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महादेवी वर्मा पथिक को क्या प्रेरणा दे रही हैं और क्यों? ‘जाग तुझको दूर जाना’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

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‘जाग तुझको दूर जाना है’ शीर्षक कविता हिंदी की सुप्रसिद्ध छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा लिखित है। यह कविता एक प्रेरणा-गीत है। इसमें कवयित्री ने मनुष्य को जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित किया है। वे कहती हैं कि जीवन-यात्रा कभी भी सहज नहीं होती। हमारे जीवन में अनेक बाधाएँ, संघर्ष व असमर्थताएँ आती रहती हैं। हमें इनका सामना करते हुए आगे बढ़ना है। इन कठिनाइयों से निराश होकर बैठ जाना कर्महीनता होगी।

कविता के प्रथम चरण में महादेवी वर्मा पथिक के आलस्य की ओर संकेत करती हैं। वे कहती हैं कि पथिक की सदा सचेत रहने वाली आँखों में आज आलस्य क्यों भरा है? आज वेशभूषा भी अस्त-व्यस्त क्यों है? क्या तुझे नहीं पता कि तुझे एक लंबी यात्रा तय करनी है, क्योंकि तेरा लक्ष्य अभी बहुत दूर है। अपनी मंज़िल की ओर बढ़ते हुए चाहे कितनी ही बाधाओं का सामना क्यों न करना पड़े, चाहे अडिग रहने वाला हिमालय डोल उठे या सदा शांत रहने वाला अलसाया आकाश प्रलय के आँसू बरसाए अर्थात् भीषण वर्षा करे, चाहे प्रकाश कहीं लेशमात्र न रहे, चाहे चारों ओर घना अंधकार छा जाए या बिजली की भयंकर चमक के साथ तूफान तुझ पर टूट पड़े, पर तुझे निरंतर आगे बढ़ते हुए विनाश और विध्वंस के बीच नव-निर्माण के चिह्न छोड़ते जाना है। इसलिए तुझे आलस्य का त्याग करना होगा, क्योंकि तेरा लक्ष्य बहुत दूर है। अत: तू जाग जा। महादेवी वर्मा सांसारिक आकर्षणों का संदर्भ उठाती हैं।

ये सांसारिक बंधन बहुत आकर्षक लगते हैं, परंतु ये मोम की भाँति हैं जो अत्यंत कोमल तथा बलहीन हैं। हे पथिक (साधक) तुम्हें इन बंधनों को तोड़कर अपने लक्ष्य की ओर अनवरत बढ़ना है। क्या तुझे तितलियों के रंगीन पंखों की तरह सांसारिक सौंदर्य मुग्ध तो नहीं कर लेंगे? तुम्हें भौरों के मधुर गुंजन की तरह सांसारिक जनों की मीठी-मीठी बातों से भ्रमित भी नहीं होना है, तुम्हें ताजे गीले और सुंदर फूलों की तरह सुंदर आँखों में आँसू देखकर द्रवित नहीं होना है, अपितु इन सब का मोह त्याग कर अपने लक्ष्य तक बढ़ना है। हे पथिक ! कहीं ऐसा न हो कि तू अपनी ही छाया से भ्रमित हो जाए। तुझे जागना होगा क्योंकि तुझे अभी बहुत दूर जाना है।

कवयित्री कहती हैं कि तुमने अपना वज्र जैसा कठोर हृदय आँसुओं के कण में धोकर क्यों गलाया, तूने जीवन रूपी अमृत किसे दे दिया और दो घुट मदिरा माँग लाया। आज आँधी सो गई क्या तू चंदन की बात का सहारा लेगा? क्या विश्व का अभिशाप चिर नींद बनकर तेरे पास आया है? हे पथिक ! तू अमरता का पुत्र है अर्थात् जीवात्मा परमात्मा का अंश होने के कारण अमरता का उत्तराधिकारी है। तू मृत्यु को क्यों अपने हृदय में बसाना चाहता है। तुझे तो अमरत्व तक पहुँचने के लिए प्रयास करने होंगे।

महादेवी मनुष्य को समझाना चाहती हैं कि जब हृदय में आग होगी तभी आँखों से करुणा के आँसू बहेंगे। जीवन में हार से कभी न घबराओ क्योंकि वह जीत की सीढ़ी होती है। पतंगे का जीवन क्षणिक है परंतु दीपक के चिह्न अमर होते हैं। जीवन रूपी शय्या भले ही अंगारों से सुसज्जित हो पर हमें उस पर कोमल कलियों को सजाने के प्रयास करने होंगे। अतः जाग्रत होने और आगे बढ़ने की आवश्यकता है।

इस प्रकार कवयित्री ने मनुष्य को जीवन का मूल रहस्य समझाते हुए उसे जीवन रूपी पथ पर निर्भीक होकर अग्रसर होने की प्रेरणा दी है।



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