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इस कविता को पढ़िए‘दुख की पिछली रजनी बीच विकसता सुख का नवल प्रभात;एक परदा यह झीना नील छिपाये है जिसमें सुख गात।जिसे तुम समझे हो अभिशाप, जगत की ज्वालाओं का मूल;ईश का वह रहस्य वरदान, कभी मत इसको जाओ भूल।विषमता की पीड़ा से व्यस्त हो रहा स्पंदित विश्व महान;यही दुख-सुख-विकास का सत्य यही भूमा का मधुमय दान।”(क) कविता में आए कठिन शब्दों के अर्थ शब्दकोश से ढूंढकर लिखिए।(ख) इस कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।(ग) कविता पर अपने साथियों से पूछने के लिए प्रश्न बनाइए।(घ) कविता को उचित शीर्षक दीजिए। |
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Answer» (क) रजनी-रात; नवल-नया; प्रभात-सवेरा; गात-शरीर; ज्वाला-अग्नि; स्पंदित-धड़कता, जीवित; भूमा-ऐश्वर्य (ख) कवि कहता है कि दुख की रात्रि में ही कहीं सुख का नया सवेरा जन्म लेता है। यह एक झीना परदा है जिसने दुख रूपी नीले निशान के पीछे सुख रूपी शरीर छिपा रखा है। जिसे मनुष्य अभिशाप समझता। वही जगत की ज्वाला रूपी जीवन का मूल होता है। ईश्वर के इस रहस्य रूपी वरदान को भूलना नहीं चाहिए। जीते जागते विशाल विश्व में अनेक विषमताएँ हैं जो जग की पीड़ा का कारण हैं। दुख या सुख के विकास का सत्य है और यही ऐश्वर्य का दान है। (ग)
(घ) सुख-दुख।
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