1.

मंत्रिपरिषद् तथा राष्ट्रपति के सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।

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भारत में कार्यपालिका का अध्यक्ष राष्ट्रपति होता है। सैद्धान्तिक दृष्टि से मंत्रिपरिषद् का गठन उसे परामर्श देने के लिए किया जाता है; किन्तु वास्तविक स्थिति इसके विपरीत है। मंत्रिपरिषद् के निर्णय एवं परामर्श राष्ट्रपति को मानने पड़ते हैं। यद्यपि राष्ट्रपति इनके सम्बन्ध में अपनी व्यक्तिगत असहमति प्रकट कर सकता है; किन्तु वह मंत्रिपरिषद् के निर्णयों को मानने के लिए बाध्य होता है। भारतीय संविधान में किए गए 42वें तथा 44वें संशोधन के अनुसार, राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् का परामर्श कानूनी दृष्टिकोण से मानने के लिए बाध्य है। वह केवल मंत्रिमण्डल से पुनर्विचार के लिए आग्रह ही कर सकता है। वह मंत्रिपरिषद् की नीतियों को किस रूप में प्रभावित करता है, यह उसके व्यक्तित्व पर निर्भर है। मंत्रिपरिषद् में लिए गए समस्त निर्णयों से राष्ट्रपति को अवगत कराया जाता है तथा राष्ट्रपति मंत्रिमण्डल से किसी भी प्रकार की सूचना माँग सकता है। राष्ट्रपति ही मंत्रिमण्डल का गठन करता है। तथा उसे शपथ ग्रहण कराता है। प्रधानमंत्री के परामर्श पर वह किसी भी मंत्री को पदच्युत कर सकता है।



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