1.

महिला उद्यमिता की परिभाषा देते हुए भारत में इसके वर्तमान स्वरूप का उल्लेख कीजिए।

Answer»

अक्षर महिला उद्यमी वह स्त्री है जो एक व्यावसायिक या औद्योगिक इकाई का संगठनसंचालन करती है और उसकी उत्पादन-क्षमता को बढ़ाने का प्रयास करती है। दूसरे शब्दों में, महिला उद्यमिता से आशय किसी महिला की उस क्षमता से है, जिसका उपयोग करके वह जोखिम उठाकर किसी व्यावसायिक अथवा औद्योगिक इकाई को संगठित करती है तथा उसकी उत्पादनक्षमता बढ़ाने का भरपूर प्रयास करती है।”
वास्तव में, महिला उद्यमिता वह महिला व्यवसायी है जो व्यवसाय के संगठन व संचालन में लगकर जोखिम उठाने के कार्य करती है। भारत में महिला उद्यमिता से आशय किसी नये उद्योग के संगठन और संचालन से लगाया जाता है।

महिला उद्यमिता का वर्तमान स्वरूप

वर्तमान युग में नारी की स्थिति में महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ है। शिक्षा-प्रसार के लिए लड़कियों की शिक्षा को अनिवार्य बनाया गया और हाईस्कूल तक की शिक्षा को नि:शुल्क रखा गया। बालिकाओं के अनेक विद्यालय खोले गये। सह-शिक्षा का भी खूब चलन हुआ। स्त्रियाँ सार्वजनिक चुनावों में निर्वाचित होकर एम० एल० ए०, एम० पी० तथा मन्त्री और यहाँ तक कि प्रधानमन्त्री भी होने लगी हैं। उन्हें पिता की सम्पत्ति में भाइयों के बराबर अधिकार प्राप्त करने की कानूनी छूट मिली है। पति की क्रूरता के विरोध में या मनोमालिन्य हो जाने पर तलाक प्राप्त करने का भी वैधानिक अधिकार उन्हें प्रदान किया गया है। विधवा-विवाह की पूरी छूट हो गयी है; हालाँकि व्यवहार में अभी इनका चलन कम है।

उन्हें कानून के द्वारा सभी अधिकार पुरुषों के बराबर प्राप्त हो गये हैं। आज स्त्रियाँ सभी सेवाओं में जिम्मेदारी के पदों पर कार्य करते हुए देखी जा सकती हैं; जैसे-डॉक्टर, इन्जीनियर, वकील, शिक्षिका, लिपिक, अफसर इत्यादि। बाल-विवाहों पर कठोर प्रतिबन्ध लग गया है। पर्दा-प्रथा काफी हद तक समाप्त हो गयी है। युवक समारोहों, क्रीड़ा समारोहों और राष्ट्रीय खेलों में उनका सहभाग बढ़ा है। वे पढ़ने, नौकरी करने और टीमों के रूप में विदेश भी जाने लगी हैं। अन्तर्जातीय विवाह बढ़े हैं। हिन्दुओं में बहुपत्नी-प्रथा पर रोक लग गयी है। अन्तर्साम्प्रदायिक विवाह भी होने लगे हैं। स्त्रियों को अपने जीवन का रूप निर्धारित करने की अधिक स्वतन्त्रता मिली है।
उपर्युक्त सुधार नगरों में अधिक मात्रा में हुए हैं। गाँवों में अब भी अशिक्षा, अन्धविश्वास, रूढ़िवादिता, पर्दा-प्रथा, परम्पराओं, दरिद्रता व पिछड़ेपन का ही बोलबाला है। इन सुधारों का गाँवों की स्त्रियों की परिस्थितियों पर बहुत कम प्रभाव पड़ा है।



Discussion

No Comment Found