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लॉर्ड बैंटिक की नीति उदार थी।’ इस कथन के आलोक में उसके सुधारों का वर्णन कीजिए।

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लॉर्ड विलियम बैंटिंक की नीति- स्वभाव और मानसिक दृष्टिकोण से वह उदार विचारों वाला शासक था। पी०ई० रॉबर्ट्स के अनुसार- “लार्ड विलियम बैंटिंक अपने समय का सर्वथा उदार विचारों वाला व्यक्ति था। उसका युग सहानुभूतिपूर्ण तथा संसदीय सुधारों का युग था तथा वह उसके सर्वथा अनुरूप था।” वह शान्तिप्रिय था और सुधार कार्य की उसमें प्रबल इच्छा थी। वह उन्मुक्त व्यापार एवं उन्मुक्त प्रतियोगिता की नीति का समर्थक था और उसका विश्वास था कि राज्य को जनता के जीवन में कम-से-कम हस्तक्षेप करना चाहिए। फिर भी लोकहितकारी कार्यों का सम्पादन करने में वह किसी प्रकार के संकोच का अनुभव नहीं करता था। वह सुधारों का प्रबल पक्षपाती था तथा उदार विचार वाला होने के कारण अंग्रेजों की उग्र एवं साम्राज्यवादी नीति का विरोधी था।
बैंटिंक के सुधार- बैंटिंक ने निम्नलिखित सुधार किए हैं

(i) प्रशासनिक और न्यायिक सुधार- सर्वप्रथम बैंटिंक ने प्रशासनिक सुधारों की तरफ ध्यान दिया। वस्तुत: लॉर्ड कार्नवालिस के पश्चात् किसी भी गवर्नर जनरल ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया। प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था में सुधार लाने के लिए बैंटिंक ने अग्रलिखित कार्य किए

⦁    अभी तक कम्पनी के महत्वपूर्ण पदों पर ज्यादातर अंग्रेज अधिकारी नियुक्त थे। बैंटिंक ने अब भारतीयों को भी योग्यता के आधार पर प्रशासनिक सेवा में भर्ती करना आरम्भ कर दिया।
⦁    बैंटिंक ने लगान-सम्बन्धी सुधार करते हुए जमीन की किस्म एवं उपज के आधार पर लगान की राशि तय कर दी। इस व्यवस्था का काम एक बोर्ड ऑफ रेवेन्यू के जिम्मे सौंपा गया। यह व्यवस्था 30 वर्षों के लिए लागू की गई। इससे कम्पनी, जमींदार तथा किसान तीनों को लाभ हुए।
⦁    बैंटिंक ने पुलिस-व्यवस्था में भी सुधार किए। उसने पटेलों एवं जमींदारों को भी पुलिस-सम्बन्धी अधिकार प्रदान किए। अपराधियों पर नियन्त्रण रखने के उद्देश्य से प्रत्येक जिले में पुलिस की स्थायी ड्यूटी लगाई गई।
⦁    1832 ई० में बैंटिंक ने इलाहाबाद में सदर दीवानी अदालत तथा सदर निजामत अदालत की स्थापना की। इसका उद्देश्य पश्चिमी प्रान्तों की जनता को राहत पहुँचाना था।
⦁    1832 ई० में बैंटिंक ने एक कानून पारित कर बंगाल में जूरी प्रथा को आरम्भ किया, जिससे यूरोपियन जजों को सहायता देने के लिए जूरी के रूप में भारतीयों की सहायता प्राप्त की जा सके।
⦁    बैंटिंक ने न्यायालयों में देशी भाषा के प्रयोग पर अधिक बल दिया, इससे पूर्व न्यायालयों में फारसी भाषा का प्रयोग अधिक होता था।
⦁    बैंटिंक के शासन में लॉर्ड मैकॉले द्वारा दण्ड संहिता का निर्माण किया गया। इस प्रकार कानूनों को एक स्थान पर संगृहीत कर दिया गया, जिससे न्याय प्रणाली में पर्याप्त सुधार हुआ।

(ii) शिक्षा-सम्बन्धी सुधार- लॉर्ड बैंटिंक ने शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण सुधार किए। मैकाले ने 2 फरवरी, 1835 ई० के अपने स्मरण-पत्र में प्राच्य शिक्षा की खिल्ली उड़ाई एवं अपनी योग्यता प्रस्तुत की, जिसका उद्देश्य यह था कि भारत में “एक ऐसा वर्ग बनाया जाए, जो रंग तथा रक्त से तो भारतीय हो, परन्तु प्रवृत्ति, विचार, नैतिकता तथा बुद्धि से अंग्रेज हो।” बैंटिंक ने मैकाले की यह नीति (योजना) स्वीकार कर ली। फलस्वरूप भारत में अंग्रेजी को प्रोत्साहन दिया गया। अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार के लिए अनुदान दिए गए तथा कलकत्ता में एक मेडिकल कॉलेज की स्थापना की गई। इससे भारतीय पाश्चात्य ज्ञान के सम्पर्क में आए।

