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भारत में स्वास्थ्य से सम्बद्ध समस्याओं के क्या कारण हैं? सरकार ने इस समस्या को हल करने के लिए क्या कदम उठाये हैं?याभारत में स्वास्थ्य समस्या पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

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भारत में स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या गम्भीर है। देश में मुख्य बीमारियाँ; जैसे – मलेरिया, कालाजार, क्षय रोग, कुष्ठ रोग, कैन्सर, अन्धता, एड्स आदि लगातार बढ़ती जा रही हैं। भारत में स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या के निम्नलिखित कारण हैं

1. कुपोषण – देश की लगभग 46 प्रतिशत जनसंख्या की मासिक आय इतनी कम है कि वे अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करने में भी असमर्थ हैं। परिणामस्वरूप उनका जीवन-स्तर अत्यन्त निम्न है। ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता स्तर के नीचे रहने वाली जनसंख्या की मासिक आय केवल ₹62 और शहरी क्षेत्रों में ₹71 है। स्पष्ट है कि इस आय द्वारा कोई व्यक्ति अपनी न्यूनतम आवश्यकता, दो समय का भोजन, तन ढकने को सामान्य वस्त्र और रहने को सामान्य आवास भी पूरा नहीं कर सकता। इस प्रकार देश की जनसंख्या का इतना बड़ा भाग अत्यन्त दीन-हीन स्थिति में जीवन व्यतीत कर रहा है। पौष्टिक आहार तो उनके लिए कल्पना समान है। जो माताएँ शिशुओं को जन्म दे रही हैं, उन शिशुओं को न तो दूध प्राप्त हो रहा है और न ही माताओं को पौष्टिक आहार मिल रहा है। इसके अभाव में शिशु व माता मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं या अन्य बीमारियों से प्रभावित हो रहे हैं।
2. पर्यावरण प्रदूषण – पर्यावरणीय प्रदूषण मानव-जाति, समस्त जीव-जन्तुओं एवं वनस्पति के जीवन के लिए भयावह है। प्रदूषण से जान लेवा बीमारियाँ; जैसे–फेफड़े की और साँस की बीमारियाँ, ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों के कैन्सर, हैजा, पीलिया आदि बढ़ती जा रही हैं जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव मानव के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।
3. बढ़ती हुई गन्दगी – ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में गन्दगी बढ़ती जा रही है। निर्धनता व अज्ञानता के कारण भारत में अधिकांश व्यक्ति स्वच्छता की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं देते। वे अनेक प्रकार की ऐसी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं, जिससे उनका स्वास्थ्य खराब हो जाता है।
4. स्वास्थ्य सुधारों की समस्या – ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सालयों का अभाव है। यदि कोई चिकित्सालय है भी तो वहाँ पर दवाइयों तथा उपकरणों का अभाव है। योग्य एवं अनुभवी डॉक्टर गाँवों में रहना पसन्द नहीं करते। चिकित्सालयों एवं डॉक्टरों के अभाव में स्वास्थ्य बिगड़ जाता है।
5. ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता की ओर ध्यान देना – गाँव के व्यक्ति स्वच्छता की ओर विशेष ध्यान नहीं देते हैं। गाँव के पास कूड़ा-करकट इकट्ठा करना, मल-मूत्र त्याग करना, गन्दे तालाबों से पशुओं को पानी पिलाना व नहलाना, खुले हुए बिना छत के कुओं का होना आदि बातें स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं।
6. स्वास्थ्य के नियमों के प्रति अज्ञानता – अधिकांश ग्रामीण जन आज भी अशिक्षित हैं। उन्हें सन्तुलित आहार, दिनचर्या, योग आदि के विषय में पूर्ण जानकारी नहीं होती है। वे कार्य में इतने अधिक व्यस्त रहते हैं कि स्वास्थ्य की ओर ध्यान ही नहीं दे पाते।
7. अशिक्षा एवं अन्धविश्वास – भारत के ग्रामीण क्षेत्रों की अधिकांश जनता अशिक्षित है; अतः रोगी को अच्छे डॉक्टरों से उपचार न कराकर भूत-प्रेत आदि में विश्वास करके बीमारी को भाग्य के सहारे छोड़ देते हैं, जिसके कारण रोगी गम्भीर रोग से पीड़ित हो जाते हैं तथा दिन-प्रतिदिन उनका स्वास्थ्य बिगड़ता जाता है।
8. निर्धनता – भारत जैसे विकासशील देश में गरीबी का दुश्चक्र चलता रहता है जिससे व्यक्ति निर्धनता की स्थिति में ही बना रहता है। निर्धनता के कारण पर्याप्त भोजन का अभाव रहता है जिससे लोग कुपोषण के शिकार होते हैं और उनका स्वास्थ्य खराब रहता है।

