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ग्राम्य विकास हेतु भारत सरकार द्वारा किये गये विभिन्न प्रयासों की व्याख्या कीजिए।

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ग्राम्य विकास हेतु भारत सरकार द्वारा किये गये प्रयास
भारत की 75 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में निवास करती है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् गाँवों का सर्वांगीण विकास करने के उद्देश्य से अनेकों कार्यक्रम एवं योजनाएँ संचालित की गयीं जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

1. सामुदायिक विकास योजना – गाँवों के सर्वांगीण विकास के उद्देश्य से देश में 1952 ई० से सामुदायिक विकास योजना आरम्भ की गयी। सामुदायिक विकास आत्म-सहायता का कार्यक्रम है। अर्थात् ग्रामीण जनता स्वयं ही योजनाएँ बनाये और उन्हें कार्यान्वित करे तथा सरकार की ओर से केवल तकनीकी मार्गदर्शन एवं वित्तीय सहायता ही मिले। अन्य शब्दों में, “सामुदायिक विकास का अर्थ ग्रामीण जनता के सर्वांगीण विकास से है।” सामुदायिक विकास में कृषि, पशुपालन, सिंचाई, सहकारिता, स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्राम पंचायत तथा ग्रामीण जीवन के सभी पक्ष सम्मिलित होते हैं।
सामुदायिक विकास योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं
⦁    जनता के परम्परावादी दृष्टिकोण को धीरे-धीरे बदलकर उन्हें स्वस्थ व वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान करना।
⦁    जनता में सहकारिता की भावना जागृत करना।
⦁    कृषि-उत्पादन में वृद्धि करना तथा किसानों को वैज्ञानिक विधि से खेती करने, बागवानी करने, पशुपालन वे मछली-पालन के तरीकों का ज्ञान कराना।
⦁    ग्रामीण कुटीर एवं लघु उद्योगों का विस्तार एवं विकास करके रोजगार सुविधाओं में वृद्धि करना।
⦁    गाँवों को अपनी आधारभूत आवश्यकताओं भोजन, वस्त्र और आवास के मामलों में आत्मनिर्भर बनाना।
⦁    गाँवों में सड़कों, पाठशालाओं, स्वास्थ्य केन्द्रों आदि का निर्माण कराना तथा इस प्रकार ग्राम्य विकास करना।
⦁    ग्रामीण अशिक्षा को दूर करने का प्रयास करना।
⦁    गाँवों में स्वच्छता लाना, शुद्ध पीने के पानी की व्यवस्था करना तथा बीमारियों से बचने के विषय में जानकारी देना।
⦁    ग्रामीण क्षेत्रों में कच्ची तथा पक्की सड़कों का निर्माण कराना, पशु परिवहन का नवीनीकरण करना तथा मोटर परिवहन का विकास करना।
⦁    विभिन्न उपायों द्वारा ग्रामीण परिवारों की आय में वृद्धि करना।
उपर्युक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने की दृष्टि से सम्पूर्ण देश को 5,011 सामुदायिक विकास-खण्डों में बाँटा गया है। वर्तमान समय में एक खण्ड में 100 गाँव हैं जिनकी जनसंख्या 1 लाख तथा क्षेत्रफल 620 वर्ग किमी है।
इस योजना का ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर अच्छा प्रभाव पड़ा है, जिसका संक्षिप्त विवरण अग्रलिखित है
⦁    सामुदायिक विकास योजना कृषि विकास के उद्देश्य में पर्याप्त रूप से सफल रही है। उत्तम बीजों, उर्वरकों, कृषि-यन्त्रों, सिंचाई सुविधाओं आदि के कारण कृषि-उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
⦁    इस योजना के फलस्वरूप गाँवों में कच्ची तथा पक्की सड़कों का निर्माण हुआ है।
⦁    विकास-खण्डों ने अपने क्षेत्र की हजारों हेक्टेयर बंजर भूमियों को कृषि योग्य बनाया है। भूमि कटाव को रोकने के लिए नयी मेड़े भी बनायी गयी हैं।
