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धर्म-सुधार आन्दोलन के कुछ प्रमुख कारणों पर विस्तार से प्रकाश डालिए।यायूरोप में प्रोटेस्टेण्ट धर्म-सुधार आन्दोलन के कारणों का वर्णन कीजिए।

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धर्म-सुधार आन्दोलन के प्रमुख कारण धर्म-सुधार आन्दोलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –

1. चर्च के सिद्धान्तों के विरुद्ध असन्तोष मध्यकाल के अन्तिम चरण में रोमन कैथोलिक चर्च के अन्दर ही कुछ मूलभूत सिद्धान्तों के विरुद्ध असन्तोष बढ़ रहा था। कुछ लोग यह मानने लगे थे कि रोमन कैथोलिक चर्च ईसा के उपदेशों, भावनाओं एवं मान्यताओं से दूर हट चुका है। इसलिए चर्च को ईसाई धर्म के ईश्वर-नियुक्त अभिभावक के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। इन सुधारकों ने कहा कि ईसाई सिद्धान्तों का एकमात्र प्रामाणिक स्रोत धर्मग्रन्थ है, न कि संगठित चर्च के निर्णय एवं परम्पराएँ। उन्होंने ईसाई धर्म में मनुष्य और ईश्वर के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्धों पर जोर देना शुरू किया। फलतः पेशेवर पादरी और रोमन कैथोलिक चर्च के संस्कारों का महत्त्व घटने लगा।

2. चर्च में व्याप्त बुराइयाँ धर्म-सुधार आन्दोलन का दूसरा प्रमुख कारण चर्च के अन्तर्गत व्याप्त बुराइयाँ थीं, जो 15वीं एवं 16वीं सदी में पैदा हो गयी थीं। पादरियों की अज्ञानता और विलासिता, चर्च के पदों एवं सेवाओं की बिक्री (सिमोनी), सम्बन्धियों के बीच चर्च के लाभकारी पदों का बँटवारा (नेपोटिज्म) तथा एक पादरी द्वारा एक से अधिक पद रखे रहना (प्लुरेलिज़म) यह सभी असन्तोष एवं शिकायत के कारण थे। पापी-से-पापी व्यक्ति भी चर्च को पैसे देकर अपने पापों से मुक्ति प्राप्त कर सकता था। सच्चे धर्मात्मा एवं श्रद्धालु लोगों को ये बातें बुरी लगती थीं। वे यह नहीं समझ पाते थे कि जो व्यक्ति पाप करते हैं, उन्हें ईश्वर पैसा लेकर कैसे छोड़ देगा?

3. आर्थिक कारण आर्थिक कारणों ने नि:सन्देह धर्म-सुधार आन्दोलन में उल्लेखनीय भूमिका निभायी। उस समय तक पश्चिमी यूरोप के देशों में राष्ट्रीय राज्य कायम हो चुके थे। राजाओं को सेना व प्रशासन का खर्च चलाने के लिए अधिक धन की आवश्यकता थी। पादरियों द्वारा वसूला जाने वाला कर’ रोम चला जाता था। इसके अतिरिक्त पादरी वर्ग धनी होते हुए भी करों से मुक्त था। राजा चाहते थे कि राज्य का शासन चलाने के लिए चर्च पर कर लगाया जाए। वाणिज्य-व्यापार के कारण जब मुद्रा-प्रधान अर्थव्यवस्था कायम हुई तब कर्ज लेने की प्रथा जोरों से चल पड़ी। परन्तु चर्च की मान्यता थी कि कर्ज लेना पाप है। अत: चर्च के सिद्धान्त व्यापार की प्रगति में बड़े बाधक थे। इसलिए व्यापारी एक ऐसा धर्म चाहते थे जो उनके कार्यों का समर्थन करे।

4. चर्च द्वारा किसानों का शोषण चर्चशोषित किसानों का असन्तोष भी धर्म-सुधार आन्दोलन का कारण था। चर्च स्वतः ही एक बड़ा सामन्त था। भू-अनुदान के रूप में उसके पास बहुत अधिक भूमि का स्वामित्व था। किसान चर्च के कर से पिसते जा रहे थे। पादरी, सामन्त-प्रथा एवं किसानों (कम्मियों) के शोषण का समर्थन करते थे। इसलिए जाग्रत किसान उनसे नाराज थे और कभी-कभी विद्रोह भी कर देते थे।

5. धर्म के प्रति कट्टरवादिता पुनर्जागरण के कारण चर्च और उसके प्रधान पोप के विरुद्ध विद्रोह की भावना और बलवती हो उठी। चर्च सम्भवत: नवीन विचारधारा का सबसे जबरदस्त विरोधी था। वह नहीं चाहता था कि पुराने विश्वासों और रूढ़ियों को उखाड़कर नये सिद्धान्तों की स्थापना हो। परन्तु मुद्रण (प्रिण्टिग) कला के विकास से धार्मिक ग्रन्थों को पढ़कर एवं विचारकों के विचार जानकर लोगों को पता चल गया कि ईसाई धर्म का सच्चा स्वरूप क्या है तथा बीच के काल में जो अन्धविश्वास प्रविष्ट हो गये हैं वे पादरी वर्ग के निहितार्थों के कारण हुए थे। अत: इससे धर्म का स्वरूप विकृत हो गया था। वे इस बात का प्रयत्न करने लगे कि धर्म का प्राचीन रूप पुनः प्रतिष्ठित हो।

निष्कर्ष – सोलहवीं शताब्दी के अन्त तक चर्च के विरुद्ध धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक और बौद्धिक असन्तोष चरम सीमा तक पहुँच चुका था। विद्रोह के लिए केवल एक सक्रिय नेता और विस्फोट के लिए एक घटना की आवश्यकता थी। प्रोटेस्टेण्ट धर्म-सुधार तीन विशिष्ट परन्तु सम्बद्ध आन्दोलनों-लूथरवाद, काल्विनवाद और ऐंग्लिकनवाद से मिलकर संघटित हुआ। मार्टिन लूथर का विद्रोह धर्म-सुधार की शुरुआत थी।



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