सरकार द्वारा उठाये गये कदम
स्वतन्त्रता के पश्चात् से देश में चिकित्सा, स्वच्छता तथा शिक्षा-सम्बन्धी सुविधाओं के विकास पर विशेष ध्यान दिया गया है। यही कारण है कि देश में जहाँ एक ओर मृत्यु-दर में तेजी से कमी आयी है, वहीं स्त्री तथा पुरुष दोनों की जीवन-प्रत्याशा बढ़ती जा रही है। सरकार ने विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में स्वास्थ्य के प्रति विशेष ध्यान दिया है। स्वतन्त्रता के बाद स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार का श्रेय निम्नलिखित घटकों को जाता है
⦁    संक्रामक बीमारियों के नियन्त्रण कार्यक्रम।
⦁    ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल के लिए उचित संरचना (अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, आदि) निर्माण।
⦁     स्वास्थ्य सुविधाओं एवं स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या में वृद्धि।
⦁    चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसन्धान का विकास।
⦁    परिवार-कल्याण कार्यक्रम का विस्तार एवं जन्म-दर में कमी।
केन्द्रीय आयोजन पंरिव्यय का लगभग 54 प्रतिशत मलेरिया, तपेदिक, कुष्ठ रोग, एड्स, दृष्टिहीनता आदि के नियन्त्रण हेतु केन्द्रीय प्रायोजित रोग-नियन्त्रण कार्यक्रमों हेतु रखा गया है। रोग-नियन्त्रण कार्यक्रमों के लिए विभिन्न द्विपक्षीय और बहुपक्षीय एजेन्सियों से भारी विदेशी सहायता भी जुटाई गयी है।
गत चार वर्षों के दौरान, केन्द्र और राज्य सरकारों ने प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों का सुदृढ़ीकरण, चल स्वास्थ्य क्लिनिकों का उपयोग, ओषधियों तथा उपभोज्य की आपूर्ति के सम्भारतन्त्र में सुधार और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों को गैर-सरकारी संगठनों को सौंपने जैसे महत्त्वपूर्ण प्रयास किये हैं। सात राज्यों ने विश्व बैंक की सहायता से प्रथम रेफरल यूनिटों, जिला अस्पतालों की स्थापना हेतु परियोजनाएँ प्रारम्भ की हैं और उनके साथ गरीबी रेखा से ऊपर के लोगों के लिए प्रयोक्ता प्रभारों का चार्ज करने विषयक एक अवयव की शुरुआत की है। तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों में भी दक्ष जनशक्ति, उपस्कर तथा उपभोज्य के सामान्य अभाव के साथ जटिल नैदानिक तथा रोगोपचार तौर-तरीकों की तेजी से माँग बढ़ रही है।
नवीं योजना में क्षमता निर्माण सम्बन्धी निधि-व्यवस्था, गरीबी रेखा से ऊपर के लोगों के सम्बन्ध में प्रयोक्ता प्रभारों की उगाही और देखभाल की बढ़ती लागत को पूरा करने हेतु वैकल्पिक तौर-तरीकों का पता लगाने जैसे उपायों को भी रेखांकित किया गया है।



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