⦁    विकास-खण्डों ने पशुओं की नस्लों में सुधार करने के लिए हजारों कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र खोले हैं।
⦁    सामुदायिक विकासखण्डों ने गाँवों में पक्की नालियाँ, पक्की गलियाँ, शौचालय, कुओं आदि का निर्माण कराया है।
⦁    ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा-प्रचार एवं प्रसार हेतु प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र तथा सिलाई केन्द्र खोले गये हैं।
⦁    ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर तथा लघु उद्योग खोलने के लिए किसानों को वित्तीय सहायता दी जाती है तथा ग्रामीण कारीगरों को करोड़ों रुपये के ऋण दिये जाते हैं।
⦁    गाँवों में आय की असमानताओं को दूर करने के लिए तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने के लिए सम्पूर्ण ग्राम विकास कार्यक्रम’ को आरम्भ किया गया है।
उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि सामुदायिक विकास कार्यक्रम से ग्रामीण जनता की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
2. जवाहर ग्राम समृद्धि योजना – जवाहर ग्राम समृद्धि योजना पहले की जवाहर रोजगार योजना का पुनर्गठित, सुव्यवस्थित और व्यापक स्वरूप है। यह योजना अप्रैल, 1999 ई० को प्रारम्भ की गयी।
उद्देश्य – जवाहर ग्राम समृद्धि योजना का उद्देश्य गाँव में रहने वाले गरीबों को जीवनस्तर सुधारना और उन्हें लाभप्रद रोजगार के अवसर प्रदान कराना है। जवाहर ग्राम समृद्धि योजना दिल्ली और चण्डीगढ़ को छोड़कर समग्र देश में सभी ग्राम पंचायतों में लागू की गयी है। योजना में खर्च की जाने वाली राशि 75: 25 के अनुपात में केन्द्र व राज्य सरकार वहन करेगी। केन्द्रशासित प्रदेशों के मामले में सम्पूर्ण व्यय केन्द्र वहन करेगा। योजना को पूर्णत: ग्राम पंचायत स्तर पर ही लागू किया गया है।
योजना के अन्तर्गत मजदूरी राज्य सरकार निर्धारित करेगी तथा ग्राम पंचायतों को जनसंख्या के आधार पर धनराशि का आवंटन बिना किसी सीमा के किया जाएगा। योजना की 22.5 प्रतिशत धनराशि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की अलग लाभार्थी योजनाओं के लिए निर्धारित की गयी है।
3. कुटीर ज्योति कार्यक्रम – भारत में गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले ग्रामीण परिवारों के जीवन-स्तर में सुधार करने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1988-89 में ‘कुटीर ज्योति कार्यक्रम प्रारम्भ किया। इसके अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता की रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों को एक बत्ती विद्युत कनेक्शन उपलब्ध कराने के लिए ₹400 की सरकारी सहायता उपलब्ध कराई जाती है।
4. अन्नपूर्णा योजना – यह योजना निर्धन एवं असहाय वरिष्ठ नागरिकों को नि:शुल्क खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए, केन्द्र सरकार के ग्रामीण विकास मन्त्रालय द्वारा मार्च, 1999 ई० में प्रारम्भ की गयी, जो निर्धनता रेखा से नीचे के 14 लाख नागरिकों के लिए लक्षित थी। अन्नपूर्णा योजना के अन्तर्गत पात्र नागरिकों को प्रति माह 10 किग्रा अनाज नि:शुल्क उपलब्ध कराने का प्रावधान है।
5. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना (A.S.G.S.Y.) – स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना को 1 अप्रैल, 1999 ई० से प्रारम्भ किया गया था। इस योजना का उद्देश्य लघु उद्यमों को बढ़ावा देना तथा ग्रामीण निर्धनों को अपने स्व-सहायता समूहों (एस०एस०जी०) में संगठित करने में सहायता प्रदान करना है। यह योजना ग्रामीण निर्धनों को अपने स्व-सहायता समूहों के संगठन और उनकी क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण, सामूहिक गतिविधियों का नियोजन, ढाँचागत विकास, बैंक ऋण और विपणन सम्बन्धी सहायता आदि जैसे स्वरोजगार के सभी पक्षों को कवच प्रदान करती है। इस योजना को केन्द्र और राज्यों के बीच 75 : 25 के लागत बँटवारे के अनुपात के आधार पर केन्द्रीय प्रायोजित योजना के रूप में कार्यान्वित किया जा रहा है।
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना में इससे पहले के स्वरोजगार से सम्बद्ध कार्यक्रमों तथा समन्वित ग्राम विकास कार्यक्रम (IRDP), स्वरोजगार के लिए ग्रामीण युवाओं का प्रशिक्षण कार्यक्रम (TRYSEM), ग्रामीण क्षेत्र में महिला एवं बाल विकास कार्यक्रम (DwCRA), ग्रामीण दस्तकारों को उन्नत औजारों के किट की आपूर्ति का कार्यक्रम (SITRA), गंगा कल्याण योजना तथा दस लाख कुआँ योजना को भी समेकित कर दिया गया है। अब ये कार्यक्रम अलग से नहीं चल रहे हैं।
6. रोजगार आश्वासन योजना (EAS) – रोजगार आश्वासन योजना 2 अक्टूबर, 1993 ई० से ग्रामीण क्षेत्रों के 257 जिलों के 1,770 विकास-खण्डों में प्रारम्भ की गयी थी। बाद में यह योजना वर्ष 1997-98 तक देश के सभी 5,448 ग्रामीण पंचायत समितियों में विस्तारित कर दी गयी। इस योजना को एकल-मजदूरी रोजगार कार्यक्रम बनाने के लिए वर्ष 1999-2000 में इसकी पुनः संरचना की गयी और 75: 25 के लागत : अनुपात के आधार पर इसे केन्द्रीय प्रायोजित योजना के रूप में कार्यान्वित किया गया।
इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक परिवार से अधिकतम दो युवाओं को 100 दिन तक का लाभप्रद रोजगार उपलब्ध कराना है। योजना का दूसरा गौण उद्देश्य पर्याप्त रोजगार तथा विकास के लिए आर्थिक अधोरचना तथा सामुदायिक परिसम्पत्तियों का सृजन करना है। रोजगार आश्वासन एक माँग चालित कार्यक्रम है; अत: इसके अन्तर्गत भौतिक लक्ष्य निर्धारित नहीं किये गये हैं।
7. सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (SGRY) – ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा के लिए प्रस्तावित नयी सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना का शुभारम्भ प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 25 सितम्बर, 2001 ई० को किया। ग्रामीण विकास मन्त्रालय द्वारा संचालित की जाने वाली इस योजना के लिए के ₹10 हजार करोड़ वित्तीय वर्ष 2001-02 के लिए मन्त्रिमण्डल द्वारा स्वीकृत किये गये। ₹10 हजार करोड़ की इस राशि में से है ₹5,000 करोड़ का भुगतान भारतीय खाद्य निगम को उसके द्वारा उपलब्ध कराये जाने वाले अनाज के मूल्य के रूप में किया जाएगा, जबकि शेष ₹ 5,000 करोड़ की अदायगी लाभान्वित होने वाले श्रमिकों को मजदूरी के रूप में दी जाएगी।
पंचायती संस्थाओं के माध्यम से लागू की जाने वाली इस योजना के द्वारा प्रतिवर्ष 100 करोड़ मानव दिवस रोजगार सृजित होने की सम्भावना है। योजना को दो चरणों में लागू किया जाएगा। पहले चरण में इसमें जिला व ब्लॉक पंचायत को सम्मिलित किया जाएगा। योजना के अन्तर्गत आवंटित 50 प्रतिशत राशि इस चरण में व्यय होगी, जिसमें जिला परिषद् को 20 प्रतिशत व पंचायत समितियों को 30 प्रतिशत हिस्सा मिलेगा। दूसरे चरण में ग्राम पंचायतों को सम्मिलित किया जाएगा। योजना के अन्तर्गत 50 प्रतिशत राशि इस चरण में व्यय होगी। इस योजना के अन्तर्गत कार्य करने वाले बेरोजगारों को प्रतिदिन 5 किलो खाद्यान्न दिया जाएगा तथा शेष भुगतान मुद्रा में किया जाएगा। योजना के जरिये ग्रामीण क्षेत्रों में सूखे से निपटने के उपाय व भूसंरक्षण के साथ पारम्परिक जल स्रोतों के निर्माण, सड़क, विद्यालय सहित अन्य भवनों के निर्माण कार्य भी किये जाएँगे।
