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Answer» माँग, मूल्य और पूर्ति के सम्बन्ध को निम्नवत् स्पष्ट किया जा सकता है 1. मूल्य, माँग व पूर्ति पर निर्भर रहता है – जिस प्रकार कागज काटने के लिए कैंची के दोनों फलकों का उपयोग आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार कीमत (मूल्य) के निर्धारण में माँग और पूर्ति दोनों की ही आवश्यकता होती है। उनके परस्पर प्रभाव द्वारा मूल्य का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर दोनों की सापेक्ष स्थिति एक-सी होती है अर्थात् जहाँ पर माँग और पूर्ति दोनों ही मात्रा में बराबर होती हैं। इस प्रकार कहा जाता है कि मूल्य की स्थिति माँग व पूर्ति पर निर्भर करती है। 2. मॉग, मूल्य व पूर्ति पर – माँग और मूल्य में घनिष्ठ सम्बन्ध है। किसी वस्तु को खरीदने और व्यय करने की तत्परता (Willingness) पर मूल्य का बड़ा प्रभाव पड़ता है। कोई व्यक्ति वस्तु की कितनी मात्रा खरीदेगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वस्तु का बाजार में कितना मूल्य है। जब हम कहते हैं कि बाजार में गेहूं की माँग एक हजार क्विटल है तो हमें इसके साथ यह भी बताना चाहिए कि यह माँग किस मूल्य पर है। माँग और मूल्य के घनिष्ठ सम्बन्ध के कारण ही यह कहा जाता है कि माँग से अभिप्राय वस्तु की उस मात्रा से है जो किसी निश्चित समय में किसी एक विशेष कीमत पर खरीदी जाएगी। इस प्रकार बिना मूल्य के माँग अर्थहीन है। माँग, पूर्ति पर भी निर्भर रहती है। माँग और पूर्ति में घनिष्ठ सम्बन्ध है। कोई व्यक्ति वस्तु की कितनी मात्रा खरीदेगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वस्तु की बाजार में कितनी पूर्ति है। बिना पूर्ति के माँग का कोई अर्थ नहीं होता। जब हम कहते हैं कि बाजार में गेहूं की माँग एक हजार क्विटल है तो हमें उसके साथ यह भी बताना चाहिए कि इस मूल्य पर वस्तु की कितनी पूर्ति है। इस प्रकार स्पष्ट है कि वस्तु की माँग, मूल्य व वस्तु की पूर्ति पर निर्भर रहती है कि वस्तु कितनी मात्रा में खरीदी जाएगी। 3. पूर्ति, मूल्य व माँग पर – किसी वस्तु का उत्पादन कितनी मात्रा में किया जाए, यह वस्तु की माँग पर निर्भर करता है। उपभोक्ताओं की रुचि, फैशन तथा आय पर वस्तु की माँग निर्भर रहती है। लोग जितनी अधिक वस्तुओं की माँग करेंगे, वस्तु का मूल्य उतना ही अधिक होगा; अत: उत्पादक लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से वस्तुओं का अधिक उत्पादन करेंगे जिसके कारण वस्तुओं की पूर्ति बढ़ेगी। कीन्स का रोजगार सिद्धान्त प्रभावपूर्ण माँग सिद्धान्त पर आधारित है। माँग जितनी अधिक होगी, वस्तुओं का उत्पादन या पूर्ति उतनी ही अधिक होगी। इस प्रकार माँग पूर्ति को प्रभावित करती है। पूर्ति और मूल्य का घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। किसी वस्तु की पूर्ति साधारणतया कीमत पर निर्भर होती है। कीमत बढ़ने पर पूर्ति भी बढ़ जाती है और कीमत घटने पर पूर्ति भी घट जाती है। अर्थशास्त्र में पूर्ति का अभिप्राय वस्तु की उस मात्रा से होता है जो किसी समय एक मूल्य-विशेष पर बिकने आती है। अंतः बिना मूल्य का उल्लेख किये पूर्ति का कोई अर्थ नहीं होता। इस प्रकार स्पष्ट है कि वस्तु की पूर्ति वस्तु की मॉग व मूल्य पर निर्भर होती रहती है।
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