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लॉर्ड डलहौजी के चरित्र का मूल्यांकन कीजिए।

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लॉर्ड डलहौजी के चरित्र का मूल्यांकन निम्न बिन्दुओं के आधार पर किया जा सकता है

(i) अंग्रेजी शासन का वफादार- लॉर्ड डलहौजी अपने मूल राष्ट्र ब्रिटेन के प्रति समर्पित था। उसके राष्ट्र-प्रेम ने लॉर्ड डलहौजी की अन्तर्राष्ट्रीयता अथवा मानवता की भावनाओं को संकुचित कर दिया। भारतीयों के प्रति उसका व्यवहार अत्यन्त कटु, बर्बर एवं अमानुषिक था। उनकी भावनाओं अथवा भलाई पर उसने कभी भी कोई ध्यान नहीं किया। उसने जो भी सुधार किए, उनका उद्देश्य अंग्रेजों और उनकी सरकार का हित था।

(ii) इच्छा-शक्ति का धनी- लॉर्ड डलहौजी में अद्भुत इच्छा-शक्ति थी। जिस बात को वह एक बार निश्चित कर लेता था, उससे कभी डिगता नहीं था तथा उसकी पूर्ति के प्रयास में वह निरन्तर संलग्न रहता था। उसे अपने देश एवं उसकी प्रतिष्ठा से अगाध प्रेम था तथा उसकी वृद्धि करने में उसने उचित-अनुचित का भी ध्यान नहीं रखा। उसके कार्यों से उसके देश की ख्याति बढ़ी। उसको आर्थिक एवं राजनीतिक लाभ प्राप्त हुए तथा उसका साम्राज्य विस्तार हुआ।

(iii) परिश्रमी- लॉर्ड डलहौजी घोर परिश्रमी था तथा दिन-रात के अथक परिश्रम से उसने न केवल भारत में अनेक राज्यों पर विजय प्राप्त की वरन् अनेक राज्यों को अपनी कूटनीति से ब्रिटिश साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया। उसमें क्रियात्मक प्रतिभा थी। गोद-निषेध नीति के समान उच्चकोटि की नीति को जन्म देने का श्रेय लॉर्ड डलहौजी को ही है।

(iv) प्रतिभाशाली व्यक्ति- लॉर्ड डलहौजी अत्यन्त प्रतिभशाली, कर्तव्यपरायण एवं क्रियाशील व्यक्ति था। भारत में आकर शीघ्र ही वह यहाँ की परिस्थितियों से अवगत हो गया तथा भारत के छोटे-छोटे शक्तिहीन राज्यों को समाप्त करके भारत में ब्रिटिश साम्राज्य को विशाल एवं संगठित बनाने का कार्य उसने आरम्भ कर दिया।

(v) एकपक्षीय तर्क को आधार बनाने वाला शासक- लॉर्ड डलहौजी में तर्कशीलता की भावना अत्यन्त प्रबल थी तथा तर्क का आश्रय लेकर वह प्रत्येक कार्य करता था। देशी नरेशों के राज्यों का अपहरण भी उसने तर्क के आधार पर ही किया, यद्यपि उसका तर्क एकपक्षीय ही था।

(vi) स्वेच्छाचारी- लॉर्ड डलहौली की सबसे बड़ी दुर्बलता थी कि वह योग्य व्यक्तियों के परामर्श को भी नहीं मानता था। इसलिए वह किसी का भी कृपापात्र न बन सका। उसके अधीन कर्मचारी उसके दुर्व्यवहार के कारण उससे भयभीत रहते थे और हृदय से उनका प्रेम उसे प्राप्त न था। यदि अपने सहयोगियों के साथ उसका व्यवहार अधिक सभ्यतापूर्ण होता तो उसे अपने लक्ष्य की प्राप्ति में और भी अधिक सफलता मिल सकती थी।

(vii) आधुनिक भारत का निर्माता- लॉर्ड डलहौजी ने जो सुधार भारत में किए, उसके आधार पर उसे आधुनिक भारत का निर्माता कहा जा सकता है। उसके सुधार इतने क्रान्तिकारी थे कि भारतवासी उनसे भयभीत हो उठे और वे सोचने लगे कि इन सुधारों के द्वारा उनके धर्म में हस्तक्षेप किया जा रहा है। किन्तु कुछ समय पश्चात् भारतीयों को उन सुधारों की उपयोगिता का अहसास हो सका।

(viii) महान् साम्राज्यवादी- लॉर्ड डलहौजी महान् साम्राज्यवादी गवर्नर जनरल था तथा भारत में उसने सदैव इसी नीति का अनुसरण किया। उसके काल में उसकी यह नीति सर्वथा सफल रही किन्तु भारतीयों में उसकी नीति के कारण अंग्रेजों के प्रति अविश्वास एवं घृणा की भावनाएँ प्रबल हो गईं और उसके लौटते ही भारत में महान् क्रान्ति का विस्फोट हुआ। अंग्रेज विद्वानों ने लॉर्ड डलहौजी का मूल्यांकन करते हुए उसकी बहुत प्रशंसा की है। उसे भारत के उच्चतम कोटि के चार प्रमुख साम्राज्यवादी गवर्नर जनरलों में स्थान प्राप्त है।
क्लाइव के द्वारा प्रारम्भ किए गए साम्राज्य निर्माण के कार्य को पूर्ण करने वाला लॉर्ड डलहौजी ही था। शक्तिहीन देशी राजाओं को समाप्त करके उसने भारत में एक सुदृढ़ राज्य स्थापित किया तथा भारत को प्राकृतिक सीमाएँ प्रदान की। उसने सेना का पुनर्सगठन किया, जो गदर को निष्फल बनाने में समर्थ हो सकी। उसमें केवल विजेता के ही गुण नहीं थे वरन् वह एक कुशल निर्माता एवं शासक भी था। अन्य किसी गवर्नर-जनरल में एकसाथ ही तीन गुणों का उचित सम्मिश्रण मिलना दुर्लभ है। जहाँ तक उसकी साम्राज्यवादी नीति का प्रश्न है, डॉ० ईश्वरी प्रसाद की यह बात नितान्त उचित लगती है कि “साम्राज्यवाद का प्रेत जनमत की परवाह नहीं करता। वह तो तलवार की धार से अपना लक्ष्य पूरा करता है।”

इसी प्रकार वी०ए० स्मिथ के अनुसार- “लॉर्ड डलहौजी एक महान् विजेता और कुशल निर्माणकर्ता ही नहीं था, बल्कि वह एक उच्चकोटि का सुधारक भी था। एक विजेता और साम्राज्य विस्तारक के रूप में लॉर्ड डलहौजी ने भारतीयों पर कुठाराघात किया, परन्तु एक सुधारक के रूप में उसका नाम आज भी बड़े गौरव के साथ लिया जाता है।”



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