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भूकम्प से आप क्या समझते हैं? भूकम्प के कारण व इसके हानिकारक प्रभावों की विवेचना कीजिए।याकिसी एक प्राकृतिक आपदा व इससे प्रभावित क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।याभूकम्प को प्राकृतिक आपदा क्यों कहा जाता है?याभूकम्प के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए। याभारत में भूकम्प एवं भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों की समस्याओं का वर्णन कीजिए। 

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भूकम्प (Earthquake)

भूकम्प का सामान्य अर्थ ‘भूमि का कॉपना या हिलना है जो पृथ्वी के अन्तराल की तापीय दशाओं के कारण उत्पन्न विवर्तनिक शक्तियों (Tectonic forces) के कारण घटित होता है। भूमि का कम्पन सामान्य से लेकर तीव्रतम हो सकता है जिससे इमारतें ढह जाती हैं तथा धरातल पर दरारें उत्पन्न हो जाती हैं।

भूकम्प की उत्पत्ति धरातल के नीचे किसी बिन्दु से होती है जिसे उत्पत्ति केन्द्र (Focus) कहते हैं। इस बिन्दु से ऊर्जा की तीव्र लहरें उत्पन्न होकर पृथ्वी के धरातल पर पहुँचती हैं। ऊर्जा की तीव्रता को ‘रिक्टर मापक’ (Richter Scale) द्वारा नापा जाता है। यह मापक 0 से 9 के मध्य होता है। सन् 1934 में बिहार (भारत) के भूकम्प का माप रिक्टर मापक पर 8.4 था, जबकि सन् 1964 में अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका) के भूकम्प का माप 8.4 से 8.6 तक था। ये दोनों भूकम्प विश्व के उग्रतम भूकम्पों में गिने जाते हैं।

भूकम्प की तीव्रता मापने का एक अन्य पैमाना या मापेक ‘मरकेली मापक’ (Mercalli Scale) भी है, किन्तु रिक्टर मापक अधिक प्रचलित है।

भूकम्प के कारण
Causes of Earthquake

भूकम्प पृथ्वी की सतह पर किसी भी मात्रा में अव्यवस्था या असन्तुलन के कारण उत्पन्न होते हैं। यह असन्तुलन अनेक कारणों से सम्भव है; जैसे-ज्वालामुखी उद्गार, भ्रंशन एवं वलन, मानवनिर्मित जलाशयों का जलीय भार तथा प्लेट विवर्तनिकी। इन सभी कारणों में से प्लेट विवर्तनिक सिद्धान्त (Plate tectonic theory) भूकम्पों की उत्पत्ति की सर्वोत्तम व्याख्या करता है। इस सिद्धान्त के अनुसार भूपटल ठोस तथा गतिशील दृढ़ प्लेटों से निर्मित है। इन्हीं प्लेटों के किनारों पर सभी विवर्तनिक घटनाएँ होती हैं। कम गहराई पर उत्पन्न होने वाले भूकम्प प्लेटों के रचनात्मक किनारों के सहारे पैदा होते हैं, जबकि अधिक गहराई पर स्थित उत्पत्ति केन्द्र वाले भूकम्प विनाशात्मक प्लेट किनारों के सहारे उत्पन्न होते हैं। विनाशात्मक प्लेट किनारे वे होते हैं जो दो प्लेटों के परस्पर निकट आने पर टकराते हैं। यही कारण है कि विश्व के सर्वाधिक भूकम्प अग्निवलय (Ring of Fire) या परि-प्रशान्त पेटी के सहारे तथा मध्य महाद्वीपीय पेटी (आलप्स-हिमालय पर्वतश्रृंखला) के सहारे उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार, कैलीफोर्निया (संयुक्त राज्य अमेरिका) में संरक्षी प्लेट किनारों के सहारे उत्पन्न रूपान्तरित भ्रंशों के स्थान पर भी भयंकर भूकम्प आते हैं।

