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जनमत-निर्माण में सहायक चार साधनों का उल्लेख कीजिए। यास्वस्थ लोकमत के निर्माण में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (टी०वी० चैनल्स आदि) की भूमिका का परीक्षण कीजिए। 

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जनमत-निर्माण में सहायक चार साधन निम्नवत् हैं-

1. शिक्षण संस्थाएँ – जनमत के निर्माण में शिक्षण संस्थाएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती हैं। शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति लोकहित का महत्त्व समझ चुका होता है तथा स्वस्थ एवं प्रबुद्ध जनमत का निर्माण करने योग्य हो जाता है। शिक्षण संस्थाओं में अनेक प्रकार के समाचार-पत्र व पत्रिकाएँ आती हैं जिनको विद्यार्थी पढ़ते हैं तथा विभिन्न घटनाओं के सम्बन्ध में विचार विमर्श करते हैं एवं अनेक प्रकार की नवीन जानकारी प्राप्त करते हैं। शिक्षण संस्थाओं में प्रमुख राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं पर सेमिनार, सिम्पोजियम तथा वाद-विवाद प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है।
2. जनसंचार के साधन – रेडियो, सिनेमा और टी०वी० भी जनमत के निर्माण में पर्याप्त सहयोग देते हैं। रेडियो एवं टी०वी० पर समाचारों के प्रसारण के साथ-साथ देश के प्रमुख नेताओं के मत एवं भाषण प्रसारित किये जाते हैं। महत्त्वपूर्ण विषयों पर संगोष्ठियों, परिचर्चाओं आदि का प्रसारण भी प्रबुद्ध जनमत का निर्माण करता है। इस प्रकार साधारण जनता बड़ी सरलता से देश के बड़े नेताओं और विद्वानों के विचारों से अवगत करता है। इस प्रकार साधारण जनता बड़ी सरलता से देश के बड़े नेताओं और विद्वानों के विचारों से अवगत हो जाती है और अपना मत (जनमत) निर्धारित करने का प्रयास करती है।
3. समाचार-पत्र एवं पत्र-पत्रिकाएँ – समाचार-पत्र एवं पत्र-पत्रिकाएँ जनमत को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण सहयोग देते हैं। इनमें देश-विदेश की नीतियों, घटनाओं, शासन व्यवस्थाओं का वर्णन होता है, जिन्हें पढ़कर जनता अपना मत निर्धारित करती है। इस प्रकार समाचारपत्र साधारण जनता के लिए प्रकाश-स्तम्भ का कार्य करते हैं। जैसा कि गैटिल ने लिखा है-“समाचार-पत्र अपने समाचारों और सम्पादकीय शीर्षकों के माध्यम से तथ्यों का उल्लेख करते हैं।” नेपोलियन ने भी कहा था-“एक लाख तलवारों की अपेक्षा मुझे तीन समाचार पत्रों से अधिक भय है।”
4. राजनीतिक साहित्य – जनमत निर्माण एवं उसको अभिव्यक्त करने की दृष्टि से राजनीतिक साहित्य भी एक अच्छा साधन है। अनेक राजनीतिक दल अपने मत, नीतियों तथा देश की. सामाजिक समस्याओं को व्यक्त करने हेतु राजनीतिक साहित्य का प्रकाशन करते हैं। ऐसे साहित्य में निर्वाचन से पहले प्रकाशित होने वाले घोषणा-पत्रों का विशेष महत्त्व होता है क्योंकि जनता उनके माध्यम से दलों की नीतियों एवं योजनाओं से परिचित होकर अपना मत तय करने में सफल होती है। यह मत अन्ततोगत्वा जनादेश या जनमत का निर्माण करता है।



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