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दिए गए पद्यांशों को फ्ढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिएवे रोगी होंगे प्रेम जिन्हें अनुभव-रस का कटु प्याला है-वे मुर्दे होंगे प्रेम जिन्हें सम्मोहन-कारी हाला है।मैंने विदग्ध हो जान लिया, अन्तिम रहस्य पहचान लिया-मैंने आहुति बनकर देखा यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है !(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) कवि ने रोगी किसे बताया है?(iv) किनको संवेदनाहीन मृतक की संज्ञा दी गयी है?(v) कवि ने यह कैसे सिद्ध किया है कि प्रेम यज्ञ की ज्वाला के समान पवित्र और कल्याणकारी

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(i) प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रयोगवाद के प्रवर्तक श्री सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन’अज्ञेय’ द्वारा रचित ‘पूर्वा’ कविता-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘मैंने आहति बनकर देखा’ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं।
अथवा
शीर्षक का नाम- 
मैंने आहुति बनकर देखा।
कवि का नाम–सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कवि अज्ञेय का कहना है कि प्रेम जीवन में माधुर्य और सरसता का संचार करता है तथा व्यक्ति को एक नवीन चेतना और उत्साहित करने वाली नव-प्रेरणा प्रदान करता है। यह निष्प्राण व्यक्ति में भी प्राण डाल देता है। कवि कहता है कि मैंने स्वयं अनुभूत करके प्रेम के सच्चे स्वरूप और उसकी महत्ता को जान लिया है। मुझे प्रेम का यह तत्त्व अथवा रहस्य ज्ञात हो गया है कि प्रेम यज्ञ की उस ज्वाला के समान पवित्र और कल्याणकारी है, जो भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टियों से व्यक्ति के लिए आवश्यक और मंगलकारी है। साथ ही प्रेम के इस मंगलकारी स्वरूप की अनुभूति तथा प्रेमरूपी यज्ञ की ज्वाला के दर्शन उसी समय सम्भव हो पाते हैं, जब व्यक्ति स्वयं प्रेमरूपी यज्ञ में अपनी आहुति देता है। आशय यह है कि कठिनाइयों और बाधाओं को पार करके तथा संघर्ष में तपकर ही हम प्रेम के तत्त्व को पहचान सकते हैं।
(iii) कवि ने उन लोगों को रोगी बताया है जो प्रेम को कटु अनुभवों का प्याला बताते हैं।
(iv) जो लोग प्रेम को अचेतन करने वाली मदिरा कहते हैं उनको संवेदनाहीन मृतक की संज्ञा दी है।
(v) कवि ने स्वयं व्यक्तिगत गहन अनुभूमि के आधार पर यह सिद्ध किया है कि प्रेम यज्ञ की ज्वाला के समान पवित्र और कल्याणकारी है।



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