InterviewSolution
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गरीबी का स्वरूप बताकर गरीबी के कारणों की चर्चा कीजिए । |
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Answer» गरीबी के ख्याल को समझने के लिए अर्थशास्त्रियों ने गरीबी के स्वरूप के आधार पर गरीबी को दो भागों में विभाजित किया गया है : (1) सापेक्ष गरीबी * गरीबी गरीबी के कारण : गरीबी के अनेक कारणों में एतिहासिक सामाजिक, आर्थिक कारण जैसे अनेक कारण जवाबदार होते हैं । (1) ऐतिहासिक कारण : भारत 17वीं सदी में शहरीकृत और व्यवसायिक राष्ट्र था । भारत में गर्म मसाला, सूती कपड़े, सिल्क आदि का निर्यात किया जाता था । परंतु अंग्रेजो, फ्रेंच, डच जैसी प्रजा के आगमन के बाद उनकी संस्थान और स्वार्थवादी नीति के कारण भारत में कृषि और उद्योगों की परिस्थिति बिगड़ती चली गयी । ब्रिटिश शासनकाल के दरम्यान कृषि क्षेत्र की स्थिति नाजुक बनी । एक ओर भारत की कृषि वर्षा पर आधारित थी और दूसरी ओर अंग्रेजो ने सिंचाई के लिए पूँजी निवेश नहीं किया। बार-बार अकाल, जमीनदारी प्रथा, बढ़ती हुयी महसूल की रकम आदि के कारण किसान की आर्थिक स्थिति खराब हो गयी । किसान ऋण के नीचे डूबता चला गया, किसान बदहाल हो गया और गरीबी में वृद्धि हुयी । उद्योगों और व्यापार के सम्बन्ध में अंग्रेजो ने ऐसी व्यापार-नीति, कर-नीति और औद्योगिक नीति अपनायी जिसे अंग्रेज व्यापारियों का भारत में लाभ हो । भारतीय निर्यात के लिए यूरोप के बाजारों में प्रतिबंध लगा दिया । इंग्लैण्ड में उत्पादित वस्तुओं के लिए भारतीय बाज़ार में अनेक प्रकार के टेक्स में छूट-छाट दी भारत के कोने-कोने में मालसामान पहुँचाने के लिए रेलवे का उपयोग किया । भारत में ही भारत के उद्योग इंग्लैण्ड के उद्योगों की स्पर्धा में टिक नहीं सके जिससे भारतीय उद्योगों का पतन हुआ और गरीबी में वृद्धि हुयी । 2. ग्रामीण गरीबी के कारण : ग्रामीण गरीबी के कारण निम्नानुसार हैं : (1) प्राकृतिक परिबल : भारत आरम्भ से ही कृषि प्रधान देश है । देश का बड़ा हिस्सा कृषि पर आधारित है । भारत की कृषि प्राकृतिक परिबल जैसे बरसाद, जलवायु तत्त्वों पर निर्भर है । बार-बार अकाल, वर्षा की अनियमितता के कारण कृषि क्षेत्र का उत्पादन और आय कम होने से गरीबी के प्रमाण में वृद्धि हुयी । (2) जनसंख्या सम्बन्धी परिबल : भारत में स्वतंत्रता के बाद आर्थिक विकास हुआ, स्वास्थ्य में सुधार के कारण मृत्युदर में कमी आयी । परंतु जन्मदर ऊँची रही । जिससे जनसंख्या वृद्धिदर बढ़ी । बढ़ती हुयी जनसंख्या के कारण प्रतिव्यक्ति आय में विशेष वृद्धि नहीं हुयी । जिससे जीवनस्तर नीचा था । बढ़ती हुयी जनसंख्या के कारण श्रम पूर्ति में वृद्धि हुयी परंतु रोजगार के अवसर न बढ़ने से बेकारी सर्जित हुयी परिणाम स्वरूप गरीबी में वृद्धि हुयी । (3) आर्थिक कारण : गरीबी के आर्थिक कारण निम्नानुसार हैं : (1) प्रति श्रमिक कृषि की नीची उत्पादकता : भारत में कृषि क्षेत्र पर जनसंख्या का अधिक भार है । दूसरी और कृषि क्षेत्र । में सिंचाई का अभाव, अपर्याप्त टेक्नोलोजी, शिक्षा और प्रशिक्षण का अभाव, अल्प पूँजीनिवेश आदि कारण उत्पादकता नीची होती है । परिणाम स्वरूप श्रमिक की नीची उत्पादकता रहती है । जिससे गरीबी में वृद्धि होती है । (2) जमीन और संपत्ति का असमान वितरण : भारत में अंग्रेजों के शासनकाल से ही जमीनदारी प्रथा के कारण जमीन मुट्ठीभर जमीनदारों के पास थी । जिनका कृषि से प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं था परिणाम स्वरूप उन्हें कृषि विकास के लिए पूँजीनिवेश. में रूचि नहीं थी । दूसरी ओर कारकारों, बटाईदारों या कृषि मजदूरों की जमीन मालिकी न होने से उन्हें कृषि उत्पादन में रूचि नहीं थी । परिणाम स्वरूप कृषि क्षेत्र में कृषि उत्पादन और कृषि उत्पादकता नीची होने से गरीबी में वृद्धि हुयी । (3) छोटे और गृह उद्योगों का अल्पविकास : भारत में दूसरी पंचवर्षीय योजना से आर्थिक विकास की व्यूहरचना के भाग के रूप में आधारभूत और बड़े उद्योगों को महत्त्व दिया गया । परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे और गृह उद्योगों की उपेक्षा की गयी । साथ में कृषि से सम्बन्धित उद्योग जैसे पशुपालन, डेरी उद्योग, मत्स्यपालन आदि के कम विकास के कारण मौसमी बेकारी में वृद्धि हुयी जो गरीबी का कारण बना । (4) भाववृद्धि : युद्ध, अकाल, कम राष्ट्रीय उत्पादन, मांग वृद्धि, उत्पादन खर्च में वृद्धि के कारण चीजवस्तुओं और सेवाओं तथा खाद्य वस्तुओं के भाव में तीव्रता से वृद्धि हुयी, जिससे नीची आयवालों की खरीदशक्ति घटी । नीचा जीवनस्तर बना । जिससे गरीबी में वृद्धि हुयी । दूसरी ओर भाववृद्धि के कारण उद्योगपतियों, व्यापारियों और बड़े किसानों को लाभ हुआ आय बढ़ी । जिससे समाज में आय की असमानता में भी वृद्धि होती है । (5) बेरोजगारी का ऊँचा प्रमाण : ‘भारत में अधिकांशतः ग्रामीण जनसंख्या कृषि पर निर्भर है । कृषि वर्षा पर निर्भर होने से एक-दो ही फसल ले सकते है । इसलिए कृषि क्षेत्र में मौसमी बेकारी देखने को मिलती है । दूसरी ओर संयुक्त कुटुम्ब प्रथा और रोजगार के अन्य विकल्प न होने से परिवार के सभी सदस्य आवश्यकता न होने पर कृषि क्षेत्र में ही काम करते हैं । परिणाम स्वरूप प्रच्छन्न बेकारी बढ़ती है । परिणाम स्वरूप गरीबी में वृद्धि होती है । (4) सामाजिक कारण : भारत में गरीबी के लिए सामाजिक कारण भी जवाबदार हैं : (1) शिक्षा का नीचा स्तर : गरीबी का एक महत्त्वपूर्ण कारण शिक्षण, प्रशिक्षण और कौशल्य का अभाव है । शिक्षा के नीचे स्तर के कारण कृषि क्षेत्र में नयी टेक्नोलोजी, नयी कृषि पद्धतियाँ, संशोधनों, कृषि उत्पादनों के विक्रय के लिए बाज़ारों का लाभ प्राप्त नहीं होता । परिणाम स्वरूप नीची कृषि उत्पादकता के कारण किसानों की आय कम रहती है । परिणाम स्वरूप गरीबी में वृद्धि होती है । (2) लैंगिक असमानता : भारत में स्त्री-पुरुष का कम प्रमाण देखने को मिलता है । समाज में स्त्रियों के स्वास्थ्य पर कम ध्यान देते हैं । जिससे स्त्रियों में कुपोषण, कम वजन, कमजोरी का प्रमाण बढ़ता है । प्रसूति में माता मृत्युदर अधिक होती है । नवजात शिशु का स्वास्थ्य अच्छा नहीं होता है । स्त्रियाँ गृहिणी होने से घर का ही काम करती है । काम के अवसर स्त्रियों को कम मिलते हैं । काम के अवसरों में भी भेदभाव देखने को मिलता है । स्त्रियों में शिक्षा का प्रमाण भी कम होता है । अर्थतंत्र में स्त्रियों की हिस्सेदारी आधे से भी कम है । जिससे परिवार की आय कम होती है और गरीबी में वृद्धि होती है । (5) अन्य कारण : इन कारणों के अतिरिक्त अन्य कारण भी गरीबी के लिए जवाबदार हैं : (1) युद्ध : भारत से पाकिस्तान और चीन की सीमायें जुड़ी है । भारतने इन दोनों से युद्ध का सामना किया है । परिणाम स्वरूप संरक्षण खर्च में वृद्धि होती है । और आर्थिक विकास के पीछे खर्च में कटौती करनी पड़ती है । परिणाम स्वरूप . विकास की दर कम होती है और गरीबी में वृद्धि होती है । (2) संरक्षण खर्च में वृद्धि : वारंवार युद्ध के कारण देश की संरक्षण की बात गंभीर बनी है । जिससे देश की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए आधुनिक मिसाइल, लड़ाकू विमान, टेन्क, सबमरीन के पीछे अधिक खर्च करना पड़ता है । आतंकवाद का सामना करने के लिए भी सुरक्षा खर्च बढ़ाना पड़ता है । संरक्षण खर्च बिन विकासलक्षी खर्च है । इस खर्च में जितनी वृद्धि होती है उतना ही आर्थिक विकास खर्च कम होता है । आर्थिक विकास धीमा होता है और गरीबी का प्रमाण बढ़ता है । (3) खामीयुक्त नीतियों : भारत में आर्थिक विकास के लिए दूसरी पंचवर्षीय योजना से आधारभूत और बड़े उद्योगों को प्राथमिकता दी गयी । परंतु इस नीति में कृषि पर आधारित जनसंख्या की उपेक्षा की गयी । देश की अधिकांशत: जनसंख्या को रोजगार और आय उपलब्ध करानेवाले कृषि क्षेत्र और छोटे और गृह उद्योगों के कम विकास के कारण आय नीची रही । गरीबी और बेकारी को दूर करने के लिए विविध योजनाएं शुरू की गयी । परंतु बार-बार बदलती सरकारों के कारण सातत्य और संकलन का अभाव देखा गया । परिणाम स्वरूप इन खामीयुक्त नीतियों के कारण योजनाओं में लक्ष्यांक के अनुसार गरीबी में कमी नहीं आ सकी । |
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