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भारत के विदेश व्यापार के स्वरूप में हुये परिवर्तनों को विस्तारपूर्वक समझाइए ।

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विदेश व्यापार का स्वरूप अर्थात् व्यापार-प्रवृत्ति की ऐसी विशिष्ट बातें और पहलू जो उन्हें अन्य प्रवृत्तियों से अलग करे और उन्हें अलग पहचान दे ।’

विदेश व्यापार का स्वरूप, उसे असर करनेवाली परिस्थितियाँ, उससे सम्बन्धित नीतियाँ और कानून के आधार पर निश्चित होती हैं । विदेश व्यापार के स्वरूप को निम्नलिखित तत्त्व प्रभावित करते हैं :

(1) विदेश व्यापार में साधनों की भौगोलिक या व्यावसायिक गतिशीलता कम होती है :

विदेश व्यापार में राजनैतिक और सामाजिक कारणों से श्रम कम गतिशील होती है । कुछ पूँजी स्थायी और स्थिर होने से कम गतिशील होती है । कुछ पूँजी की गतिशीलता पर कानूनी प्रतिबंद होते है । नियोजक भी श्रम की तरह कम गतिशील होते हैं । परंतु नियोजनशक्ति सबसे अधिक गतिशील होती है । जमीन की भौगोलिक गतिशीलता शून्य होती है । गतिशीलता कम होने से विदेश व्यापार का कद भी मर्यादित होता है ।

(2) विविधता रखनेवाली वस्तुओं का व्यापार : विदेश व्यापार में अनेक प्रकार की विविधतावाली वस्तुएँ और सेवाएँ होती है । इसलिए जीवनस्तर में विविधता रखनेवाले लोगों की विविध प्रकार की मांग को संतुष्ट कर सकते हैं ।

(3) चुनौती स्वरूप : विदेश व्यापार में विविध देशों की विविध प्रकार की जलवायु, भाषा, संस्कृति, रिवाज, रुचि, आदत, पसंदगी होती है । यह सभी विदेश व्यापार में अवरोधक होती हैं । इसलिए विदेश व्यापार का स्वरूप अधिक चुनौतीपूर्ण है ।

(4) राजनैतिक प्रयत्न : विदेश व्यापार की स्थापना में व्यापारियों के साथ-साथ सरकार के राजनैतिक प्रयत्न भी जरूरी हैं । तथा साथ-साथ व्यापार मेला, अनौपचारिक मीटिंग आदि भी जरूरी है । गुजरात सरकार को Vibrant Gujarat Summit इसका उदाहरण है।

(5) विविध चलनों का भाव और उनके मूल्य की अटकतें : विदेश व्यापार में सर्वस्वीकृत मान्य चलन में भुगतान करना पड़ता है । इसलिए व्यापार करनेवाले देशों को अपने देश के चलन को अन्तर्राष्ट्रीय चलन में रूपांतर करना पड़ता है । इसलिए विदेशी मुद्रा की विनिमय दर की जानकारी होनी चाहिए । यदि अधिक कीमत में विदेशी मुद्रा खरीदी जाये तो नुकसान होने की संभावना होती है।

(6) विविध राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का संयुक्त प्रयास : विदेश व्यापार को विकसित करने के लिए अनेक देशों की सरकारें तथा विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसी संस्थाओं के साथ प्रयत्न करना पड़ता है । व्यापार का कद बढ़ाने के लिए प्रत्येक देश को दृढ निश्चय से आगे बढ़ना चाहिए ।

(7) राजनैतिक और सामाजिक विचारधाराओं की असर : विदेश व्यापार का कद और दिशा पर राजनैतिक और सामाजिक बातें भी प्रभावित करती है । जैसे : विश्व युद्ध जैसी घटनाएँ के बाद अनेक देशों के बीच व्यापारिक सम्बन्ध बिगड़ते हैं, तो कभी विश्व के नेता एक साथ मिलकर व्यापार बढ़ाने का प्रयत्न करते हैं । जिससे देशों का ध्यान युद्ध से हटकर व्यापार की ओर मुड़ें ।

फिर भी किसी देश का व्यापार अपने विचार, सामाजिक ढाँचा, इतिहास तथा अन्य देशों साथ सम्बन्ध पर आधारित होता है ।

(8) अत्यंत बड़े पैमाने का व्यापार : विदेश व्यापार में अनेक देश, असंख्य वस्तुएँ, अनेक कानून, अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ आदि जुड़ी होती है । इसलिए विदेश व्यापार का कद और स्वरूप विशाल होता है ।

(9) अधिक प्रमाण में टेक्स और लाइसन्स : अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार करने के लिए प्रत्येक देश को अपने देश और दूसरे देश की अनेक जांचो और अनुभूतियों से पार करना पड़ता है । जिसमें व्यापारजन्य वस्तु और सेवाओं की अनुमति और जाँच, गुणवत्ता सर्टीफिकेट, ट्रान्सपोर्ट व्यवस्था, वस्तु मापदण्ड आदि का समावेश किया जाता है । सम्बन्धित देश के सम्बन्ध में इन सबका ध्यान रखना पड़ता है ।

(10) स्पर्धा और जोनम अधिक : कोई एक वस्तु या सेवा अनेक देश उत्पन्न करके विश्व बाज़ार में विक्रय करने के प्रयास करते हैं । इसलिए विक्रेताओं के बीच स्पर्धा का प्रमाण अधिक होता है । फिर किसी वस्तु या सेवा मांग भी अनेक देशों के ग्राहक करते हैं । इसलिए ग्राहकों के बीच स्पर्धा होती है ।
विश्व व्यापार में वस्तु की माँग और बाज़ार खड़ा करने में अनेक खतरे होते हैं ।



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