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दण्ड देते समय ध्यान में रखने योग्य महत्त्वपूर्ण बातों का उल्लेख कीजिए। या विद्यालय में दण्ड देते समय किन-किन सावधानियों को ध्यान में रखना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।

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दण्ड देते समय ध्यान रखने योग्य महत्त्वपूर्ण बातें
विद्यालय में अनुशासन स्थापित करने में दण्डों का अपना एक विशेष महत्त्व है। इसके बिना अनुशासन स्थापित होना कठिन है। दण्ड अनेक प्रकार के होते हैं। कौन-सा दण्ड कब दिया जाए, कितनी मात्रा में दिया जाए, किसके द्वारा दिया जाए आदि कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जिनका उत्तर जाने बिना हम दण्डों से यथोचित लाभ प्राप्त नहीं कर सकते। इसीलिए दण्ड देते समय बहुत-सी सावधानियाँ रखनी पड़ती हैं। इनका विवरण इस प्रकार है

1. दण्ड अपराध के अनुरूप हो :
जिस प्रकार का अपराध किया जाए, उसी के अनुरूप या उसी प्रकार का दण्ड भी दिया जाए। यदि कोई छत्र कक्षा में देर से आता है तो उसे छुट्टी के बाद देर तक रोका जाए। यदि वह गृहकार्य करके नहीं लाता तो अपने सामने उसे गृह-कार्य करायें। आजकल अधिकतर अपराधों के लिए आर्थिक दण्ड दिया जाता है, जो कि उचित नहीं है। केवल विद्यालय की कोई वस्तु तोड़ने पर ही आर्थिक दण्ड देना चाहिए।
2. दण्ड अपराध के अनुपात में हो :
छोटे अपराध करने पर छोटा दण्ड और बड़ा अपराध करने पर बड़ा दण्ड देना चाहिए। दण्ड की मात्रा अपराध की गम्भीरता के अनुकूल होनी चाहिए, तभी उसका यथोचित प्रभाव पड़ता है।
3. दण्ड बालक की प्रकृति के अनुरूप हो :
कुछ बालक शरीर से कमजोर होते हैं। ऐसे बालकों को कठोर शारीरिक दण्ड नहीं देना चाहिए। कुछ बालकों को थोड़ा डाँटने भर से ही गहरा प्रभाव पड़ जाता है, उन्हें अधिक मात्रा में दण्ड नहीं देना चाहिए। कुछ बालकों पर साधारण झिड़कियों का कोई प्रभाव नहीं | पड़ता, ऐसे बालक के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था होनी चाहिए।
4. दण्ड गम्भीरता के साथ देना चाहिए :
दण्ड देते समय अध्यापक को गम्भीर रहना चाहिए। प्रफुल्ल मुद्रा या मजाक करते हुए दण्ड नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि इसका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता. और छात्र दण्ड के महत्त्व को नहीं समझ पाता।
5. दण्ड के कारण का ज्ञान :
दण्डित होने वाले छात्र को यह अवश्य ज्ञान होना चाहिए कि उसे किस कारण से दण्ड दिया जा रहा है, तभी छात्र अपराध के कारण को दूर करने का प्रयास करेगा।
6. समयानुकूल दण्ड :
अंपराध और दण्ड के मध्य समय का अन्तराल अधिक नहीं होना चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो सके अपराध करने के तुरन्त बाद दण्ड दिया जाना चाहिए ताकि अपराध और दण्ड में सम्बन्ध बना रहे। अपराध के बहुत समय बाद दण्ड देने से दोनों के बीच सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाता।
7. उचित दण्ड :
किसी अपराध के लिए जो दण्ड दिया जाए, वह अध्यापक, दण्डित होने वाले छात्र और अन्य छात्रों की दृष्टि में उचित होना चाहिए। दण्ड अनुचित होने पर छात्रों में असन्तोष की भावना उत्पन्न होती है।
8. सम्पूर्ण समूह को दण्ड नहीं देना चाहिए :
कभी-कभी कक्षा के कुछ छात्र शोरगुल करते हैं या गलती करते हैं तो कक्षा के सभी छात्रों पर मार पड़ती है या जुर्माना किया जाता है। यह सुधारक दण्ड
अनुचित है। दण्ड केवल उन्हीं छात्रों को देना चाहिए, जिन्होंने कोई ) दण्ड देने वाले का व्यक्हार अपराध किया हो।
9. दण्ड विचारपूर्वक दिया जाए :
अपराध के कारण को। जानकर तथा अपराध की गुरुता को समझकर ही दण्ड देना चाहिए, अन्यथा कभी-कभी गलत दण्ड दे दिया जाता है। अतः दण्ड देने से पूर्व विचार-विमर्श करना आवश्यक है।
10. उदाहरण बोध दण्ड :
अपराधी बालक को इस प्रकार दण्डित करना चाहिए कि अन्य देखने वाले छात्रों के सामने वह एक उदाहरण का कार्य करे और अन्य छात्र इस प्रकार का अपराध करने की ओर प्रवृत्त न हों।
11. सुधारक दण्ड :
दण्ड में बदले या प्रतिशोध की भावना नहीं होनी चाहिए। दण्ड सुधार करने की भावना से दिये जाने चाहिए, तभी उनको यथेष्ट प्रभाव पड़ता है।
12. दण्ड देने वाले का व्यवहार सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए :
दण्ड क्रोध या बदले की भावना से न देकर सहानुभूतिपूर्ण तरीके से देना चाहिए ताकि छात्र यह समझे कि अध्यापक हमारा हितचिन्तक है। इसलिए मुझे अमुक अपराध के लिए दण्डित किया गया है।



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