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बाजार का अर्थ समझाकर उसके लक्षण बताइए ।

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सामान्य रूप से जिस स्थल पर वस्तु या सेवा का क्रय-विक्रय हो तो उसे बाजार कहते हैं । अर्थात सामान्य परिभाषा भौगोलिक विस्तार तक मर्यादित है । अर्थशास्त्र में बाजार की परिभाषा निम्नानुसार है : ‘वस्तु या सेवा के क्रय-विक्रय के उद्देश्य से क्रेता और विक्रेता एक-दूसरे के प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्पर्क में आये, वह व्यवस्था अर्थात् बाजार ।’

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. सेम्युअलसन के शब्दों में “बाजार अर्थात् एक ऐसी कार्यव्यवस्था कि जहाँ क्रेता और विक्रेता वस्तु और सेवा की कीमत और प्रमाण (जत्था) निश्चित करने के उद्देश्य से एकदूसरे के सम्पर्क में आते हैं ।”

बाजार के लक्षण निम्नानुसार है :

1. क्रेता और विक्रेता : बाजार में क्रेता और विक्रेता का होना अनिवार्य है । वे अपने व्यक्तिगत उद्देश्य से जो विनिमय करते हैं उसे क्रय-विक्रय की प्रक्रिया कहते हैं । विक्रेता का मुख्य उद्देश्य अधिक लाभ कमाना तथा क्रेता वस्तु या सेवा में से महत्तम संतोष प्राप्त करने के उद्देश्य से इस प्रक्रिया का जन्म होता है ।

2. वस्तु या सेवाएँ : बाजार तभी अस्तित्व में आयेगा जब कोई वस्तु या सेवा उत्पादित स्वरूप में मौजूद होगी । अर्थात् वस्तु की अनुपस्थिति में बाजार अस्तित्व में नहीं आता है । विक्रेता महत्तम लाभ के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को अस्तित्व में लाता है । तथा क्रेता महत्तम संतोष प्राप्त करने के लिए आदर्श वस्तु और सेवा का संयोजन करता है ।

3. क्रेता-विक्रेता का प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्पर्क : बाजार के अस्तित्व के लिए क्रेता-विक्रेता का सम्पर्क आवश्यक है । फिर चाहे वह प्रत्यक्ष या परोक्ष । वर्तमान समय में प्रत्यक्ष के साथ-साथ परोक्ष रूप से भी सम्पर्क होता है ।

जैसे :

  • टेलीशोपिंग : इसमें वस्तु और सेवा की खरीदी टेलीफोन द्वारा होती है । वस्तु या सेवा पसंद करके टेलीफोन पर क्रेता विक्रेता
    को ऑर्डर (आदेश) देता है ।
  • ऑनलाइन शोपिंग : इसमें क्रेता इन्टरनेट के माध्यम से सम्बन्धित वस्तु या सेवा की विक्रेता की वेबसाइट पर जाकर वस्तु या सेवा का चयन करता है और उसीके अनुसार आदेश (ऑर्डर) देता है ।
    इस प्रकार वर्तमान समय में टेलीशोपिंग और ऑनलाइन शोपिंग द्वारा क्रेता-विक्रेता परोक्ष रूप से सम्पर्क में आते हैं ।

4. कीमत : बाज़ार में निश्चित समय पर किसी एक वस्तु या सेवा की कीमत निश्चित होनी चाहिए । बाजार में वस्तु और सेवा की कीमत माँग और पूर्ति के परिबलों द्वारा निश्चित होती है । वस्तु की कीमत सर्वस्वीकृत होनी चाहिए ।

5. बाजार का संपूर्ण ज्ञान : बाजार के अस्तित्व के लिए बाजार का सम्पूर्ण ज्ञान क्रेता-विक्रेता को होना आवश्यक है । बाजार में मुद्रास्फीति अथवा मंदी हो अथवा प्राकृतिक या मानवीय दुर्घटनाएँ हो इस परिस्थिति में उत्पादन, विक्रय या क्रय के संदर्भ में उचित समय, उचित प्रमाण के सम्बन्ध में उचित निर्णय ले सकते है ।



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