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चेचक नामक रोग की उत्पत्ति के कारणों, लक्षणों तथा बचने एवं उपचार के उपायों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।

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वायु द्वारा संक्रमित होने वाले रोगों में से एक मुख्य रोग चेचक (Smallpox) है। यह एक अत्यधिक भयंकर एवं घातक रोग है। अब से कुछ वर्ष पूर्व तक भारतवर्ष में इस संक्रामक रोग का काफी अधिक प्रकोप रहता था। प्रतिवर्ष लाखों व्यक्ति इस रोग से पीड़ित हुआ करते थे तथा हजारों की मृत्यु हो जाती थी, परन्तु सरकार के व्यवस्थित प्रयास से अब इस रोग को प्रायः पूरी तरह से नियन्त्रित कर लिया। गया है। चेचक को स्थानीय बोलचाल की भाषा में बड़ी माता भी कहा जाता है। इस रोग के कारणों, लक्षणों एवं बचाव के उपायों का विवरण निम्नवर्णित है

चेचक की उत्पत्ति के कारण:
चेचक वायु के माध्यम से फैलने वाला संक्रामक रोग है। यह रोग एक विषाणु (Virus) द्वारा फैलता है, जिसे वरियोला वायरस कहते हैं। रोगी व्यक्ति के साँस, खाँसी, बलगम के अतिरिक्त उसके दानों के मवाद, छिलके, कै, मल एवं मूत्र में भी यह वायरस विद्यमान होता है। इन सब स्रोतों से चेचक के वायरस निकलकर वायु में व्याप्त हो जाते हैं तथा सब ओर फैल जाते हैं। ये वायरस सम्पर्क में आने वाले स्वस्थ व्यक्तियों को संक्रमित कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त रोगी व्यक्ति के सीधे सम्पर्क द्वारा भी यह रोग संक्रमित हो सकता है। चेचक के फैलने का काल मुख्य रूप से नवम्बर से मई माह तक का होता है।

रोग के लक्षण:

  1. रोगी को तीव्र ज्वर रहता है।
  2. पीठ एवं सिर में भयानक पीड़ा होती है।
  3. रोग के तीसरे दिन पहले चेहरे पर तथा फिर टाँगों व बाँहों पर लाल रंग के दाने निकल आते हैं। अब रोगी का ज्वर कम होने लगता है।
  4. रोग के 5-6 दिन पश्चात् दाने आकार में वृद्धि कर बड़े-बड़े छालों का रूप ले लेते हैं।
  5. छालों में प्रारम्भ में तरल पदार्थ भरा रहता है जो कि रोग के 8-10 दिन बाद पस में बदल जाता है। छालों में प्रायः जलन व खाज होती है।
  6. रोग के 15-20 दिन पश्चात् छाले अथवा फफोले सूखने लगते हैं तथा इन पर खुरण्ड जमने लगता है।
  7. खुरण्ड उतर जाने पर त्वचा पर स्थायी चिह्न बने रह जाते हैं।
  8. उतरा हुआ खुरण्ड भारी मात्रा में विषाणुओं का संक्रमण करता है।

रोग से बचने के उपाय:
चेचक एक भयानक संक्रामक रोग है। सभी व्यक्तियों, विशेष रूप से रोगी की परिचर्या करने वाले व्यक्ति को इस रोग से बचने के उपाय अवश्य ही अपनाने चाहिए। एडवर्ड जेनर ने चेचक के टीके का आविष्कार किया, जिसके सफल प्रयोगों के फलस्वरूप आज चेचक को सम्पूर्ण विश्व में नियन्त्रित कर लिया गया है। चेचक से बचाव के कुछ सामान्य एवं सरल उपाय अग्रवर्णित हैं

  1. रोगी को पृथक्, स्वच्छ एवं हवादार कमरे में रखना चाहिए।
  2. रोगी के पासे नीम की ताजी पत्तियों वाली टहनी रखनी चाहिए।
  3. रोगी की परिचर्या करने वाले व आस-पास कै व्यक्तियों को चेचक का टीका अवश्य ही लगवा देना चाहिए।
  4. रोगी को उबालकर ठण्डा किया हुआ जल पीने के लिए देना चाहिए।
  5. तीव्र ज्वर व अन्य प्रकार की परिस्थितियों में किसी कुशल चिकित्सक की देख-रेख में ही रोगी को औषधियाँ देनी चाहिए।
  6. रोगी द्वारा प्रयुक्त वस्त्र, बर्तन इत्यादि को तीव्र नि:संक्रामक प्रयोग कर उबलते पानी से धोना चाहिए।
  7. रोगी के फफोलों पर से उतरने वाले खुरण्डों को जला देना चाहिए।
  8. नि:संक्रमण के लिए डिटॉल, फिनाइल, सैवलॉन, स्प्रिट व कार्बोलिक साबुन इत्यादि का प्रयोग किया जा सकता है।
  9. पूर्ण स्वस्थ होने तक रोगी को कमरे से बाहर नहीं जाने देना चाहिए।

चेचक का उपचार:
सामान्य रूप से चेचक के विशेष उपचार की कोई आवश्यकता नहीं होती क्योंकि यह रोग निश्चित अवधि के उपरान्त अपने आप ही समाप्त हो जाता है, परन्तु समुचित उपचार के माध्यम से रोग की भयंकरता से बचा जा सकता है तथा रोग से होने वाले अन्य कष्टों को कम किया जा सकता है। चेचक के रोगी को हर प्रकार से अलग रखना अनिवार्य है। उसे हर प्रकार की सुविधा दी जानी चाहिए। रोगी के कमरे में अधिक प्रकाश नहीं होना चाहिए, क्योंकि रोशनी से उसकी आँखों में चौंध लगती है, जिसका रोगी की नजर पर बुरा प्रभाव पड़ता है। चेचक के रोगी को पीने के लिए उबला हुआ पानी तथा हल्का आहार ही देना चाहिए। रोगी से सहानुभूतिमय व्यवहार करना चाहिए। किसी चिकित्सक की राय से कोई अच्छी मरहम भी दानों पर लगाई जा सकती है। रोगी को सुझाव देना चाहिए कि वह दानों को खुजलाए नहीं।



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