1.

About nehru tara ghar in hindi

Answer»



नेहरू ताराघर, मुंबई

ताराघर (अंग्रेज़ी में प्लेनेटेरियम) या तारामण्डल यानक्षत्रालय एक ऐसा भवन होता है जहाँ खगोलिकी व नाइट स्काई विषयक ज्ञानवर्धक व मनोरंजक कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते हैं। ताराघर की पहचान अक्सर उसकी विशाल गुंबदनुमा प्रोजेक्शन स्क्रीन होती है। भारत में ३० ताराघर हैं। इनमें से चार, जो क्रमशः मुंबई, नई दिल्ली, बंगलौर वइलाहाबाद में स्थित हैं, जवाहरलाल नेहरू के नाम से जाने जाते हैं। चार ताराघर बिड़ला घराने द्वारा पोषित हैं जोकोलकाता, चैन्नई, हैदराबाद व जयपुर में हैं। सितंबर १९६२ में प्रारंभ कोलकाता स्थित एम पी बिड़ला ताराघर देश का पहला ताराघर है।

परिचयसंपादित करें

ग्रहघर (PLANETARIUM) उस घर को कहते हैं जिसमें कृत्रिम रूप से ग्रहनक्षत्रों को दिखलाने का प्रबंध रहता है। इसकी गुंबजनुमा छत अर्धगोलाकार होती है, जिसे घ्वनिनिरोधक कर दिया जाता है। यही ग्रहनक्षत्रों के प्रकाशबिंबों के लिये पर्दे का काम करती है। इसके मध्य में बिजली से चलनेवाला एक प्रक्षेपक (PROJECTOR) पहिएदार गाड़ी पर स्थित रहता है। इसके चारों ओर दर्शकों के बैठने का प्रबंध रहता है। यद्यपि इसमें खगोल संबंधी कई गतिविधियाँ दिखलाई जाती हैं, तथापि इसका नाम ग्रहघर इसलिये पड़ा कि पहले पहल इसका प्रयोग ग्रहों की गतिविधि दिखलाने के लिये किया गया था।

कई शताब्दियों से सूर्यकेंद्रिक ग्रहगतियों को कृत्रिम रूप से दिखलाने का प्रयास किया जाता रहा है। 1682 ई. में हाइगेंज (HUYGENS) ने इस प्रकार का एक यंत्र बनाया था, जिसका नाम ओररी के अर्ल के नाम पर ओररी रखा गया था। 1913 ई. में ज़ायस ने इसका एक उत्कृष्ट नमूना तैयार किया, जो जर्मनी के म्युनिस संग्रहालय में विद्यमान है। इसमें गोलाकार दीवार में छोटे छोटे बल्बों से राशिचक्र की राशियाँ बनाई गई हैं। दर्शक को एक घूमते पिंजरे में बैठा दिया जाता है और उसे पृथ्वी की कक्षा में घुमाया जाता है। उसमें बने झरोखे से वह राशिचक्र को घूमते देखता है। इसके बाद डाक्टर बौअर्सफेल्ड (Bauersfeld) के सुझाव पर ज़ायस ने ही आधुनिक ग्रहघर का निर्माण किया।

