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भारतीय समाज में संयुक्त परिवार का भविष्य क्या है? इसकी व्याख्या कीजिए।

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भारतीय समाज में संयुक्त परिवार का भविष्य

संयुक्त परिवार में हो रहे परिवर्तनों के सन्दर्भ में यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि संयुक्त परिवार का क्या भविष्य है? क्या वास्तव में संयुक्त परिवार टूट रहा है? और, क्या संयुक्त परिवारों का स्थान पश्चिमी देशों में पाए जाने वाले एकाकी परिवार लेते जा रहे हैं? अधिकांश विद्वानों ने संयुक्त परिवार पर किए गए अध्ययनों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि यद्यपि समकालीन भारत में संयुक्त परिवार छिन्न-भिन्न होकर एकाकी परिवारों का रूप ले रहे हैं और हमारी सामाजिक संरचना में उनका कोई विशेष स्थान नहीं है, तथापि वास्तविकता यह है कि आज भी संयुक्त परिवार हमारे देश में विद्यमान हैं और इनके छिन्न-भिन्न होने के निकट भविष्य में कोई आसार नहीं हैं। कृषि व्यवसाय, हिन्दू आदर्श तथा मनोवृत्तियाँ और विचार अभी भी संयुक्त परिवारों के पक्ष में हैं।

वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए संयुक्त परिवार के भविष्य के विषय में दो विचारधाराएँ सामने आती हैं—प्रथम, संयुक्त परिवार का भविष्य उज्ज्वल है तथा द्वितीय, संयुक्त परिवार का भविष्य अन्धकारमय है। प्रथम विचारधारा के समर्थक के०एम० कपाडिया हैं। उनके मतानुसार, संयुक्त परिवार ने अभी तक जिस कष्टमय समय को पार किया है, उसका भविष्य बुरा नहीं है।” उन्होंने आगे कहा है, “हिन्दू मनोवृत्तियाँ आज भी संयुक्त परिवार के पक्ष में हैं। इसी कारण विधियों द्वारा संयुक्त परिवार का विनाश अहिन्दू समझा जाता है, क्योंकि वह हिन्दू पारिवारिक मनोवृत्तियों की अवहेलना करता है। इनके द्वारा मुम्बई में किए गए सर्वेक्षण से भी हमें यह पता चलता है।
कि बहुमत (57%) लोग आज भी संयुक्त परिवार के पक्ष में हैं। इस मत को अधिकांश विद्वान् स्वीकार करते हैं। वास्तव में, संयुक्त परिवार परिवर्तित परिस्थितियों के अनुकूल अपने स्वरूप को बदल रहा है और इसका विघटन नहीं हो रहा है। आई०पी० देसाई भी इस विचारधारा के समर्थक हैं। उनका कहना है, “आज भी अधिकतर लोग संयुक्त पारिवारिक व्यवस्था को अच्छा समझते हैं और उसकी उपयोगिता से प्रभावित हैं।

” एम०एन० श्रीनिवास का विचार है। कि आधुनिक युग में भी संयुक्त परिवार की महत्ता बढ़ती जा रही है और संयुक्त परिवार की भावना केवल अलग रहने से समाप्त नहीं हो जाती। दूसरी विचारधारा के समर्थकों का कहना है कि संयुक्त परिवारों का विघटन हो रहा है और उसका भविष्य अन्धकारमय है। उदाहरणार्थ कोलण्डा के अनुसार, अधिकांश भारत में संयुक्त परिवारों की संख्या कम होती जा रही है तथा उसमें विघटन हो रहा है। टी०बी० बॉटोमोर ने 1951 ई० की जनगणना रिपोर्ट के आधार पर इस बात को उल्लेख किया है कि संयुक्त परिवार में काफी परिवर्तन आए हैं। संयुक्त परिवार से पृथक् घर बसाने की प्रवृत्ति निरन्तर बढ़ती जा रही है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि यद्यपि संयुक्त परिवार का तीव्रता के साथ विघटन हो रहा है तथापि भारत में इसका समूल विनाश हो जाना स्वाभाविक दिखाई नहीं देता। एकाकी परिवारों की बढ़ती संख्या के आधार पर हम यह नहीं कह सकते कि आने वाले समय में भारतीय समाज में संयुक्त परिवार पूर्णतः विघटित हो जाएँगे।



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