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मल्लिका ‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक की एक महत्त्वपूर्ण पात्र है, जिसके चरित्र ने सर्वाधिक प्रभावित किया है। उसकी चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

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मल्लिका ‘आषाढ़ का एक दिन’ शीर्षक नाटक की नायिका है। वह कालिदास की प्रेमिका है जो प्रेम प्रसंग के दुखांत को अकेले ही भोगती है। उसके चरित्र में प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. स्वतंत्र चिंतन- मल्लिका के चरित्र में सबसे बड़ी विशेषता स्वतंत्र चिंतन की है। वह कालिदास से प्रेम करती है और अपनी माँ से स्वतंत्र रूप में अपने प्रेम-प्रसंग की पैरवी करती है। वह कहती है कि उसने कालिदास के रूप में एक भावना का वरण किया है और यह वरण उसकी स्वतंत्रता को पुष्ट करता है। वह लोक-लाज की तनिक भी परवाह नहीं करती। वह कहती है- “क्या कहते हैं वे? क्या अधिकार है उन्हें कुछ कहने का? मल्लिका का जीवन उसकी अपनी संपत्ति है।” उसका विश्वास व्यक्तिगत स्वतंत्रता में है।

2. प्रेम-भावना- मल्लिका कालिदास की प्रेमिका है। उसका प्रेम अत्यंत उज्ज्वल है। उसमें स्वार्थ भावना का लेश मात्र भी अंश नहीं है। यही कारण है कि वह उसे उज्जयिनी चले जाने की प्रेरणा देती है। कोई स्वार्थी लड़की होती तो अपने जीवन-आधार को अपने से इस प्रकार अलग होने के लिए विवश न करती।

वह अपनी माँ से अपने पवित्र प्रेम की चर्चा करते हुए कहती है

“………. मैं जानती हूँ कि माँ की अपवाद होता है। तुम्हारे दुःख को भी जानती हूँ, फिर भी मुझे अपराध का अनुभव नहीं होता। मैंने भावना में एक भावना का वरण किया है। मेरे लिए वह संबंध और संबंधों से बड़ा है। मैं वास्तव में अपनी भावना से ही प्रेम करती हूँ, जो पवित्र है, कोमल है, अनश्वर है……….।”

जब मल्लिका को पता चलता है कि कालिदास ने राजकुमारी प्रियंगुमंजरी से विवाह कर लिया है तो भी वह चिंतित व दुखी नहीं होती। वह तो कालिदास से पवित्र प्रेम करती है। वह शांत बनी रहती है, कहती है “……….. तो इसमें दोष क्या है? ………. वे असाधारण हैं। उन्हें जीवन में असाधारण का ही संसर्ग चाहिए था……….. इसके विपरीत मुझे अपने से ग्लानि होती है, यह कि, ऐसे मैं उनकी प्रगति के मार्ग में बाधा भी बन सकती थी।”

3. स्वाभिमान- मल्लिका को नाटक में एक स्वाभिमानी युवती के रूप में दिखाया है। वह अंत तक आत्म-सम्मान को बनाए रखने का भरसक प्रयास करती है।

वह बीमार माँ के लिए विलोम द्वारा मधु भिजवाने की बात सुनकर उसे मना कर देती है, यह कह कर कि उसके घर पर्याप्त मात्रा में मधु है। वह प्रियंगुमंजरी द्वारा रखे गए घर के परिसंस्कार के प्रस्ताव को भी ठुकरा देती है। कहती है “…………. आप बहुत उदार हैं। परंतु हमें ऐसे घर में रहने का ही अभ्यास है, इसलिए हमें असुविधा नहीं होती।”

जब प्रियंगुमंजरी उसका विवाह करवाने का प्रस्ताव रखती है तो उसके अहम् को चोट लगती है। वह आत्मसम्मान की रक्षा करते हुए कह उठती है कि “………… आप इस विषय में चर्चा न ही करें तो अच्छा होगा।” जाते-जाते प्रियंगुमंजरी उसे कुछ वस्त्र और स्वर्ण-मुद्राएँ भिजवाती हैं, जिन्हें मल्लिका आदरपूर्वक लौटा देती है।

4. ममता- नाटककार ने मल्लिका में ममता व करुणा के गुण दिखाए हैं। उसकी यह करुणा और ममता उस संदर्भ में देखी जाती है जब कालिदास घायल हिरण के बच्चे को लाकर मल्लिका से कहता है कि वह उसे वहाँ इसलिए लाया है कि वहाँ उसे माँ का-सा स्नेह मिलेगा

“मैंने कहा तुम्हें वहाँ ले चलता हूँ, जहाँ तुम्हें अपनी माँ की सी आँखें और उसका सा ही स्नेह मिलेगा ……….”

नाटक के अंत में भी उसका यही वात्सल्य का रूप दोबारा देखने को मिलता है। अपने तीव्र अंतर्वंद्व के क्षणों में भी वह अपनी बच्ची को नहीं भूलती, उसे बार-बार देखने, चुप कराने अंदर जाती है और अंत में कालिदास के पीछे भागती-भागती भी उसी बच्ची के कारण रुक जाती है और उसे अपनी छाती से चिपका लेती है।

5. कर्तव्य-बोध- मल्लिका में अपने कर्तव्य के प्रति चेतना पाई जाती है। कालिदास को उज्जयिनी जाने की प्रेरणा देते समय इसी कर्तव्य को निभाती है और कहती है-

“मैं जानती हूँ कि तुम्हारे चले जाने पर मेरे अंतर को एक रिक्तता छा लेगी, और बाहर भी संभवतः बहुत सूना प्रतीत होगा। फिर भी मैं अपने साथ छल नहीं कर रही। मैं हृदय से कहती हूँ तुम्हें जाना चाहिए ……… यहाँ ग्राम प्रांतर में रह कर तुम्हारी प्रतिभा को विकसित होने का अवकाश कहाँ मिलेगा ……….. तुम्हें आज नई भूमि की आवश्यकता है, जो तुम्हारे व्यक्तित्व को अधिक पूर्ण बना सके ………..” इस प्रकार वह अपने कर्तव्य-बोध के मार्ग में अंधे प्रेम को बाधा नहीं बनने देती। दूसरी ओर अभावग्रस्तता के प्रकोप में विलोम की शरण को स्वीकार कर लेती है और परिवार के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह करती है।

इस प्रकार नाटककार ने मल्लिका के चरित्र को एक सशक्त रूप में प्रस्तुत किया है जो अंत तक हार नहीं मानती।



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