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भारत शासन अधिनियम, 1858 ई० पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।

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भारत शासन अधिनियम, 1858 ई०- इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे

(i) गृह सरकार

(क) नियन्त्रण परिषद् तथा निदेशक मण्डल समाप्त कर दिए गए और उनका स्थान भारत सचिव ने ले लिया।
(ख) भारत में सचिव की सहायता के लिए 15 सदस्यों की एक ‘भारत परिषद् होगी।
(ग) इन सदस्यों में से कम-से-कम आधे ऐसे व्यक्ति होने चाहिए, जो भारत में कम-से-कम दस वर्ष तक सेवा कर चुके हों।
(घ) भारत में सचिव परिषद् की बैठकों की अध्यक्षता करेगा।
(ङ) भारत में सचिव प्रतिवर्ष भारत की प्रगति की रिपोर्ट संसद के समक्ष प्रस्तुत करेगा।

(ii) भारत सरकार

(क) भारत के शासन का उत्तरदायित्व ब्रिटिश क्राउन ने अपने ऊपर ले लिया है और इसकी घोषणा रानी के द्वारा भारतीय राजा-महाराजाओं के समक्ष कर दी जाएगी।
(ख) कम्पनी की सभी सन्धियाँ, समझौते और देनदारियाँ क्राउन पर लागू होंगी।
(ग) भारत के बाहर सैनिक कार्यवाहियों के लिए भारतीय कोष से ब्रिटिश संसद की अनुमति के बिना धन व्यय नहीं किया जाएगा।

अधिनियम का मूल्यांकन- इसमें सन्देह नहीं कि 1858 ई० का अधिनियम आधुनिक भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। वास्तव में 1858 के भारत-शासन अधिनियम ने भारतीय इतिहास में एक युग को समाप्त कर दिया और भारत में एक नए युग का आरम्भ हुआ। रेम्जे म्योर के अनुसार, “भारतीय साम्राज्य का क्राउन को जो हस्तान्तरण किया गया, उसमें ऊपरी दृष्टि से जितना परिवर्तन दिखाई देता था, उतना वास्तव में नहीं था, बल्कि उससे बहुत कम था। वस्तुतः क्राउन कम्पनी के हाथों में प्रादेशिक प्रभुत्व आने के समय से ही उसके मामलों पर अपने नियन्त्रण को निरन्तर कड़ा करता आया था।



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