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‘औपनिवेशिक भारत में क्रिकेट नस्ल व धर्म के आधार पर संगठन था।’ इस कथन का विश्लेषण कीजिए।

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1721 ई० में कैम्बे में अंग्रेज जहाजियों द्वारा पहली बार भारत में क्रिकेट खेला गया। 1792 ई० में कलकत्ता (कोलकाता) में पहला क्रिकेट क्लब स्थापित किया गया। भारत में क्रिकेट की शुरुआत बम्बई (मुंबई) से मानी जाती है। पारसी भारत का पहला समुदाय था जिसने भारत में क्रिकेट खेलना शुरू किया। पारसियों ने 1848 ई० में बम्बई में पहले भारतीय ओरिएंटल क्रिकेट क्लब की स्थापना की। पारसियों ने क्रिकेट खेलने के लिए खुद का जिमखाना बनाया। टाटा व वाडिया जैसे पारसी व्यवसायी भारतीय ओरिएंटल क्रिकेट क्लब के वित्त पोषक थे। पारसी जिमखाना क्लब के स्थापित होने के उपरांत यह अन्य भारतीयों के लिए एक उदाहरण बन गया और उन्होंने भी धर्म के आधार पर क्लब बनाने प्रारंभ कर दिए। 1890 के दशक में हिंदू व मुस्लिम जिमखाना के लिए पैसे इकट्टे करने में व्यस्त दिखाई दिए ताकि वे अपने-अपने जिमखाना क्लब स्थापित कर सकें। ब्रिटिश औपनिवेशवादी भारत को एक राष्ट्र नहीं मानते थे।

उनके लिए तो यह जातियों, नस्लों व धर्मों के लोगों का एक समुच्चय था और वे स्वयं को इस उपमहाद्वीप के स्तर पर एकीकृत करने का श्रेय देते थे। उन्नीसवीं सदी के अंत में कई हिन्दुस्तानी संस्थाएँ व आंदोलन जाति व धर्म के आधार पर ही बने क्योंकि औपनिवेशिक सरकार भी इन बँटवारों  को बढ़ावा देती थी और समुदाय आधारित संस्थाओं को तत्काल ही मान्यता दे देती थी। इस प्रकार ऐसी सामुदायिक श्रेणियों के द्वारा दिए गए आवेदन जिनकी औपनिवेशिक सरकार पक्षधर थी, उन्हें मान्यता मिलने के अवसर कहीं अधिक होते थे।

औपनिवेशिक भारत में सबसे मशहूर क्रिकेट टूर्नामेंट खेलनेवाली टीमें क्षेत्र के आधार पर नहीं बनती थीं, जैसा कि आजकल रणजी ट्रॉफी में होता है, बल्कि धार्मिक समुदायों से बनती थीं। इस टूर्नामेंट को शुरू-शुरू में क्वाईंग्युलर या चतुष्कोणीय कहा गया, क्योंकि इसमें चार टीमें-यूरोपीय, पारसी, हिन्दू व मुसलमान खेलती थीं। बाद में यह पेंटांग्युलर या पाँचकोणीय हो गया और द रेस्ट नाम की नई टीम में भारतीय ईसाई जैसे अवशिष्ट समुदायों को सहभागिता दी गई



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