क्या होगा ? भविष्य में क्या होने की सम्भावना है? इस पर धंधे के उद्देश्य की सफलता निर्भर करती है । इतना विचार करने के पश्चात ही आयोजन निर्धारित हो सकता है । हेनरी फेयोल ने भविष्य के पूर्वानुमान पर विचार करने के पश्चात ही भविष्य के विकास की रूपरेखा तैयार की है ।

(8) आयोजन का भविष्य के साथ संबंध है : आयोजन में भविष्य की प्रवृत्तियों पर वर्तमान में विचारणा की जाती है । भविष्य में क्या होगा ? इसके क्या परिणाम आएगे ? इसकी धंधे पर क्या असर होगी ? इसका आयोजन में विचार किया जाता है । अतः हेनरी फेयोल ने संचालन का प्रत्यक्ष कार्य आयोजन एवं पूर्वानुमानों को बतलाया है ।

(9) आयोजन विकल्पों की सूची है : आयोजन किसी भी क्षेत्र का हो उसमें विविध प्रकार की योजनाएँ होती हैं । इन योजनाओं के लिए विविध विकल्पों पर विचार किया जाता है । जैसे बिक्री घटेगी तो क्या होगा ? विक्री बढे तो क्या होगा ? और विक्री उत्पादन के जत्था के अनुरूप हो तो क्या होगा ? इस प्रकार के अनेक विकल्पों पर विचार किया जाता है । इनमें से आयोजन तैयार करने हेतु योग्य विकल्प पसंद किया जाता है । यह संचालकों के निर्णय शक्ति की कसौटी है ।

(10) आयोजन ध्येयलक्षी प्रवृत्ति है : आयोजन के द्वारा इकाई का हेतु निश्चित होता है । आयोजन के द्वारा विविध प्रवृत्तियों के लिए विविध योजनाएँ बनाई जाती हैं । आयोजन उद्देश्य की सफलता के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों की आगाही करता है । अतः आयोजन ध्येय लक्षी प्रवृत्ति है ।

(11) आयोजन में निर्णय प्रक्रिया आवश्यक है : आयोजन पर उद्देश्य की सफलता निर्भर करती है । आयोजन तैयार करते समय भविष्य में अनेकों अनुमानों पर विचार करने से विकल्पों की जानकारी होती है । इन विकल्पों में से योग्य विकल्प पसंद करने का निर्णय लिया जाता है । निर्णय का कार्य कठिन है । कारण कि इसे भविष्य में परिपालन करना होता है । उपसंहार : उपरोक्त लक्षणों से यह ज्ञात होता है कि आयोजन भविष्य के साथ सम्बन्ध रखता है । आयोजन संचालन का चावीरुप कार्य है । इसलिए आधुनिक समय में आयोजन कार्य पर विशेष ध्यान दिया जाता है ।



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