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भारत में जाति-प्रमाण (प्रति 1000 पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या) की विस्तार से चर्चा कीजिए ।

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देश की जनसंख्या में प्रति 1000 पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या को स्त्री-पुरुष का प्रमाण अथवा लिंग अनुपात या जाति प्रमाण कहते हैं ।

जनसंख्या के अध्ययन में स्त्री-पुरुष का प्रमाण खूब महत्त्वपूर्ण है । स्त्रियों का कम प्रभाव विषमता सर्जित करता है । स्त्री-पुरुष के असंतुलन के कारण विवाह, परिवार, प्रजनन, अर्थव्यवस्था आदि अनेक प्रश्न खड़े होते हैं । इसलिए जाति प्रमाण को जानकर उसके निवारण के उपाय ढूँढ़ने चाहिए । नीचे की तालिका में भारत के स्त्री-पुरुष का प्रमाण देखते हैं :

प्रति हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या

वर्षभारतगुजरात
1901972954
1931950945
1961941940
1991927936
2001933921
2011940918

विश्लेषण :

  1. भारत में 1901 में प्रति हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या 972 है । जो 1931, 1961 और 1991 में घटकर क्रमश: 950, 941 और 927 रह गयी है ।
  2. 2001 में भारत में स्त्री-पुरुष का प्रमाण 933 था जो थोड़ा सा बढ़कर 2011 में 940 हो गया है । जो देश में ‘बेटी बचाओ’ एवं बेटी के जन्म को महत्त्व को प्रोत्साहन का आभारी है ।
  3. गुजरात में देखें तो 1901 में प्रति हजार पुरुषों पर स्त्रियों का प्रमाण 954 है । जो 1931, 1961 और 1991 में क्रमशः घटकर 945, 940 और 936 रह गया है ।
  4. 2001 में गुजरात में स्त्री-पुरुष का प्रमाण 921 था जो ओर घटकर 2011 में 918 रह गया है । ‘जो हमारी चिंता में वृद्धि करता है ।
  5. भारत में मात्र केरल राज्य ऐसा है जहाँ प्रतिहजार पुरुषों पर स्त्रियों का प्रमाण 2011 में 1084 था ।
  6. पंजाब, हरियाणा और गुजरात जैसे आर्थिक रीति से समृद्ध राज्यों में स्त्री-पुरुष का प्रमाण अधिक असंतुलित है ।

* स्त्री-पुरुष के असंतुलन के कारण :

  1. पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को कम महत्त्व दिया जाता है ।
  2. लड़कियों के पोषणयुक्त आहार, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर अधिक स्थान नहीं देते है ।
  3. स्त्री-भ्रूणहत्या ।
  4. दहेज प्रथा ।
  5. स्त्री-मृत्युदर अधिक, कन्या बालमृत्युदर का अधिक प्रमाण ।
    उपर्युक्त कारणों से प्रतिहजार पुरुषों पर स्त्रियों का प्रमाण कम होता चला जा रहा है ।

* स्त्री-पुरुष के संतुलन के उपाय :

  1. स्त्रियों को पोषणयुक्त आहार एवं स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देना चाहिए ।
  2. स्त्री शिक्षण पर अधिक भार देना चाहिए ।
  3. स्त्री-भ्रूणहत्या पर रोक लगाना चाहिए । स्त्री-भ्रूणहत्या प्रतिबंद कानून है । परंतु वह मात्र कागज पर ही । इसलिए उसे सामाजिक स्वीकृत मिले ऐसा प्रयास करना चाहिए ।


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