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भारत सरकार द्वारा निर्धनता पर त्रि-आयामी प्रहार की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।

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भारत सरकार ने निर्धनता निवारण के लिए त्रि-आयामी नीति अपनाई, जिसका विवरण इस प्रकार है

1. संवृद्धि आधारित रणनीति- यह इस आशा पर आधारित है कि आर्थिक संवृद्धि (अर्थात् सकल घरेलू उत्पाद और प्रति व्यक्ति आय में तीव्र वृद्धि) के प्रभाव समाज के सभी वर्गों तक पहुँच जाएँगे। यह माना जा रहा था कि तीव्र दर से औद्योगिक विकास और चुने हुए क्षेत्रों में हरित क्रांति के माध्यम से कृषि का पूर्ण कार्याकल्प हो जाएगा। परंतु जनसंख्या वृद्धि के परिणामस्वरूस प्रति व्यक्ति आय में बहुत कमी आई जिस कारण धनी और निर्धन के बीच की दूरी और बढ़ गई।
2. वर्धनशील परिसम्पत्तियों और कार्य का सृजन- प्रथम आयाम की असफलता के बाद नीति-निर्धारकों को ऐसा लगा कि वर्धनशील परिसम्पत्तियों और कार्य सृजन के साधनों द्वारा निर्धनों के लिए आय और रोजगार को बढ़ाया जा सकता है। इस दूसरी नीति को द्वितीय पंचवर्षी योजना से आरम्भ किया गया। स्वरोजगार एवं मजदूरी आधारित रोजगार कार्यक्रमों को निर्धनता भगाने का मुख्य माध्यम माना जाता है। स्वरोजगार कार्यक्रमों के उदाहरण हैं—ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम (REGP), प्रधानमंत्री रोजगार योजना (PMRY) तथा स्वर्णजयंती शहरी रोजगार योजना (SJSRY)। इन रोजगार कार्यक्रमों एवं वित्तीय सहायता के माध्यम से निम्न आय वर्ग के लोगों को आय अर्जित करने के अवसर प्राप्त हुए हैं।
3. न्यूनतम आधारभूत सुविधाएँ– निर्धनता निवारण की दिशा में तीसरा आयाम न्यूनतम आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराना है। इस नीति के अंतर्गत उपभोग, रोजगार के अवसर, स्वास्थ्य एवं शिक्षा में आपूर्ति बढ़ाने पर बल दिया गया। निर्धनों के खाद्य उपभोग और पोषण-स्तर को प्रभावित करने वाले तीन प्रमुख कार्यक्रम हैं—सार्वजनिक वितरण व्यवस्था, एकीकृत बाल विकास योजना तथा मध्यावकाश भोजन योजना। बेसहारा बुजुर्गों एवं निर्धन महिलाओं के लिए भी सामाजिक सहायता अभियान चलाए जा रहे हैं।



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