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Mumbai shahar ki atmakatha |
Answer» मुंबई शहर की आत्मकथामैं मुंबई बोल रही हूं। भारत में लोग मुझे सपनों का शहर बोलते हैं क्योंकि मेरे पास आकर लोगों के सपने पूरे होते हैं। मेरे कई नाम हैं, कोई मुझे मायानगरी बोलता है तो कोई मुझे बॉलीवुड बोलता है, लेकिन मैं मुंबई के नाम से ही आधिकारिक रूप से जानी जाती हूँ। मेरा नाम मुंबई भी मुंबा देवी की देन है, जो माँ का रूप हैं, और मैं भी अपने अंदर बसने वाले लोगों के लिये माँ समान ही हूँ। मैं अपने अंदर जनसंख्या का विशाल जनसागर समेटे हुए हूं। देश के कोने-कोने से सैकड़ों लोग नित्य प्रतिदिन मेरे यहाँ अपने सपनों को पूरा करने या रोजगार की तलाश में आते हैं और मैं किसी को भी निराश नहीं करती। जिसके अंदर कर्मठता है, जिसके अंदर कुछ करने की लगन है वह मेरे पास कभी भी निराश होकर नहीं जाता। मैं सबकी इच्छा आकांक्षाओं को पूरा करती हूं। हिंदी फिल्मों ने मेरे नाम को और ज्यादा मशहूर किया है। हिंदी फिल्में मेरे लिए मेरी संतान की तरह है, क्योंकि संतान ही मां-बाप का नाम रोशन करते हैं और हिंदी फिल्म उद्योग ने मेरा नाम रोशन ही किया है। मेरी लोकप्रियता में सबसे अधिक योगदान हिंदी फिल्मों का रहा है, क्योंकि मैं हिंदी फिल्मों का गढ़ हूं। मैं भारत का सबसे बड़ा नगर हूं। मेरी आबादी भारत के सारे नगरों की आबादी में सबसे अधिक है। भारत के कोने-कोने से लोगों ने आकर मुझे आबाद किया है। मैं स्वयं में ‘एक छोटा सा भारत’ अर्थात ‘मिनी इंडिया’ हूँ। मैं भारत का इकलौता ऐसा शहर हूँ जहाँ भारत के हर क्षेत्र के लोग समान रूप से मिल जायेंगे। मैं महाराष्ट्र की राजधानी हूँ तो भारत की आर्थिक राजधानी भी हूँ। मैं भारत में सबसे ज्यादा कर भरने वाला महानगर भी हूँ, ये मेरी क्षमता को सिद्ध करता है। मैं अपने अंदर एक सुनहरा इतिहास समेटे हुए हूं और मेरे अंदर कई ऐतिहासिक धरोहर हैं। गेटवे ऑफ इंडिया मेरी पहचान है, मेरी शान है। इसके अलावा एलीफेंटा की गुफाएं, प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम, नेशनल पब्लिक लाइब्रेरी, जहांगीर आर्ट गैलरी, हैंगिग गार्डन, तारापोरवाला मछली घर, रानी बाग चिड़ियाघर, जुहू चौपाटी, गिरगांव चौपाटी, नेशनल पार्क, एस्सेल वर्ल्ड आदि यह सब मेरे टूरिस्ट प्लेस जहां पर मुंबईकर और बाहर से आने वाले लोग घूमते हैं और खुश होते हैं। उन लोगों को खुश देख कर मुझे भी खुशी होती है कि मैं इन लोगों को चंद लम्हे खुशी के दे पाई। मैं सभी धर्म के लोगों के लिए हूँ, मेरे पास सिद्धिनायक मंदिर, मुंबा देवी मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर, बाबुलनाथ मंदिर हैं, तो मेरे पास हाजी अली दरगाह, माहिम दरगाह और माउंटमेरी चर्च भी हैं। मेरी लोकल ट्रेन मेरी जीवन रेखा है। बल्कि मेरे लिए रक्त की धमनियों के समान है, क्योंकि उसके बिना मेरी अंदर का जीवन थम सा जाता है। मेरे अंदर के शरीर का विकास भी हो रहा है और अब मुझे मेट्रो के रूप में नई धमनिया भी मिलने लगी है। आवागमन के साधन मेरे अंदर बेहद सुलभ हैं और सब नियम अनुशासन से चलते हैं इसका मुझे गर्व है। वह चाहे बेस्ट की बसें हो या फिर ऑटो या टैक्सी। अन्य महानगरों की अपेक्षा मेरे मुंबईकरों में अधिक अनुशासन है ये बात मेरे लिये गर्व का विषय है। मुझे तब अफसोस होता है जब मैं देखती हूँ कि मेरे अंदर हरियाली कम है और दिन-प्रतिदिन हरियाली कम ही होती जा रही है। इसलिए मैं चिंतित रहती हूं कि मेरी अंदर स्वच्छ हवा का अभाव होता जा रहा है। मैं अपने मुंबईकरों से जोकि मेरे संतान के समान है, सब से अनुरोध करती हो कि मेरे अंदर की हरियाली को नष्ट न करें और इसे बढ़ाएं क्योंकि इसी हरियाली से मेरी सांसे चलती हैं, यही उन सब की सांसे हैं जो मेरे अंदर रहते हैं। मेरे अंदर दो तरह के जीवन हैं, एक तरफ सुख-सुविधाओं से युक्त ऊँची बिल्डिंगें और उसमें रहने वाले लोग हैं, तो दूसरी तरफ छोटी-छोटी झोपड़पट्टी और अभावों में रहने वाले लोग। लेकिन मुझे दोनों तरह के लोग प्रिये हैं, सब मेरी ही संताने हैं। सब मेरे बारे में कहते हैं कि मैं कभी ना सोने वाला शहर हूं और यह बात पूरी सच्ची है। मेरे अंदर चहल-पहल हर वक्त रहती है यह मेरे अंदर रहने वाले लोगों की जिंदादिली का सबूत है। मैं जिंदादिल लोगों का शहर हूं। मैं गणपति उत्सव का शहर हूं। मैं दही-हांडी का शहर हूं। मैं गरबा-डांडिया का शहर हूं। मैं हर त्यौहार का शहर हूं। मैं संस्कृतियों का मेल हूं। मैं अनेकता में एकता हूं। मैं भाईचारे की पहचान हूँ। मैं ही मुंबई हूं। अब मैं बढ़ती जनसंख्या से त्रस्त हो गई हूँ। अब मैं और ज्यादा जनसंख्या का बोझ उठाने में सक्षम नहीं हूं। इसलिए मैं सभी भारत वासियों से अनुरोध करती हूं कि अब मेरे से अपेक्षाएं करना कम कर दें। मेरे बोझ को न बढ़ायें। मैं मुंबई हूँ, मै ही मुंबई हूँ, सुख के चमन की मुंबई। भारत की शान मुंबई। |
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