इसका प्रक्षेपक ग्रहनक्षत्रों की विविध गतिविधियों को दिखलानेवाले उपकरणों से सुसज्जित रहता है। इसका आकार व्ययाम के उपकरण, डंबेल, की तरह हाता है। पहले पहल जो यंत्र बना था उसका मुख्य अक्ष अक्षांश एक पर स्थिर रखा गया था। अब जो यंत्र बनते हैं, उसके मुख्य अक्ष को स्वेच्छापूर्वक अपने स्थान के अक्षांश पर स्थिर किया जा सकता है। यह यंत्र बिजली की मोटर से चलता है, जिसमें दांतेदार चक्रों की सहायता से विभिन्न प्रकार की गतियाँ उत्पन्न की जा सकती हैं। आवश्यकता के अनुसार इसके प्रक्षेपक को विभिन्न दिशाओं में चलाया जा सकता है। इसकी शीघ्र और मंद गतियों को स्विचों से नियंत्रित किया जाता है। प्रक्षेपक में बिजली के बल्ब रहते हैं। ऊपर से यह फिल्म या तांबे के प्लेट से ढका रहता है, जिसमें छोटे बड़े सैकड़ों छेद रहते हैं। ये नक्षत्रों के सापेक्ष आकार के होते हैं तथा एक दूसरे से सापेक्ष दूरियों पर स्थित होते हैं। इनसे छिटककर जब बिजली का प्रकाश अर्धवृत्ताकार छत पर पड़ता है तब वास्तविक आकाश का दृश्य उपस्थित हो जाता है। आकाशगंगा को दिखाने के लिये निगेटिव फोटोग्राफ का प्रयोग किया जाता है। ग्रहों को दिखलाने के लिये एक विशेष प्रक्षेपक रहता है, जिसमें राशिचक्र की राशियाँ बनी रहती हैं। ग्रहों को दिखलाने के लिये प्रकाश को पृथ्वी की विरुद्ध दिशा में प्रक्षिप्त किया जाता है। ग्रहकक्षाओं एवं पृथ्वी की कक्षा द्वारा बने कोणों को सूक्ष्मता से दिखाया जाता है। दीर्घवृत्ताकार कक्षाओं के लिये उत्केंद्र वृत्तों का प्रयोग किया जाता है। चंद्रमा की कलाओं को दिखलाने के लिये प्रकाशनिरोधक का प्रयोग किया जाता है। विशेष ग्रहनक्षत्रों के प्रकाश को कम या अधिक दिखाने के लिये विशेष प्रक्षेपक लगे रहते हैं। नक्षत्रों की चमक स्वाभाविक की अपेक्षा अधिक दिखाई जाती है, जिससे सूर्य की चकाचौंध से आनेवाले दर्शकों को उन्हें पहचानने में कठिनाई न हो। सूर्य के प्रखर प्रकाश को दिखाना संभव नहीं। इससे लाभ ही होता है, क्योंकि सूर्य के साथ नक्षत्रों को भी देखा जा सकता है। रात्रि में नक्षत्रों में अधिक चमक दिखलाई देती है, किंतु जब सूर्य उदित हो जाता है तो उन्हें धूमिल दिखलाया जाता है। ग्रह नक्षत्रों के उदय या अस्त के समय क्षितिज से छिटकती किरणों का प्रकाश दिखलाई पड़ता है। क्षितिज के समीप ग्रह नक्षत्रों का प्रकाश मद्धिम दिखलाया जाता है, जिससे वातावरण का प्रभाव दिखलाई दे सके। ग्रह स्वाभाविक गतियों से कभी वक्र, कभी मार्गी गति से चलते दिखलाई पड़ते हैं। अयन गति को भी दिखलाने का प्रबंध रहता है।

यंत्र की गति को आवश्यकतानुसार मंद या तीव्र किया जा सकता है। दिन को पाँच सेकेंड से चार मिनट तक का दिखलाया जा सकता है। इस प्रकार ग्रह नक्षत्रों की जिन गतिविधियों का वास्तविक वेध करने के लिये सैकड़ों वर्षो के कठिन परिश्रम की आवश्यकता पड़ती है उन्हें एक डेढ़ घंटे में देखा जा सकता है। व्याख्याता के पास एक पृथक्‌ प्रक्षेपक रहता है, जिससे तीर के आकार का सूचक चिन्ह किसी भी स्थान पर प्रक्षिप्त करके वहाँ पर विद्यमान ग्रह नक्षत्रों की ओर ध्यान आकृष्ट किया जा सकता है और उनकी विशेषताएँ बतलाई जा सकती हैं। इस प्रकार ग्रहघर दृश्य विधि से ज्योतिष की शिक्षा देने का उत्तम साधन है।





Discussion

No Comment Found

Related InterviewSolutions