भारत में हिमालय तथा उसकी तलहटी में आने वाले भूकम्पों की व्याख्या प्लेट विवर्तनिकी के सन्दर्भ में की जा सकती है। एशियाई प्लेट दक्षिण की ओर गतिशील है, जबकि भारतीय प्लेट उत्तर की ओर खिसक रही है। अतएव भारतीय प्लेट एशियाई प्लेट के नीचे क्षेपित हो रही है। इन दोनों प्लेटों के परस्पर टकराने से वलन या भ्रंशन क्रियाएँ होती हैं जिनसे हिमालय की ऊँचाई निरन्तर बढ़ रही है। इससे भू-सन्तुलन बिगड़ता रहता है, जो इस क्षेत्र में भूकम्पों की आवृत्ति का कारण है।

भूकम्पों के हानिकारक प्रभाव
Hazardous Effects of Earthquakes

भूकम्पों की तीव्रता का निर्धारण रिक्टर मापक की अपेक्षा मानव-जीवन तथा सम्पत्ति पर भूकम्पों से होने वाले हानिकारक प्रभावों के परिप्रेक्ष्य में किया जाता है। यह आवश्यक नहीं है कि रिक्टर मापक पर उच्च तीव्रता वाला भूकम्प हानिकारक है। भूकम्प तभी विनाशकारी होता है जब वह सघन आबाद क्षेत्र में आता है। कभी-कभी रिक्टर मापक पर साधारण तीव्रता वाले भूकम्प भी भयंकर विनाशकारी होते हैं। भूकम्प के प्रत्यक्ष एवं परोक्ष प्रभावों में निम्नलिखित सम्मिलित हैं –

(1) ढालों की अस्थिरता एवं भूस्खलन – पर्वतीय क्षेत्रों में जहाँ कमजोर संरचनाएँ पायी जाती है. वहाँ ढाल अस्थिर होते हैं जिससे भूस्खलन तथा शैल-पतन जैसी घटनाएँ बस्तियों तथा परिवहन मार्गों को हानि पहुँचाती हैं। सन् 1970 में पीरू तथा सन् 1989 में तत्कालीन सोवियत संघ के ताजिक गणतन्त्र में आये भूकम्पों से इसी प्रकार की क्षति हुई थी जिनमें युंगे (पीरू) तथा लेनिनाकन (ताजिक) नगर ध्वस्त हो गये।

(2) मानवकृत संरचनाओं को क्षति – इमारतें, सड़कें, रेलें, कारखाने, पुल, बाँध आदि संरचनाओं को भूकम्पों से भारी क्षति पहुँचती है। इस प्रकार मानव सम्पत्ति की हानि होती है। सन् 1934 में नेपाल-बिहार सीमा पर तथा पुनः सन् 1988 में बिहार के भूकम्प से 10,000 से अधिक मकान क्षतिग्रस्त हो गये। सन् 1985 में मैक्सिको सिटी के भूकम्प से 40,000 इमारतें ढह गयीं तथा 50,000 अन्य मकान क्षतिग्रस्त हुए।

(3) नगरों तथा कस्बों को क्षति – घने आबाद नगर तथा कस्बे भूकम्प के विशेष शिकार होते हैं। उच्च तीव्रता वाले भूकम्पों से बड़ी इमारतें ध्वस्त हो जाती हैं तथा उनके निवासी मलबे में दबकर काल का ग्रास बन जाते हैं। पाइप लाइनें, बिजली एवं टेलीफोन के खम्भे व तार आदि भी नष्ट हो जाते हैं।

