1.

भारत में कृषि की दृष्टि से अवरूद्य जनजातियक्षेत्रों तया उत्तर पूर्व के पहाड़ी दोनों के नगरीयअबादी कम है क्यों?​

Answer»

EXPLANATION:

स्वतंत्रता के पश्चात् कृषि को देश की आत्मा के रूप में स्वीकार करते हुए जवाहर लाल नेहरू ने कहा था ‘सब कुछ इंतज़ार कर सकता है मगर खेती नहीं।’ इस तथ्य का अनुसरण करते हुए अनेक कार्यक्रमों एवं नीतियों का संचालन किया गया। किंतु सकारात्मक परिवर्तनों की बजाय कृषि नकारात्मक कारणों- किसानों द्वारा आत्महत्या का रास्ता अपनाना, कृषि ऋण माफी हेतु प्रदर्शन के कारण ही चर्चा में रहती है।

मानवीय कारक: इसके अंतर्गत सामाजिक प्रथाओं और रीति-रिवाज़ों को शामिल किया जाता है। भारतीय किसानों का भाग्यवादी दृष्टिकोण और नई कृषि तकनीकों की अनभिज्ञता से उनका निवेश व्यर्थ हो जाता है। खेती पर जनसंख्या का बढ़ता बोझ भी निम्न उत्पादकता का महत्त्वपूर्ण कारण है।

कनीकी कारक: सिंचाई सुविधाओं की पर्याप्तता का अभाव, उच्च उत्पादकता वाले बीजों की अनुपलब्धता, किसानों के पास मृदा परख तकनीक का अभाव और कीटों, रोगाणुओं और चूहों जैसे अन्य कृंतकों से बचाव की वैज्ञानिक पद्धति की जानकारी का न होना। इसके अतिरिक्त किसानों द्वारा उर्वरकों या कीटनाशकों के उचित अनुपात में प्रयोग न करना आदि कारण हैं।

संस्थागत कारक: जोतों का छोटा आकार, किसानों के पास कृषि में निवेश के लिये साख का अभाव, कृषि उत्पादों के लिये बाज़ार की अनुपलब्धता, समर्थन मूल्य का तार्किक निर्धारण न होना। इसके साथ-साथ कृषि में संस्थागत सुधारों के प्रति नौकरशाहों में उदासीनता का भाव और राजनेताओं में इच्छाशक्ति का अभाव आदि।

कृषि उत्पादकता में सुधार के लिये निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं-

नई राष्ट्रीय कृषि नीति की शुरुआत की गई है। इसके अंतर्गत किसानों को सूखा एवं वर्षा के साथ-साथ अन्य आपदाओं के लिये राहत प्रदान करने की व्यवस्था की गई है। हाल ही में शुरू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के माध्यम से फसल बीमा को काफी व्यापक बनाया गया है।

हाल ही में सरकार द्वारा शुरू की गई मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना मृदा की गुणवत्ता को सुधारने के लिये एक महत्त्वपूर्ण पहल है। इस योजना में मृदा की प्रकृति को परख कर फसल और उर्वरक आदि का निर्धारण किया जाता है।

किसानों की साख में सुधार के लिये राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, किसान विकास पत्र आदि को आरंभ किया गया है।

किसानों को उत्पादों के उचित और एकीकृत मूल्य प्रदान करने के लिये ई-नाम (e-NAM) की शुरुआत की गई है।

इसके अतिरिक्त जैविक खेती को बढ़ावा, किसानों के लिये सिंचाई परियोजनाओं का विकास, मनरेगा के माध्यम से तालाब का निर्माण, भूमि की चकबंदी, किसानों को जलवायु के अनुकूल फसल उत्पादन करने का प्रशिक्षण आदि शामिल है।



Discussion

No Comment Found