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जन-स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के मार्ग में कौन-कौन सी कठिनाइयाँ आती हैं?

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हमारे ग्रामीण अंचल में एक सीमा तक शिक्षा का अभाव है, जिसके फलस्वरूप ग्रामीणों में अन्धविश्वास का बोलबाला है तथा टोने-टोटके आज भी प्रचलित हैं। इस वातावरण में जन-स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का मार्ग अनेक कठिनाइयों से भरा होता है। अपने कल्याण से सम्बन्धित होने पर भी ग्रामीण इन कार्यकर्ताओं को पूर्ण सहयोग देने में हिचकिचाते हैं। अतः कार्यकर्ताओं को अनेक परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं। कुछ सामान्य कठिनाइयाँ निम्नलिखित हैं

(1) शिक्षा का अभाव:
भली प्रकार शिक्षित न होने के कारण अधिकांश ग्रामीण स्वास्थ्य सम्बन्धी नियम, रोगों से बचाव तथा भोजन एवं पोषण जैसी महत्त्वपूर्ण बातों से अनजान होते हैं। अतः इन्हें
जन-स्वास्थ्य सेवाओं का पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता।

(2) रूढ़िवादिता:
अधिकांश ग्रामीण जनता अयोग्य हकीम, वैद्य तथा चिकित्सकों की दवाइयों पर ही निर्भर करती है। कुछ लोग तो रोगों में टोने-टोटके का प्रयोग करना लाभकारी मानते हैं। इन्हें सही मार्ग पर लाना सरल कार्य नहीं है।

(3) सार्वजनिक स्वच्छता का अभाव:
अधिकांश ग्रामीण तथा आदिवासी जनता सार्वजनिक स्वच्छता के महत्त्व को नहीं समझती है। कहीं भी कूड़ा-करकट फेंक देना, मल-मूत्र का अनुचित निकास तथा नालियों में ठहरा हुआ गन्दा पानी ग्रामीण क्षेत्रों में सामान्य बातें हैं, जिनके फलस्वरूप विभिन्न रोगों के फैलने की सम्भावनाएँ सदैव ही बनी रहती हैं। इन्हें स्वच्छता का महत्त्व समझाना तथा इस पर चलने के लिए विवश करना एक कठिन कार्य है।

(4) स्वास्थ्य संगठनों की अकर्मण्यता:
केन्द्रीय एवं राज्य सरकार जनहित में सदैव नई-नई योजनाएँ प्रारम्भ करती हैं, परन्तु अत्यन्त दु:ख की बात है कि न तो इनके प्रति जनता ही पूर्णरूप से जागरूक रहती है और न ही इनके अन्तर्गत नियुक्त किए गए कर्मचारी अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। अतः परिणाम यह निकलता है कि योजनाएँ केवल आंशिक रूप से ही सफल हो पाती हैं। सरकार द्वारा गठित विभिन्न स्वास्थ्य संगठन भी इसके अपवाद नहीं हैं।



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