8. प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना (PMGY) – ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के जीवन-स्तर में सुधार लाने के समग्र उद्देश्य से स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, पेयजल, आवास तथा ग्रामीण सड़कों जैसे पाँच महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में ग्रामीण स्तर पर विकास करने पर ध्यान देने के लिए यह योजना वर्ष 2000-01 में प्रारम्भ की गयी।
9. ग्रामीण आवास के लिए कार्य-योजना – 1991 ई० की जनगणना के अनुसार, लगभग 3.1 मिलियन परिवार बेघर हैं और अन्य 10.31 मिलियन परिवार कच्चे घरों में रहते हैं। इस समस्या की व्यापकता को देखते हुए वर्ष 1998 में राष्ट्रीय गृह आवासन नीति की घोषणा की गयी थी, जिसका उद्देश्य ‘सबके लिए आवास उपलब्ध कराना है और जो निर्धन एवं साधनहीन लोगों को लाभ देने पर जोर देते हुए प्रति वर्ष 20 लाख अतिरिक्त आवास यूनिटों (13 लाख ग्रामीण क्षेत्रों में और 7 लाख शहरी क्षेत्रों में) के निर्माण को सुसाध्य बनाती है। सरकार दसवीं योजनावधि के अन्त तक सभी के लिए आश्रय-स्थल सुनिश्चित करने के लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्ध है। इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए ग्रामीण आवास हेतु एक व्यापक कार्य-योजना बनायी गयी है, जिनमें मुख्य रूप से अग्रलिखित योजनाएँ भी सम्मिलित हैं
⦁    इन्दिरा आवास योजना (IAY) – इन्दिरा गांधी आवास योजना का उद्देश्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और मुक्त किये गये बँधुआ मजदूरों की श्रेणियों से सम्बन्धित गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों को सहायता प्रदान करना है।
⦁    प्रधानमन्त्री ग्रामोदय ग्रामीण आवास योजना – ग्राम स्तर पर स्थायी मानव-विकास का उद्देश्य पूरा करने के लिए प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना वर्ष 2000-01 के मध्य प्रारम्भ की गयी व्यापक प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना का एक भाग है। वर्ष 2001-02 के दौरान प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना के घटक ग्रामीण आश्रय-स्थल’ को कार्यान्वित करने के लिए 280 करोड़ उपलब्ध कराये गये हैं।
⦁    आवास हेतु हुडको को सहायता –  ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और कम आय के वर्गों की आवश्यकता को पूरी करने और ग्रामीण क्षेत्रों में आवास वित्त पहुँचाने की स्थिति में सुधार करने के लिए, नौवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि में हुडको को दी जाने वाली इक्विटी सहायता ₹ 5 करोड़ से बढ़ाकर ₹ 355 करोड़ कर दी गयी है।
उम्मीद की जा सकती है कि यदि इन योजनाओं को ईमानदारी और सत्यनिष्ठा से संचालित किया गया तो ग्रामीण विकास में हमें अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन एवं सुधार देखने को मिलेंगे।



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