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भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता की विवेचना कीजिए। |
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Answer» भारत में वैदिक और उत्तर-वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति पुरुषों के बराबर रही है। तथा उन्हें पुरुषों के समान ही सब अधिकार प्राप्त रहे हैं। धीरे-धीरे पुरुषों में अधिकार-प्राप्ति की लालसा बढ़ती गयी। परिणामस्वरूप स्मृति काल, धर्मशास्त्र काल तथा मध्यकाल में इनके अधिकार छिनते गये और इन्हें परतन्त्र, निस्सहाय और निर्बल मान लिया गया। परन्तु समय ने पलटा खाया। अंग्रेजी शासनकाल में देश में राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में जागृति आने लगी। समाज-सुधारकों एवं नेताओं का ध्यान स्त्रियों की दशा सुधारने की ओर गया। यहाँ पिछले कुछ वर्षों में स्त्रियों की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। विवेकानन्द ने कहा है – ‘स्त्रियों की अवस्था में सुधार हुए बिना विश्व के कल्याण का कोई दूसरा मार्ग नहीं हैं। यदि स्त्री-समाज निर्बल रहा तो हमारा सामाजिक ढाँचा भी निर्बल रहेगा, हमारी सन्तानों का विकास नहीं होगा, समाज में सामंजस्य स्थापित नहीं होगा, देश का विकास अधूरा रहेगा, स्त्रियाँ पुरुषों पर बोझ बनी रहेंगी, देश के विकास में 56 प्रतिशत जनता की भागीदारी नहीं होगी तथा देश में स्त्री-सम्बन्धी अपराधों में वृद्धि होगी। अतः भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता है। |
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