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भारत के संविधान के प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।

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भारत के संविधान की प्रस्तावना से यह बात स्पष्ट होती है कि संविधान द्वारा निम्न उद्देश्यों की पूर्ति होती है
 

राष्ट्र की एकता व अखण्डता- भारतीय संविधान के निर्माता अंग्रेजों की ‘फूट डालो व शासन करो’ की नीति से अच्छी प्रकार परिचित थे। इसीलिए उनके मन और मस्तिष्क में राष्ट्र की एकता का विचार बहुत प्रबल था। इसी कारण से संविधान की प्रस्तावना में राष्ट्र की एकता को बनाए रखने की घोषणा की गई है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही भारत को एक धर्म-निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है तथा इकहरी नागरिकता के सिद्धान्त को अपनाया गया है। समस्त देश का एक ही संविधान है और प्रमुख 22 भाषाओं को संविधान द्वारा मान्यता प्रदान की गई है। संविधान के 42वें संशोधन द्वारा राष्ट्र की ‘एकता’ के साथ ‘अखण्डता’ शब्द को जोड़ दिया गया है।

स्वतन्त्रता- भारतीय संविधान का उद्देश्य नागरिकों को केवल न्याय दिलाना ही नहीं, बल्कि उनकी स्वतंत्रता को भी सुनिश्चित करना है, जो व्यक्ति के जीवन के विकास के लिए आवश्यक मानी जाती है। संविधान की प्रस्तावना में नागरिकों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास तथा उपासना की स्वतन्त्रता का अश्वासन दिया गया है। इसकी पूर्ति संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के द्वारा की गई है।

समानता- प्रस्तावना में सामाजिक स्तर तथा अवसर की समानता का उल्लेख किया गया है। स्तर की समानता का अर्थ यह है कि कानून की दृष्टि में देश के सभी नागरिक समान हैं तथा सभी को कानून की समान सुरक्षा प्राप्त है। समाज में किसी को कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है और धर्म, रंग, लिंग आदि के आधार पर नागरिकों में कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। इन बातों का स्पष्टीकरण संविधान की धाराओं 14 से 18 के द्वारा किया गया है। धारा 14 के अन्तर्गत सभी नागरिकों को कानून के सामने समानता तथा सुरक्षा प्रदान की गई है। धारा 15 में यह कहा गया है कि राज्य किसी नागरिक के साथ धर्म, रंग, जाति तथा लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। धारा 16 के द्वारा सभी नागरिकों को अवसर की समानता प्रदान की गई है। धारा 17 के द्वारा छुआछूत को समाप्त कर दिया गया है तथा धारा 18 के द्वारा शिक्षा तथा सेना की उपाधियों को छोड़ अन्य सभी उपाधियों को समाप्त कर दिया गया है।

बंधुता- संविधान की प्रस्तावना में बंधुता की भावना को विकसित करने पर भी बल दिया गया है। भारत जैसे देश के लिए जिसमें दासता के लम्बे काल के कारण धर्म, जाति व भाषा आदि के आधार पर भेदभाव उत्पन्न हो गए थे, बंधुता की भावना के विकास का विशेष महत्त्व है। इसी उद्देश्य से साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली तथा छुआछूत को समाप्त कर दिया गया है।
इसके साथ ही प्रस्तावना में व्यक्ति की गरिमा (Dignity of Individual) शब्दों को रखा जाना इस बात का प्रतीक है कि व्यक्ति का व्यक्तित्व बहुत पवित्र है। इसी धारणा से देश के सभी नागरिकों को समान मौलिक अधिकार दिए गए हैं।

सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय- संविधान का उद्देश्य यह है कि देश के सभी नागरिकों को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र–सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक क्षेत्रों में न्याय मिले।इस बहुमुखी न्याय से ही नागरिक अपने जीवन का पूर्ण विकास कर सकता है

सामाजिक न्याय का अर्थ है कि किसी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, जन्म-स्थान, रंग तथा लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए देश के सभी नागरिकों के लिए संविधान के द्वारा समानता का अधिकार सुरक्षित किया गया है। देश के सभी नागरिक कानून के सामने समान हैं। सार्वजनिक स्थानों पर जाने के लिए नागरिकों में रंग, जाति तथा धर्म आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। सरकारी नौकरी पाने के क्षेत्र में सबको समानता के आधार पर स्थापित करने का प्रयत्न किया गया है।

आर्थिक न्याय का अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को अपनी आजीविका कमाने के समान तथा उचित अवसर प्राप्त हों तथा उन्हें अपने कार्य के लिए उचित वेतन मिले। आर्थिक न्याय के लिए यह आवश्यक है कि उत्पादन तथा वितरण के साधन थोड़ेसे व्यक्तियों के हाथों में न होकर समाज के हाथों में हो और उनका प्रयोग समस्त समाज के हितों को ध्यान में रखकर किया जाए। आर्थिक न्याय के इस लक्ष्य की प्राप्ति समाजवादी ढाँचे के समाज की स्थापना के आधार पर ही की जा सकती है।

राजनीतिक न्याय का अर्थ है कि राज्य के सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के सभी राजनीतिक अधिकार प्राप्त हों। भारत में वयस्क मताधिकार प्रणाली को अपनाकर इस व्यवस्था को लागू किया गया है। धर्म, जाति, रंग तथा लिंग आदि के आधार पर नागरिकों को राजनीतिक अधिकार देने में कोई भेदभाव नहीं किया गया है और साम्प्रदायिक चुनाव-प्रणाली का अन्त कर दिया गया है।



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