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Answer» हरित क्रान्ति का अर्थ साधारण शब्दों में, हरित क्रान्ति से आशय सिंचित और असिंचित कृषि क्षेत्रों में अधिक उपज देने वाली किस्मों को आधुनिक कृषि पद्धति से उगाकर कृषि उपज में यथासम्भव अधिकाधिक वृद्धि करने से है। जार्ज हरार के अनुसार-“हरित क्रान्ति से हमारा आशय पिछले दशक में विभिन्न देशों में खाद्यान्नों के उत्पादन में होने वाली आश्चर्यजनक वृद्धि से है। हरित क्रान्ति को जन्म देने वाले घटक भारत में हरित क्रान्ति के लिए निम्नलिखित घटक उत्तरदायी रहे हैं- ⦁ अधिक उपज देने वाली किस्मों का प्रयोग। ⦁ 1961-62 में सघन कृषि जिला कार्यक्रम नामक योजना का प्रारम्भ। ⦁ सघन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम का विस्तार।। ⦁ बहु-फसल कार्यक्रम को अपनाना।। ⦁ खाद एवं उर्वरकों का अधिकाधिक उपयोग। ⦁ उन्नत बीजों का प्रयोग। ⦁ आधुनिक कृषि उपकरण एवं संयन्त्रों का प्रयोग। ⦁ प्रभावी पौध संरक्षण कार्यक्रमों को लागू करना। ⦁ सिंचाई सुविधाओं का विस्तार। ⦁ पर्याप्त मात्रा में कृषि साख की उपलब्धि। भारत में हरित क्रान्ति की असफलताएँ/कठिनाइयाँ यद्यपि उन्नत बीज, रासायनिक उर्वरक, आधुनिक विकसित तकनीक आदि के प्रयोग द्वारा कृषि उत्पादकता में काफी वृद्धि हुई, तथापि व्यापक दृष्टि से कृषि के विभिन्न स्तरों पर क्रान्ति लाने में यह असफल रही है। भारत में हरित क्रान्ति की असफलता के प्रमुख कारण निम्नलिखित रहे हैं ⦁ कृषि क्रान्ति का प्रभाव केवल कुछ ही फसलों (गेहूँ, ज्वार, बाजरा) तक ही सीमित रहा है। गन्ना, | पटसन, कपास व तिलहन जैसे कृषि पदार्थों पर इसका बिल्कुल प्रभाव नहीं पड़ा है। ⦁ कृषि क्रान्ति का प्रभाव केवल कुछ ही विकसित क्षेत्रों (पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु) के कुछ भागों तक सीमित रहा है। ⦁ भारत में कृषि-क्रान्ति से केवल बड़े किसान ही लाभान्वित हो सके हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में असमानताएँ बढ़ी हैं और इस प्रकार से धनी कृषक अधिक धनी और निर्धन अधिक निर्धन हो गए ⦁ विस्तृत भू-खण्डों पर उत्तम खाद व बीज तथा नवीन तकनीकों के प्रयोग से कृषि योग्य भूमि के कुछ लोगों के हाथों में केन्द्रित होने की प्रवृत्ति बढ़ी है। ⦁ कृषि विकास की गति अत्यधिक धीमी रही है। हरित क्रान्ति को सफल बनाने के उपाय हरित क्रान्ति को सफल बनाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं ⦁ कृषि उत्पादन से सम्बन्धित सरकारी विभागों में उचित समन्वय होना चाहिए। ⦁ उर्वरकों के वितरण की व्यवस्था होनी चाहिए। ⦁ उर्वरकों के प्रयोग के बारे में किसानों को उचित प्रशिक्षण सुविधाएँ उपलब्ध होनी चाहिए। ⦁ उपयुक्त व उत्तम बीजों के विकास को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। ⦁ फसल बीमा योजना शीघ्रता एबं व्यापकता से लागू की जानी चाहिए। ⦁ कृषि साख की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए। उन्हें सस्ती ब्याज-देर परे, ठीक समय पर, पर्याप्त मात्रा में ऋण-सुविधाएँ मिलनी चाहिए। ⦁ सिंचाई-सुविधाओं का विस्तार किया जा चाहिए। ⦁ भू-क्षरण में होने वाली क्षति की रोकथाम के उचित प्रयत्न किए जाने चाहिए। ⦁ कृषि उपज के विपणन की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। ⦁ भूमि का गहनतम व अधिकतम उपयोग किया जाना चाहिए। ⦁ कृषकों को उचित प्रशिक्षण व निर्देशन दिया जाना चाहिए। ⦁ भूमि-सुधार कार्यक्रमों का शीघ्र क्रियान्वयन होना चाहिए। ⦁ छोटे किसानों को विशेष सुविधाएँ दी जानी चाहिए। ⦁ प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार होना चाहिए। ⦁ विभिन्न विभागों, सामुदायिक विकास खण्डों, ग्राम पंचायतों, सरकारी संगठनों व साख संस्थाओं में उचित समन्वय होना चाहिए।
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