InterviewSolution
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धन्धा के दृष्टिकोण से ग्राहक सुरक्षा का महत्त्व समझाइए । |
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Answer» धन्धा के दृष्टिकोण से ग्राहक सुरक्षा का महत्त्व (Importance of Consumer Protection from the view point of Business) (1) समाज के साधन-सम्पत्ति का उपयोग : किसी भी धन्धे, का प्रारम्भ और विकास हेतु समाज के साधन-सम्पत्ति का उपयोग करते है तब धन्धा का दायित्व बनता है कि उसने समाज को ऐसे उत्पाद या सेवायें प्रदान करनी चाहिये कि जो समाज को उपयोगी बने और समाज की साधन- सम्पत्ति में वृद्धि करने वाले बने । (2) सामाजिक दायित्व : धन्धे में हित रखनेवाले विविध समूहों के प्रति धन्धा का सामाजिक दायित्व होता है यह सिद्ध हो चुका है । किसी भी धन्धे में आय/लाभ विक्रय द्वारा होता है, और यह विक्रय का कार्य ग्राहकों को होता है । इस तरह ग्राहक भी धन्धे के हितवाले समूह में से एक महत्त्वपूर्ण समूह कहलाता है । अन्य रूप से हित रखनेवाले समूहों की तरह ग्राहकों के प्रति का दायित्व भी प्रत्येक धन्धाकीय इकाई को निष्ठापूर्वक निभानी चाहिए । (3) समाज का एक भाग : कोई भी धन्धा यह समाज का एक भाग है । प्रत्येक व्यापारी किसी अन्य व्यापारी के पास तो ग्राहक ही है । यदि ग्राहक शोषण अनिवार्य हो तो प्रत्येक व्यक्ति का शोषण होना तय है । अतः इसे लिये प्रत्येक धन्धे को अपने धन्धे के उपर ग्राहकों के विश्वास में वृद्धि हो ऐसी नीति अपनानी चाहिए और ग्राहक शोषण से दूर रहना चाहिए । (4) समाज पर प्रभाव : धन्धा का समाज पर प्रभाव होता है । विज्ञापन द्वारा समाज के लोगों की आदत, रहनसहन, विचारधारा, खानपान की बातें, वेशभूषा आदि पर प्रभाव डालता है । इन कारणों से ही समाज के हितों के लिये धन्धे की नीति योग्य रखना यह नैतिक दायित्व सिद्ध होता है । (5) ग्राहक का रक्षण धन्धा का हित : आज के स्पर्धात्मक युग में ग्राहक के पास जाना और उसकी इच्छा और आवश्यकता के अनुसार वस्तुयें देना, यह धन्धे का आधारभूत सिद्धांत है । यदि कोई उत्पादक यह नहीं समझता तो उसे ग्राहक पसन्द नहीं करेगा और उसके स्पर्धकों के पास से ग्राहक वस्तु खरीदेगा । इसलिए ग्राहकों की सुरक्षा और उनकी इच्छा प्रत्येक उत्पादक को समड़ा कर आगे बढ़ना चाहिये । यह उनके व्यवसाय के हित में ही है । (6) ट्रस्टीशिप का सिद्धांत और ग्राहक सुरक्षा : गाँधीजी के ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त के अनुसार समाज ने जिसको सम्पत्ति दी है, जिसका उपयोग उनको समाज के व्यक्तियों के लिये करना चाहिये । ग्राहकों के लिये गाँधीजी कहते हैं कि ‘ग्राहक यह धन्धा के स्थल पर आने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण मानव है । वह हम (धन्धार्थियों) पर आधारित नहीं, परन्तु हम उस पर आधारित है । वह हमारे कार्य में बाधारूप नहीं परन्तु वह हमारे कार्य का हेतु है । वह हमारे धन्धे का बाह्य व्यक्ति नहीं अपितु यह धन्धे का ही भाग है । हम उसको आवश्यक वस्तु देकर उसकी तरफदारी नहीं करते, अपितु वह हमको ऐसा करने का अवसर देकर हमारी तरफदारी करता है ।’ |
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