(4) जनजीवन की हानि – भूकम्पों की तीव्रता जीवन की क्षति द्वारा भी निर्धारित की जाती है। भारत के इतिहास में सबसे भीषण भूकम्प सन् 1737 में कोलकाता में आया, जिसमें 3 लाख व्यक्ति काल-कवलित हुए। सन् 1905 में कॉगड़ा के भूकम्प में 20 हजार व्यक्ति मारे गये। सन् 2001 में भुज के भूकम्प में 20,000 व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी। विश्व के इतिहास में 1556 ई० में शेन शु (चीन) में 8,30,000 व्यक्तियों की जाने गयीं। पुन: सन् 1976 में तांगशान (चीन) में 7,50,000 व्यक्ति मृत हुए। सन् 1920 में कान्सू (चीन) में 1,80,000 व्यक्ति, 1927 ई० में नामशान (चीन) में 1,80,000 व्यक्ति सन् 1908 में मेसीना (इटली) में 1,60,000 व्यक्ति, 1923 ई० में टोकियो (जापान) में 1,63,000 व्यक्ति, सन् 1932 ई० में सगामी खाड़ी (जापान) में 2,50,000 व्यक्ति, सन् 1990 में उत्तरी ईरान में 50,000 व्यक्ति मारे गये। सन् 2004 में सुमात्रा में भूकम्प से उत्पन्न सूनामी लहरों के विध्वंसकारी प्रभाव से 3,50,000 लोग मारे गये। 2005 ई० में कश्मीर के भूकम्प में भारत तथा पाकिस्तान में लगभग 1 लाख लोगों की मृत्यु हो गयी।

(5) अग्निकाण्ड – तीव्र भूकम्पों के कारण होने वाले कम्पन से इमारतों तथा कारखानों में गैस सिलिण्डरों के उलटने तथा बिजली के नंगे तारों के मिलने आदि से आग लग जाती है। सन् 1923 में सगामी खाड़ी (जापान) में ऐसे ही अग्निकाण्ड से 38,000 व्यक्ति मारे गये। सन् 1906 में सैनफ्रान्सिस्को (संयुक्त राज्य अमेरिका) में भी भूकम्प से नगर के अनेक मार्गों में आग लग गयी।

(6) धरातल की विकृति – कभी-कभी भूकम्पों से धरातल पर दरारें पड़ती हैं तो कभी धरातल का अवतलन या उत्क्षेप हो जाता है। सन् 1819 के भूकम्प से सिन्धु नदी के मुहाने (पाकिस्तान) पर 4,500 वर्ग किमी क्षेत्र का अवतलन हो गया जो सदा के लिए समुद्र में डूब गया। इसके साथ ही 80 किमी लम्बा तथा 26 किमी चौड़ा क्षेत्र निकटवर्ती भूमि से 3 मीटर ऊँचा उठ गया, जिसे ‘अल्लाह-बन्द’ कहा जाता है।

(7) बाढे – तीव्र भूकम्पीय लहरों से बाँधों के टूटने पर बाढ़े आती हैं। सन् 1971 में लॉस एंजिल्स (संयुक्त राज्य अमेरिका) नगर के उत्तर पश्चिम में भूकम्प के कारण सान फर्नाण्डो घाटी क्षेत्र में स्थित वॉन नार्मन बाँध में दरार पड़ने से ऐसी ही क्षति हुई थी। सन् 1950 में असम के भूकम्प में दिहांग नदी के मार्ग में भूस्खलन के कारण उत्पन्न अवरोध से भयंकर बाढ़ आयी।

(8) सूनामी – समुद्रों के अन्दर भूकम्प आने पर तीव्र सूनामी लहरें उत्पन्न होती हैं। सन् 1819 ई० में कच्छ क्षेत्र में सूनामी लहरों से भारी क्षति हुई। सन् 1755 में लिस्बन (पुर्तगाल) में सूनामी लहरों के कारण 30 हजार से 60 हजार लोग मृत्यु का ग्रास बने। दिसम्बर, 2004 ई० में सुमात्रा के निकट भूकम्प उत्पन्न होने पर सूनामी लहरों का प्रकोप श्रीलंका तथा तमिलनाडु तट (भारत) तक देखा गया।



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