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Answer» भारत में निर्धनता के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था एक विकासशील अर्थव्यवस्था है। अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की भाँति भारतीय अर्थव्यवस्था भी गरीबी के दुश्चक्र में फंसी है। भारत में निर्धनता के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं (अ) आर्थिक कारण 1. अल्प विकास–भारत में निर्धनता का सर्वप्रमुख कारण देश का अल्प विकास है। यद्यपि गत 56 वर्षों में हम योजनाबद्ध आर्थिक विकास के मार्ग पर अग्रसर हैं तथापि हमारे विकास की गति बहुत धीमी रही है। धीमे आर्थिक विकास के कारण राष्ट्रीय आय में वांछित वृद्धि नहीं हो सकती है। 2. आय तथा धन के वितरण में असमानता- भारत में आय व धन का वितरण असमान है। रिजर्व बैंक के एक अनुमान के अनुसार समस्त राष्ट्रीय आय का लगभग 30% भाग जनसंख्या के 10% धनी लोगों को प्राप्त होता है, जबकि जनसंख्या के 20% निर्धन वर्ग को राष्ट्रीय आय का केवल 8% भाग ही प्राप्त हो पाता है। ग्रामीण क्षेत्र की तुलना में शहरी क्षेत्र में आय वितरण की असमानता और भी अधिक है। 3. अपर्याप्त विकास दर- भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर निम्न है। योजनाकाल में औसत विकास दर लगभग 3.5% रही है जिसने गरीबी की जड़ों को और अधिक गहरी कर दिया है। 4. जनसंख्या की उच्च वृद्धि-दर- भारत में जनसंख्या वृद्धि की दर अर्थव्यवस्था की विकास दर की तुलना में ऊँची रही है। इसका दुष्परिणाम यह है कि प्रति व्यक्ति आय व उपभोग कम हो जाता है, अभावे पनपने लगते हैं, जीवन-स्तर में ह्रास होता है और निर्धनता व्यापक रूप धारण कर लेती 5. बेरोजगारी– देश में निरन्तर बढ़ती हुई बेरोजगारी ने निर्धनता को और अधिक व्यापक बनाया है। बेरोजगारी के बढ़ते रहने से निर्धनता अधिक संचयी रूप धारण करती जा रही है। वर्तमान में 3 | करोड़ से भी अधिक लोग बेरोजगार हैं। 6. प्रादेशिक असंतुलन तथा असमानताएँ- असंतुलित प्रादेशिक विकास के साथ-साथा निर्धनता का वितरण भी असमान हो गया है; उदाहरण के लिए उड़ीसा (ओडिशा) में 66.4%, त्रिपुरा में 59.7%, बिहार व मध्य प्रदेश में 57.5% जनसंख्या निर्धनता रेखा से नीचे जीवन व्यतीत कर रही है, जबकि पंजाब में केवल 15.1% तथा हरियाणा में 24.8% जनसंख्या निर्धनता के स्तर से नीचे 7. स्फीतिक दबाव- भारत में सामान्य कीमत स्तर बढ़ता रहा है। कीमतों के बढ़ने पर मुद्रा की क्रय-शक्ति कम हो जाती है और वास्तविक आय गिर जाती है। इसके फलस्वरूप समाज में निम्न तथा मध्यम आय वर्ग के लोगों की निर्धनता बढ़ जाती है। 8. पूँजी की कमी- भारत में प्रति व्यक्ति आय का स्तर निम्न है, जिससे बचत कर्म होती है और पूँजी-निर्माण दर भी कम रहती है। पूँजी की प्रति व्यक्ति निम्न उपलब्धता और पूँजी-निर्माण की निम्न दर ने देश में निर्धनता को जन्म दिया है। 9. औद्योगीकरण का निम्न स्तर- कृषि तथा विनिर्माणी क्षेत्र में परम्परागत उत्पादन तकनीकों ने प्रति व्यक्ति उत्पादकता के स्तर को नीचा बनाए रखा है, जिसके कारण गरीबी और अधिक गहने हुई है। (ब) सामाजिक कारण आर्थिक कारणों के अतिरिक्त सामाजिक कारण भी निर्धनता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुए हैं। भारत में विद्यमान सामाजिक ढाँचे में बँधे रहने के कारण लोग जान-बूझकर निर्धनता से चिपके हुए हैं। सामाजिक सम्मान एवं प्रतिष्ठा की झूठी महत्त्वाकांक्षा ने लोगों को अपव्ययी बना दिया है। जनसाधारण में व्याप्त निक्षरता, भाग्यवादिता, धार्मिक रूढ़िवादिता व अन्धविश्वास ने गरीबी को बढ़ाया है। जातिवाद एवं संयुक्त परिवार प्रणाली ने लोगों को अकर्मण्य बनाया है और उन्हें आधुनिक तकनीक का प्रयोग करने से रोका है और सामाजिक संस्थाओं ने श्रम को अगतिशील बनाकर उनकी प्रगति में बाधा डाली है। (स) राजनीतिक कारण देश की लम्बी दासता ने अर्थव्यवस्था को गतिहीन बना दिया था। विदेशी शासकों ने देश में आधारभूत उद्योगों के विकास में कोई रुचि नहीं ली। उनकी ‘वि-औद्योगीकरण की नीति (Policy of Deindustrialization) ने देश के औद्योगिक आधार को कमजोर बना दिया। देश में सामन्तशाही प्रथा पनपी, जिसने कृषकों को भरपूर शोषण किया। उनकी नीति ने एक ओर जमींदारों को जन्म दिया और दूसरी ओर भूमिहीन किसानों को। फलत: उनके शोषण के साथ-साथ निर्धनता भी बढ़ती चली गई। निर्धनता दूर करने के उपाय भारत में निर्धनता दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं 1. विकास की गति को तीव्र किया जाए। इससे रोजगार के अधिक अवसर सृजित होंगे और निर्धनता में कमी आएगी। 2. आय एवं धन के वितरण की असमानताओं को कम किया जाए। 3. जनसंख्या की वृद्धि को नियंत्रित करने हेतु प्रयास किए जाएँ। इस संबंध में परिवार कल्याण कार्यकम्रमों को सफल बनाने के लिए भरसक प्रयास किए जाएँ। 4. कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए यथासंभव प्रयास किए जाएँ। | 5. कीमत स्थिरता के उत्पादन एवं वितरण व्यवस्था में सुधार किए जाएँ। 6. बेरोजगारी (अर्द्ध-बेरोजगारी, अदृश्य बेरोजगारी, मौसमी बेरोजगारी व शिक्षित बेरोजगारी) को दूर | करने के लिए छोस कदम उठाए जाएँ। 7. उत्पादन तकनीक में आवश्यक परिवर्तन किए जाएँ। 8. न्यूनतम आवश्यर्कता कार्यक्रम’ को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए। 9. देश के पिछड़े क्षेत्रों के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाए। 10. ‘स्वरोजगार के लिए सभी आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ।
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