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जैव- उर्वरक किस प्रकार से मृदा की उर्वरता को बढ़ाते हैं?

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जैव-उर्वरक का निर्माण विभिन्न प्रकार के जीवों; जैसे- नील- हरित शैवाल या सायनोबैक्टीरिया, जीवाणु एवं कवक से होता है। सायनोबैक्टीरिया की कई जातियाँ; जैसे- नॉस्टॉक, ऐनाबीना, टोलीप्रोथ्रिक्स आदि वायुमण्डल से नाइट्रोजन गैस को ग्रहण कर इसे नाइट्रोजन यौगिकों में परिणत कर देती हैं। इनमें हेट्रोसिस्ट नामक विशेष कोशिका पायी जाती है, जो नाइट्रोजन-स्थिरीकरण में मुख्य भूमिका निभाती हैं तथा मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाती हैं।

सहजीवी जीवाणु; जैसे- राइजोबियम मटर कुल के पौधों की जड़ों में ग्रंथियाँ बनाते हैं और वायुमण्डल से नाइट्रोजन गैस ग्रहण कर इसे नाइट्रोजन के यौगिकों के रूप में परिणत करते हैं। इससे मृदा की पोषक शक्ति की वृद्धि होती है। भूमि में पाए जाने वाले मुक्तजीवी जीवाणु; जैसे-एजोटोबैक्टर, एजोस्पाइरिलम भी वायुमण्डल के नाइट्रोजन को स्थिरीकृत करते हैं।

माइकोराइजा के कवक पौधों को पोषक तत्त्व प्रदान करते हैं। कवक के तन्तु मृदा से फॉस्फोरस तथा अन्य पोषकों को ग्रहण कर पौधों को उपलब्ध कराते हैं।



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