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Answer» मध्यकालीन शिक्षा के दोष मध्यकालीन शिक्षा में निम्नलिखित दोष थे- 1. सांसारिकता की प्रधानत-मध्यकाल में विलासिता, मध्यकालीन शिक्षा के दोष ऐश्वर्य और सुख-सुविधाओं पर अधिक बल दिया गया था, सांसारिकता की प्रधानता। इसलिए विद्यार्थियों का ध्यान भी आध्यात्मिकता से हटकर सांसारिक भोग-विलास में लग जाता था। 2. धार्मिक कट्टरता-मध्यकाल में शिक्षा के द्वारा इस्लाम धर्म जनसाधारण की शिक्षा का अभाव के प्रचार पर ही बल दिया जाता था, इसलिए व्यक्तियों में धार्मिक अमनोवैज्ञानिकता कट्टरता फैलने लगी। इससे समाज में साम्प्रदायिक सौहार्द पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। 3. शिक्षा-केन्द्रों का अस्थायित्व-विद्यालयों की स्थापना लेखन व पाठन में समन्वय का और संचालन का उत्तरदायित्व धनी व्यक्तियों के ऊपर निर्भर था। अभाव इस कारण धनी व्यक्तियों की मृत्यु के साथ ही प्राय: विद्यालय भी बन्द हो जाता था। इस कारण बालकों की शिक्षा व्यवस्थित रूप से नहीं चल पाती थी। 4. जनसाधारण की शिक्षा का अभाव-मध्य युग में धनी व्यक्ति ही विद्यालयों की स्थापना करते थे। इसलिए पर्याप्त संख्या में विद्यालयों का अभाव था। इस कारण जनसाधारण के बालकों को शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा नहीं मिलती थी। 5. अमनोवैज्ञानिकता-इस युग में बालकों को मनोवैज्ञानिक ढंग से शिक्षा नहीं दी जाती थी, क्योंकि शिक्षा देते समय बालकों की व्यक्तिगत विशेषताओं को ध्यान में नहीं रखा जाता था। 6. नारी शिक्षा की उपेक्षा-मध्य युग में स्त्री की शिक्षा पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था, जिससे समाज का एक महत्त्वपूर्ण वर्ग एवं भाग अविकसित रह जाता था। | 7. शारीरिक दण्ड की प्रधानता-इस युग में शिक्षक छात्रों को बड़ी निर्दयता के साथ शारीरिक दण्ड देते थे, जिससे उनकी रुचि अध्ययन की ओर नहीं हो पाती थी। 8. लेखन व पाठन में समन्वय का अभाव-इस युग में पहले बालकों को पढ़ना सिखाया जाता था और उसके पश्चात् उन्हें लिखने की शिक्षा दी जाती थी। इस प्रकार लेखन और पाठन में समन्वय का अभाव था। 9. अरबी-फारसी की प्रधानता-मध्यकाल में अरबी और फारसी भाषा को अधिक महत्त्व दिया जाता था और हिन्दी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की उपेक्षा की गई थी। 10. दोषपूर्ण पाठ्यक्रम-पाठ्यक्रम में धार्मिकता की प्रधानता और वैधानिकता का अभाव था। इस कारण असन्तुलित पाठ्यक्रम द्वारा बालकों को शिक्षा दी जाती थी। निष्कर्ष–उपर्युक्त विवेचन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि मध्यकालीन शिक्षा सामाजिक जीवन की वास्तविकताओं के अनुकूल नहीं थी। धर्म प्रधान शिक्षा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र का समुचित विकास करने में सक्षम नहीं थी। डॉ० युसूफ हुसैन ने ठीक ही लिखा है-“मध्यकालीन शिक्षा प्रणाली का मुख्य दोष यह था कि उसमें छात्रों के परिशुद्ध निरीक्षण तथा व्यावहारिक निर्णय प्रदान करने की क्षमता नहीं थी। यह बड़ी असभ्य, निर्जीव और पुस्तकीय थी।”
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