(iii) सती प्रथा का अन्त- भारत में सती प्रथा एक घोर सामाजिक बुराई थी, जिसका काफी समय से चलन था। 4 दिसम्बर, 1829 ई० को बैंटिंक ने एक कानून पारित कर सती प्रथा को नर हत्या का अपराध घोषित कर दिया। सती प्रथा को समाप्त करने में बैंटिंक को महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय का भरपूर सहयोग मिला। ठगों का दमन- उन्नीसवीं सदी के पहले चार दशकों तक बनारसी ठगों का देशभर में खासकर उत्तर भारत के कई इलाकों में बड़ा आतंक था। ठगी के इस महाजाल को पूरी तरह से नेस्तनाबूद करने में बैंटिंक व स्लीमैन समेत ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कई सिपहसालारों के भी पसीने छूट गए थे। अतः बैंटिंक द्वारा ठगों का दमन करना भी महत्वपूर्ण कार्य था।

मुगल साम्राज्य के पतन के पश्चात् ठगों के प्रभाव में काफी वृद्धि हो चुकी थी। इन्हें जमींदार तथा उच्च अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त था। ठगों के अत्याचारों से जनता त्रस्त थी। ठगों का अन्त करने के लिए बैंटिंक ने कर्नल स्लीमैन के साथ बड़े ही व्यवस्थित ढंग से कार्यवाही प्रारम्भ की। उसने एक के बाद एक, दूसरे गिरोह को पकड़ा और उन्हें कठोर सजाएँ दीं। उसने लगभग 2,000 ठगों को बन्दी बनाया। इनमें से उसने 1,300 को मृत्युदण्ड दिया। 500 ठगों को जबलपुर स्थित सुधार-गृह में भेज दिया गया तथा शेष को देश से निष्कासित कर दिया। बैंटिंक के इस कठोर कदम से 1837 ई० तक संगठित तौर पर काम करने वाले ठगों के गिरोहों का सफाया हो गया।

(v) नर-बलि की प्रथा का अन्त- भारत के कुछ हिस्सों में नर-बलि की प्रथा भी प्रचलित थी। यह प्रथा असभ्य एवं जंगली जातियों के बीच व्याप्त थी। वे अपने देवता को प्रसन्न करने के लिए निरपराध व्यक्तियों को भी पकड़कर उनकी बलि चढ़ा दिया करते थे। एक कानून बनाकर बैंटिंक ने इस कुप्रथा को बन्द करवा दिया।

(vi) दास प्रथा का अन्त- भारत में दास प्रभा भी प्राचीनकाल से ही प्रचलित थी। दासों की खरीद-बिक्री होती थी। उनसे जानवरों की तरह व्यवहार किया जाता था। बैंटिंक ने 1832 ई० में कानून बनाकर दास प्रथा को भी समाप्त कर दिया।

(vii) हिन्दू उत्तराधिकार कानून में सुधार- हिन्दू उत्तराधिकार नियम में यह दोष व्याप्त था कि अगर कोई व्यक्ति अपना धर्म बदल लेता है तो उसे पैतृक सम्पत्ति के अधिकार से वंचित कर दिया जाएगा। बैंटिंक ने घोषणा की कि “धर्म-परिवर्तन करने की स्थिति में उसे पैतृक सम्पत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा। उसे नियमानुसार पैतृक सम्पत्ति का भाग मिलेगा।

(viii) बाल-वध निषेध- सती प्रथा के समान बाल-वध की भी कुप्रथा प्रचलित थी। अनेक स्त्रियाँ अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए अपने बच्चों की बलि चढ़ाने की मनौतियाँ मानती थीं और उनकी बलि चढ़ा देती थीं। राजपूतों में तो कन्या का जन्म ही अपमान का द्योतक था। अत: कन्या के जन्म लेते ही उसकी हत्या कर दी जाती थी। इसलिए बैंटिंक ने बंगाल रेग्यूलेशन ऐक्ट के द्वारा इस कुप्रथा को बन्द करवा दिया।

(ix) जनहितोपयोगी कार्य- बैंटिंक ने जनहित की सुविधा के लिए भी अनेक कार्य करवाए। नहरों, सड़कों, कुओं आदि का निर्माण भी करवाया।

(x) आर्थिक सुधार- बैंटिंक जिस समय भारत आया, कम्पनी की स्थिति ठीक नहीं थी। बर्मा (म्यांमार) युद्ध ने कम्पनी का कोष करीब-करीब रिक्त कर दिया था। उसने आर्थिक सुधार करते हुए असैनिक अधिकारियों के वेतन और भत्ते बन्द कर दिए। अनावश्यक पदों की समाप्ति कर दी। कलकत्ता (कोलकाता) से 400 मील की सीमा में निवास करने वाले सैनिक अधिकारियों को केवल आधा भत्ता दिया जाना निश्चित कर दिया, इससे कम्पनी को लगभग 1,20,000 पौण्ड की वार्षिक बचत हुई। धन की बचत के लिए उसने उच्च पदों पर कम वेतन देकर भारतीयों को नियुक्त कर दिया, जिससे भारतीयों का अंग्रेजों के प्रति असन्तोष भी कम हो गया। बैंटिंक ने लगान मुक्त भूमि का सर्वेक्षण कर उसे जब्त कर लिया तथा उस पर लगान लगा दिया। बैंटिंक के इस कार्य से कम्पनी को करीब 3 लाख रुपए की अतिरिक्त राशि प्राप्त होने लगी



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