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जाऊँ कहाँ तजि चरण तुम्हारे।काको नाम पतित पावन जग केहि अति दीन पियारेकौने देव बराइ बिरद हित, हठि-हठि अधम उधारे।खग, मृग, व्याध, पषान, विटप जड़, जवन-कवन सुत तारे।देव, दनुज, मुनि, नाग, मनुज सब, माया-बिबस विचारे। तिनके हाथ दास तुलसी प्रभु, कहा अपुनपौ हारै।(i) प्रस्तुत पंक्तियाँ कहाँ से ली गई हैं? इनके कवि कौन हैं? भक्त ने किसके प्रति अपनी आस्था प्रकट की है?(ii) पतितपावन किसे कहा गया है और क्यों?(iii) ‘माया-बिबस बिचारे’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।(iv) “जाऊँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे” शीर्षक पद के आधार पर कवि की भक्ति-भावना पर प्रकाश डालिए।

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(i) प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक काव्य मंजरी में संकलित तुलसीदास के पद’ शीर्षक कविता में से उद्धृत हैं। इसमें कवि तुलसीदास ने एक भक्त के रूप में भगवान श्रीराम के प्रति अपनी अटूट आस्था प्रकट की है। वे उनके श्री-चरणों को अपना परम धाम मानते हुए उसे छोड़कर कहीं भी दूसरी जगह न जाने का संकल्प व्यक्त कर रहे हैं।

(ii) पतितपावन प्रभु श्रीराम को कहा गया है। इस विशेषण की सार्थकता यह है कि वे एकमात्र ऐसे देव हैं जो नीच, अपवित्र, अधम या पतित व्यक्तियों का उद्धार करते हैं। उन्होंने न जाने कितने नरनारियों को मुक्ति प्रदान कर अपने चरणों में स्थान दिया है। जटायु, मरीच, जरा नामक शिकारी, अहल्या, यमलार्जुन वृक्ष आदि इसी के उदाहरण हैं।

(iii) ‘माया-बिबस विचारे’ का भाव यह है कि यह संसार एक दिखावटी चकाचौंध है। इसकी माया में ग्रस्त होकर जीव भ्रम में जीवन काटता जाता है। माया-मोह के वश में पड़ा प्राणी प्रभु को भूल जाता है और मुक्ति के लिए सार्थक प्रयास नहीं करता।

(iv) प्रस्तुत पद में कवि तुलसीदास ने अपने आराध्य देव प्रभु श्रीराम के चरणों को अपने जीवन का चरम लक्ष्य माना है। वे उनकी कृपा, वत्सल भावना, उद्धार करने की सामर्थ्य व भक्तों पर अपार करुणा से प्रभावित हैं। उन्हें लगता है कि प्रभु श्रीराम ही उन जैसे संसारी जीवों का उद्धार कर उन्हें अपने चरणों में जगह दे सकते हैं। वे इसकी पुष्टि के लिए रामायण व अन्य ग्रंथों से उदाहरण देते हैं जिनमें नीच, पतित व अधम नर-नारियों का उद्धार किया गया है। इसीलिए तुलसीदास को राम का परमभक्त कहते हैं।



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