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Answer» मनोरंजन के साथ संस्कार भारतीय नाट्यकला की विशेषता रही है । - नाटक का संचालन करनेवाले सूत्रधार और समझ के साथ मनोरंजन करवाते विदूषक की जोड़ी के साथ नाटक भारत की एक महत्त्वपूर्ण पहचान है ।
- भरतमुनि द्वारा रचित ‘नाट्यशास्त्र’ ने नाट्यकला को प्रचलित किया है ।
- नाट्यकला यह नाट्यलेखन और मंचन द्वारा रंगमंच पर दृश्य-श्राव्य और अभिनय के त्रिवेणी संगम के साथ बालवृद्धों का मनोरंजन और लोकशिक्षण करती भारत की प्राचीन कला है ।
- इस कला में सभी कलाओं का समन्वय होने का वर्णन भरतमुनि ने किया – ‘ऐसा कोई शास्त्र नहीं, ऐसी कोई शिल्प नहीं, ऐसी कोई विद्या नहीं, ऐसा कोई कर्म नहीं, जो नाट्य कला में नहीं हो ।’
- भरत मुनि रचित प्रथम नाट्य कथानक ‘देवासुर संग्राम’ था ।
- संस्कृत साहित्य में महाकवि भास ने महाभारत आधारित ‘कर्णभार’, ‘ऊरूभंग’ और ‘दूतवाक्यम्’ जैसे नाटकों की विरासत हमें दी है ।
- जबकि महाकवि कालिदास के ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’, ‘विक्रमोवर्शीयम्’ तथा ‘मालविकाग्निमित्रम्’ नाटक सबसे प्रसिद्ध रचनाएँ है ।
- प्राचीन समय में नाट्यकला क्षेत्र में अनेक नाट्यकार हुए, जिन्होंने संस्कृत नाट्यकला को समृद्ध बनायी है ।
- गुजराती नाट्यकला में जयशंकर तक के नाम मुख्य माने जाते है ।
- अमृत नायक, बापुलाल नायक, प्राणसुख नायक, दिना पाठक, जशवंत ठाकर, उपेन्द्र त्रिवेदी, प्रवीण जोशी, सरिता जोशी, दीपक घीवाला आदि को महत्त्वपूर्ण नाट्यकार माने गये है ।
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