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किन्तु हम बहते नहीं हैं।क्योंकि बहना रेत होना है।हम बहेंगे, तो रहेंगे ही नहीं।पैर उखड़ेंगे, प्लवन होगा, ढहेंगे, सहेंगे बढ़ जाएँगे,और फिर हम पूर्ण होकर भी कभी क्या धार बन सकते?(i) कौन बहते नहीं हैं? कविता के प्रसंग में बताइए।(ii) ‘बहना रेत होना’ कैसे है?(iii) ‘बहना’ प्रक्रिया का क्या प्रभाव पड़ता है? कविता के संदर्भ में समझाइए।(iv) प्रस्तुत कविता का सामाजिक संदर्भ उजागर कीजिए।

Answer»

(i) प्रस्तुत काव्यांश ‘नदी के द्वीप’ कविता में से उद्धृत है। द्वीप स्वयं को नदी का हिस्सा तो मानते हैं परंतु वे बहते नहीं हैं। यदि वे धारा के साथ बह जाएँ तो उनका अस्तित्व ही नहीं रहेगा।

(ii) बहना रेत होना है क्योंकि नदी की धारा के साथ मिलकर द्वीप का अपना अस्तित्व ही मिट जाएगा। यदि धारा द्वीप को अपने साथ बहाकर ले जाएगी, तो द्वीप का रूप-स्वरूप नष्ट हो जाएगा। उसका स्वरूप तथा अस्तित्व बहने में नहीं अपितु नदी द्वारा आकार प्रदान करने में है।

(iii) ‘बहना’ प्रक्रिया का प्रभाव यह होता है कि द्वीप की अपनी कोई सत्ता ही नहीं रहती। यदि वे बहने लगेंगे, तो उनका अस्तित्व रेत बन जाएगा और वे नदी की धारा में विलीन हो जाएँगे।

(iv) प्रस्तुत कविता एक प्रतीकात्मक कविता है। इसमें नदी द्वीप तथा भूखंड को प्रतीक के रूप में चुना गया है। इसमें व्यक्ति, समाज और परंपरा के आपसी संबंधों को सर्वथा नवीन दृष्टि से देखा गया है। यहाँ द्वीप, नदी और भूखंड को क्रमश: व्यक्ति, परंपरा और समाज के प्रतीक के रूप में चुना गया है। कवि का विचार है कि जिस प्रकार द्वीप ‘भू’ का ही एक खंड है परंतु नदी के कारण उसका अस्तित्व अलग है, उसी प्रकार व्यक्ति भी समाज का एक अंग है परंतु सामाजिक परंपराएँ उसे विशिष्ट व्यक्तित्व प्रदान करती हैं।



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