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क्या लिंग समानता अधिक सामंजस्यपूर्ण अथवा अधिक विभाजक समाज बनाती है? 

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किसी भी अच्छे समाज के लिए असमानता का होना उचित नहीं माना जाता है। लिंग असमानता के परिणामस्वरूप विश्व की आधी जनसंख्या अर्थात् महिलाओं का विकास अवरुद्ध होता है। इससे समाज लिंग के आधार पर विभाजित हो जाता है तथा महिलाओं को आगे बढ़ने के उतने अवसर उपलब्ध नहीं हो पाते हैं जितने कि पुरुषों को होते हैं। इसलिए सभी देशों में महिलाएँ शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, प्रत्याशित आयु इत्यादि विकास के सूचकों में पुरुषों से कहीं पीछे हैं। आधुनिक युग में महिलाओं को घर की चहारदीवारी तक सीमित कर समाज का विकास संभव नहीं है। इसलिए लिंग असमानता कभी भी सामंजस्यपूर्ण नहीं हो सकती। जो इस प्रकार की असमानता का समर्थन करते हैं वे पुरुषप्रधान दृष्टिकोण से प्रभावित हैं। विश्व में पुरुषप्रधान दृष्टिकोण ही पुरुषों के महिलाओं पर प्रभुत्व को बनाए रखने तथा उन्हें पुरुषों के समान न ला पाने के लिए उत्तरदायी है। यह सही है कि पुरुषों एवं महिलाओं में शारीरिक दृष्टि से अंतर होता है। इस अंतर को सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर ऊँच-नीच में बदल देना अर्थात् पुरुषों को महिलाओं से ऊँचा स्थान देना ही लिंग असमानता कहलाता है जो कि समाज के विकास को अवरुद्ध करता है। चूंकि अतीत में लिंग असमानता समाज की व्यवस्था को बनाए रखने में सहायक रही है, इसलिए कुछ लोग विभाजक नहीं मानते हैं। इस प्रकार, यह भी एक ऐसा मुद्दा है जिस पर समाज के विभिन्न समूहों अथवा व्यक्तियों की राय में मतभेद पाया जाता है। इस मतभेद के बावजूद आज सभी समाज लिंग असमानता को दूर करने अथवा कम-से-कम करने हेतु प्रयासरत हैं।



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