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Answer» स्वतन्त्रता के पश्चात् देश को तीव्र गति से आर्थिक विकास करने के लिए नियोजन का मार्ग अपनाया गया। भारत एक ग्राम-प्रधान देश है। यदि हम भारत का आर्थिक विकास करना चाहते हैं तो ग्राम्य विकास के बिना आर्थिक विकास की कल्पना करना निरर्थक होगा; अतः भारत के आर्थिक विकास के लिए 1950 ई० में योजना आयोग की स्थापना की गयी। देश की प्रथम पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1951 ई० से प्रारम्भ की गयी तथा अब तक 11 पंचवर्षीय योजनाएँ अपना कार्यकाल पूरा कर चुकी हैं। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में ग्राम्य विकास की ओर सर्वाधिक ध्यान केन्द्रित किया गया है, जिसका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है 1. प्रथम पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1951 ई० से 31 मार्च, 1956 ई० तक) – प्रथम पंचवर्षीय योजना की रूपरेखा में कहा गया था कि नियोजन का केन्द्रीय उद्देश्ये जनता के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाना है और उसके लिए एक अधिक सुख-सुविधापूर्ण जीवन प्रदान करना है। प्रथम पंचवर्षीय योजना मुख्य रूप से कृषिप्रधान योजना थी। इस योजना में सम्पूर्ण योजना की लगभग तीन-चौथाई धनराशि कृषि, सिंचाई, शक्ति तथा यातायात पर व्यय की गयी। 2. द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1956 ई० से 31 मार्च, 1961 ई० तक) – द्वितीय पंचवर्षीय योजना में भी कृषि को महत्त्व प्रदान किया गया था, परन्तु औद्योगिक विकास को अधिक प्राथमिकता दी गयी थी। ग्राम्य विकास की ओर द्वितीय योजना में भी पूर्ण ध्यान दिया गया था। 3. तीसरी पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1961 ई० से 31 मार्च, 1966 ई० तक) – तीसरी योजना में ग्राम्य विकास हेतु कृषि विकास को पर्याप्त महत्त्व दिया गया था। योजना आयोग ने कृषि को प्राथमिकता देते हुए लिखा था–“तृतीय योजना की विकास युक्तेि में कृषि को ही अनिवार्यतः सर्वाधिक प्राथमिकता मिलनी चाहिए। पहली दोनों योजनाओं का अनुभव यह प्रदर्शित करता है कि कृषि-क्षेत्र की विकास-दर भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को प्रतिबन्धात्मक कारण है, इसलिए कृषि-उत्पादन को बढ़ाने के यथा-सम्भव अधिक प्रयास करने होंगे।” 4. तीन वार्षिक योजनाएँ (1966-67, 1967-68, 1968-69) – तृतीय पंचवर्षीय योजना 31 मार्च, 1966 ई० को समाप्त हो गयी थी। चतुर्थ योजनों को 1 अप्रैल, 1966 ई० से प्रारम्भ होना चाहिए था, किन्तु तृतीय योजना की असफलता के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन लगभग स्थिर हो गया था; अतः चौथी योजना को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया गया तथा उसके स्थान पर तीन वार्षिक योजनाएं लागू की गयीं। कुछ अर्थशास्त्रियों ने तो 1966 ई० से 1969 ई० तक की अवधि को ‘योजना अवकाश’ का नाम दिया। चौथी पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1969 ई० से ही आरम्भ हो सकी। 5. चौथी पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1969 ई० से 31 मार्च, 1974 ई० तक) – तीन वर्ष के योजना अवकाश के बाद देश में कृषि क्षेत्र में हरित क्रान्ति की सफलता के वातावरण में चौथी योजना प्रारम्भ हुई। इस योजना के दो मुख्य उद्देश्य थे – स्थिरता के साथ विकास तथा देश को आत्मनिर्भर बनाना। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए इस योजना में ग्राम्य विकास हेतु निम्नलिखित कदम उठाये गये ⦁ आर्थिक विकास लगभग 5.5% वार्षिक दर से करना, ⦁ कृषि के उत्पादन में वृद्धि करना, ⦁ सामाजिक सेवामा को बढ़ाना तथा ⦁ पिछड़े क्षेत्रों के विकास पर विशेष बल देना। इस प्रकार चौथी पंचवर्षीय योजना में ग्राम्य विकास की ओर विशेष महत्त्व दिया गया। चतुर्थ पंचवर्षीय योजना के छ रूप से ग्राम्य विकास हेतु बनाये गये कार्यक्रम थे ⦁ लघु कृषक विकास एजेन्सी (S.ED.A.), ⦁ सीमान्त किसान एवं कृषि-श्रमिक एजेन्सी (M.FA.L.A.), ⦁ सूखा प्रवृत क्षेत्र कार्यक्रम (D.PA.P), ⦁ ग्रामीण रोजगार के लिए पुरजोर स्कीम (Crash Scheme for Rural Employment) आदि। 6. पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1974 से 31 मार्च, 1978 ई० तक) – पाँचवीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल चार वर्ष ही रहा, क्योंकि इस योजना को एक वर्ष पहले ही 1978 ई० में स्थगित कर दिया गया था। इस योजना में ऐसी व्यवस्था की गयी थी कि व्यय की जाने वाली राशि से सभी क्षेत्रों का विशेषत: पिछड़े वर्गों व क्षेत्रों का अधिकतम सन्तुलित विकास हो सके; अत: इस योजना में कृषि, सिंचाई, शक्ति एवं सम्बन्धित क्षेत्रों पर और पिछड़े वर्गों व पिछड़े क्षेत्रों की उन्नति करने पर अधिक बल दिया गया था। पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में न्यूनतम आवश्यकताओं को राष्ट्रीय कार्यक्रम; जिसमें प्राथमिक शिक्षा, पीने का पानी, ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा, पौष्टिक भोजन, भूमिहीन श्रमिकों को मकानों के लिए जमीन, ग्रामीण सड़कें, ग्रामों का विद्युतीकरण एवं गन्दी बस्तियों की उन्नति एवं सफाई पर अधिक बल दिया गया। पाँचवीं योजना में, काम के बदले अनाज कार्यक्रम व न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम चलाये गये। ये समस्त योजनाएँ ग्रामीण क्षेत्रों के अति निर्धन लोगों के लिए थीं। इन परियोजनाओं के द्वारा दो प्रकार से सहायता दी जाती थी-एक तो वित्तीय तथा दूसरे, सरकारी लोक कार्य परियोजनाओं से अति निर्धन किसानों व मजदूरों के लिए प्रत्यक्ष रोजगार की व्यवस्था। जनता पार्टी के शासनकाल में समाज के सर्वाधिक निर्धन व्यक्तियों को उत्पादक रोजगार अवसर उपलब्ध कराकर उन्हें निर्धनता के कुचक्र से बाहर निकालने के लिए ‘अन्त्योदय कार्यक्रम’ वर्ष 1977-78 में प्रारम्भ किया गया। 7. छठी पंचवर्षीय योजना ( 1 अप्रैल, 1980 ई० से 31 मार्च, 1985 ई० तक) – जनता पार्टी की सरकार द्वारा 1 अप्रैल, 1978 ई० से ही छठी पंचवर्षीय योजना एक अनवरत योजना के रूप में लागू की गयी थी। लेकिन कांग्रेस सरकार द्वारा इस योजना को दो वर्ष बाद ही 1980 ई० में समाप्त घोषित कर दिया गया और 1 अप्रैल, 1980 ई० से छठी संशोधित पंचवर्षीय योजना लागू की गयी। छठी योजना में ग्रामीण क्षेत्रों में समन्वित विकास का कार्यक्रम चलाया गया। रोजगार के अवसर बढ़ाकर बेरोजगारी दूर करने के लिए श्रमप्रधान क्षेत्रों; जैसे–कृषि, लघु और ग्रामीण उद्योगों तथा इनसे जुड़े हुए कार्यक्रमों को बढ़ाया गया। रोजगार के अवसर बढ़ने से गरीबों की आय बढ़ी और जीवन-स्तर में सुधारे हुआ। छठी योजना के दौरान 1980 ई० में सरकार ने ग्रामीण श्रम-शक्ति कार्यक्रम, पुरजोर योजना तथा काम के बदले अनाज योजना के स्थान पर राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। इस कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य लाभकारी रोजगार के अवसरों में वृद्धि, स्थायी सामुदायिक सम्पत्तियों का निर्माण तथा ग्रामीण निर्धनों के आहार स्तर में वृद्धि करना था। ग्रामीण युवा वर्ग की बेरोजगारी को दूर करने के लिए अगस्त, 1979 ई० में ‘ट्राइसेम’ योजना प्रारम्भ की गयी। 1983 ई० में ‘ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। S.ED.A., M.E.A.L.A आदि योजनाओं के दोहरेपन को दूर करने के लिए 1978-79 ई० में एकीकृत ग्राम्य विकास कार्यक्रम (I.R.D.P) प्रारम्भ किया गया तथा 2 अक्टूबर, 1980 ई० से उसे पूरे देश में लागू कर दिया गया। 8. सातवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1985 ई० से 31 मार्च, 1990 ई० तक) – ग्रामीण विकास हेतु सातवीं पंचवर्षीय योजना में अनेक कार्यक्रम चलाये गये। ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए सातवीं योजना में अप्रैल, 1989 ई० से एक व्यापक योजना ‘जवाहर रोजगार योजना प्रारम्भ की गयी थी। पूर्व में चल रहे दो प्रमुख ग्रामीण रोजगार कार्यक्रमों-राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम’ तथा ‘ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम का विलय अप्रैल, 1989 ई० में जवाहर रोजगार योजना में ही कर दिया गया। 9. आठवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1992 ई०से 31 मार्च, 1997 तक) – तत्कालीन प्रधानमन्त्री एवं योजना आयोग के अध्यक्ष पी०वी० नरसिंह राव के अनुसार, आठवीं योजना के मूलभूत उद्देश्य निम्नलिखित थे ⦁ सभी गाँवों एवं समस्त जनसंख्या हेतु पेयजल तथा टीकाकरण सहित प्राथमिक चिकित्सा सुविधाओं का प्रावधान करना तथा मैला ढोने की प्रथा को पूर्णतः समाप्त करना। ⦁ खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता एवं निर्यात योग्य बचत प्राप्त करने हेतु कृषि का विकास एवं विस्तार करना। ⦁ प्रारम्भिक शिक्षा को सर्वव्यापक बनाना तथा 15 से 35 वर्ष की आयु के मध्य के लोगों में निरक्षरता को पूर्णतः समाप्त करना। ⦁ शताब्दी के अन्त तक लगभग पूर्ण रोजगार के स्तर को प्राप्त करने की दृष्टि से पर्याप्त रोजगार का सृजन करना। ⦁ 2 अक्टूबर, 1993 ई० से सरकार ने रोजगार आश्वासन योजना लागू की। 10. नौवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1997 ई० से 31 मार्च, 2002 ई० तक) – नौवीं पंचवर्षीय योजना में निम्नलिखित उद्देश्य स्वीकार किये गये ⦁ पर्याप्त उत्पादक रोजगार पैदा करना तथा निर्धनता उन्मूलन की दृष्टि से कृषि एवं ग्रामीण विकास को प्राथमिकता देना। ⦁ सभी के लिए, विशेष रूप से समाज के कमजोर वर्गों के लिए, भोजन एवं पोषण की सुरक्षा सुनिश्चित करना। ⦁ स्वच्छ पेयजल, प्राथमिक स्वास्थ्य देख-रेख सुविधा, सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा एवं आवास जैसी मूलभूत न्यूनतम सेवाएँ प्रदान करना तथा समयबद्ध तरीके से आपूर्ति सुनिश्चित करना। ⦁ गाँवों में रहने वाले गरीबों के लिए स्वरोजगार की ‘स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना’ 1 अप्रैल, 1999 ई० से प्रारम्भ की गयी। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में भारी संख्या में कुटीर उद्योगों की स्थापना करना था। इस योजना में सहायता प्राप्त व्यक्ति स्वरोजगारी कहलाएँगे, लाभार्थी नहीं। इस योजना का उद्देश्य सहायता प्राप्त प्रत्येक परिवार को 3 वर्ष की अवधि में गरीबी रेखा से ऊपर उठाना था। कम-से-कम 50% अनु० जाति/जनजाति, 40% महिलाओं तथा 30% विकलांगों को योजना को लक्ष्य बनाया गया। आगामी 5 वर्षों में प्रत्येक विकास-खण्ड में रहने वाले ग्रामीण गरीबों में से 30% को इस योजना के अन्तर्गत लाने का प्रस्ताव है। नौवीं पंचवर्षीय योजना में ग्राम्य विकास हेतु विभिन्न मदों पर निम्नलिखित व्यय किये गये 1. कृषि और सम्बद्ध कार्यकलाप ₹ 42,462.00 करोड़ 2. ग्रामीण विकास ₹74,686.00 करोड़ 3. सिंचाई और बाढ़ नियन्त्रण ₹55,420.00 करोड़ 4. शिक्षा, चिकित्सा व जन-स्वास्थ्य परिवार – कल्याण ₹1,83,273.00 करोड़ आवास व अन्य सामाजिक सेवाएँ। 11. दसवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 2002 से 31 मार्च, 2007 तक) – 10वीं पंचवर्षीय योजना के दृष्टिकोण पत्र में विकास हेतु जो लक्ष्य निर्धारित किये गये थे, उनमें निर्धनता अनुपात को 2007 ई० तक 20 प्रतिशत तथा 2012 ई० तक 10 प्रतिशत तक लाना, 2007 तक सभी के लिए प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराना, 2001-2011 के दशक में जनसंख्या वृद्धि को 16.2 प्रतिशत तक सीमित रखना, साक्षरता-दर को 2007 ई० तक 72 प्रतिशत तथा 2012 ई० तक 80 प्रतिशत करना, वनाच्छादित क्षेत्र को 2007 ई० तक 25 प्रतिशत तथा 2012 ई० तक 33 प्रतिशत करना, 2012 ई० तक सभी गाँवों में स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था कराना तथा सभी प्रमुख प्रदूषित नदियों की 2007 ई० तक व अन्य अधिसूचित प्रखण्डों की 2012 ई० तक सफाई कराना आदि सम्मिलित थे। 12. बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) – भारत की 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के निर्माण की दिशा का मार्ग अक्टूबर, 2011 में उस समय प्रशस्त हो गया जब इस योजना के दृष्टि पत्र (दृष्टिकोण पत्र/दिशा पत्र/Approach Paper ) को राष्ट्रीय विकास परिषद् (NDC) ने स्वीकृति प्रदान कर दी। 1 अप्रैल, 2012 से प्रारम्भ हो चुकी इस पंचवर्षीय योजना के दृष्टि पत्र को योजना आयोग की 20 अगस्त, 2011 की बैठक में स्वीकार कर लिया था तथा केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् ने इसका अनुमोदन 15 सितम्बर, 2011 की अपनी बैठक में किया था। प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय विकास परिषद् की नई दिल्ली में 22 अक्टूबर, 2011 को सम्पन्न हुई इस 56वीं बैठक में दिशा पत्र को कुछेक शर्तों के साथ स्वीकार किया गया। राज्यों द्वारा सुझाए गए कुछ संशोधनों का समायोजन योजना दस्तावेज तैयार करते समय योजना आयोग द्वारा किया जायेगा। 12वीं पंचवर्षीय योजना में वार्षिक विकास दर का लक्ष्य 9 प्रतिशत है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में राज्यों के सहयोग की अपेक्षा प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने की है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कृषि, उद्योग व सेवाओं के क्षेत्र में क्रमश: 4.0 प्रतिशत, 9.6 प्रतिशत व 10.0 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि प्राप्त करने के लक्ष्य तय किये गये हैं। इनके लिए निवेश दर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की 38.7 प्रतिशत प्राप्त करनी होगी। बचत की दर जीडीपी के 36.2 प्रतिशत प्राप्त करने का लक्ष्य दृष्टि पत्र में निर्धारित किया गया है। समाप्त हुई 11वीं पंचवर्षीय योजना में निवेश की दर 36.4 प्रतिशत तथा बचत की दर 34.0 प्रतिशत रहने का अनुमान था। 11वीं पंचवर्षीय योजना में वार्षिक विकास दर 8.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। 11वीं पंचवर्षीय योजना में थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index) में औसत वार्षिक वृद्धि लगभग 6.0 प्रतिशत अनुमानित था, जो 12वीं पंचवर्षीय योजना में 4.5-5.0 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य है। योजनावधि में केन्द्र सरकार का औसत वार्षिक राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.25 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य इस योजना के दृष्टि पत्र में निर्धारित किया गया है। 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) : दृष्टि पत्र में निर्धारित महत्त्वपूर्ण वार्षिक लक्ष्य एक दृष्टि में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि 9.0 प्रतिशत कृषि क्षेत्र में वृद्धि 4.0 प्रतिशत उद्योग क्षेत्र में वृद्धि 9.6 प्रतिशत सेवा क्षेत्र में वृद्धि 10.0 प्रतिशत निवेश दर 38.7 प्रतिशत (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में) बचत दर 36.2 प्रतिशत (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में) औसत वार्षिक राजकोषीय घाटा 3.25 प्रतिशत (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में) थोक मूल्य सूचकांक में औसत वार्षिक वृद्धि 4.5-5.0 प्रतिशत
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