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निबन्ध लिखें :पर्यटन एक बड़ा उद्योग बन गया है जिसके कारण सांस्कृतिक धरोहरें नष्ट हो रही हैं। इसके बचाव के लिए सुझाव दीजिए ताकि यह उद्योग फलता फूलता रहे। इस विषय के अन्तर्गत विस्तार से लिखें।

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मानव जीवन दिन प्रतिदिन जटिल से जटिलतर होता जा रहा है। आज के वैज्ञानिक युग में हम स्वयं एक निर्जीव मशीन बनते जा रहे हैं। इकरसता के इस जीवन को तोड़ने के लिए कई प्रकार के मनोरंजन के साधन सुझाए जाते हैं। घर-परिवार की आकांक्षा और अपनी इकरसता को दूर करने के लिए पर्यटन को एक उत्तम व कारगर साधन माना जाता है।

पर्यटन से जहाँ हम अपने जीवन की इकरसता से पार पाते हैं वहीं जानकारियों का एक महत्त्वपूर्ण खज़ाना भी पा जाते हैं। हम अपने इतिहास, धर्म, रीति-रिवाज़, रहन-सहन आदि से जुड़े विभिन्न ज्ञान के धरातलों पर खड़े होकर अपना अतीत तथा वर्तमान समझने में सक्षम होते हैं। हमारी विभिन्न जिज्ञासाओं को उत्तर भी इसी पर्यटन से प्राप्त होता है।

आजकल पर्यटन एक उद्योग बनता जा रहा है। देश-देशांतर के स्मारकों, स्थलों आदि को आधार बनाकर देश-विदेश में भ्रमण को बढ़ावा मिलने लगा है। सांस्कृतिक धरोहरों को केंद्र में रखकर व्यवसाय होने लगा है। इससे सांस्कृतिक धरोहर तथा स्मारक क्षतिग्रस्त होने लगे हैं।

आज की भागम-भाग भरी दिनचर्या हमें पर्यटन के लिए भी प्रेरित करती है। मानव अपने परिवेश से हटकर दूर-दराज़ के सौंदर्य, पर्यावरण तथा संस्कृति का ज्ञान प्राप्त करने के लिए उत्सुक रहा करता है। विभिन्न जीवन-पद्धतियों के अध्ययन में, विभिन्न देशों के भ्रमण में, नाना प्रकार के प्राकृतिक दृश्यों को देखने में, नई-नई जीवन-शैलियाँ देखने में तथा ऐतिहासिक सांस्कृतिक-धार्मिक स्थलों को देखने में उसे विशेष उत्साह, आनंद तथा ज्ञान की प्राप्ति होती है। यद्यपि किसी स्थान की जानकारी दृश्य माध्यमों से भी प्राप्त की जा सकती है, पर साक्षात् दर्शन का तो आनंद ही अनूठा है। केवल चित्र देखकर हम हिमालय की हिममंडित शिखरों के सौंदर्य से अभिभूत नहीं हो सकते। यह अनुभव तो इन स्थानों के भ्रमण या दर्शन द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। पर्यटन व्यक्ति के विचारों को उदार, दृष्टिकोण को विस्तृत तथा हृदय को विशाल बनाता है। किसी क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों की भाषा धर्म, संस्कृति, जीवन-दर्शन तथा आचार-विचार में कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? कौन-कौन-सी अच्छाइयाँ हैं- यह केवल देशाटन द्वारा ही जाना जा सकता है।

पर्यटन या देशाटन द्वारा ज्ञान-प्राप्ति तो होती ही है, इसके अतिरिक्त मनोरंजन तथा स्वास्थ्य-लाभ भी मिलता है। यही कारण है कि विशेष दशाओं में चिकित्सक रोगियों को पर्वतीय स्थानों पर ले जाने का परामर्श देते हैं। देशाटन से जलवायु परिवर्तन हो जाता है जिससे शरीर में नए उत्साह तथा स्फूर्ति का संचार होता है।

प्राचीन काल में पर्यटन या देशाटन के लिए इतनी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थीं जितनी की आज हैं। आजकल एक स्थान से दूसरे स्थान तक आना-जाना अत्यंत सुगम तथा सरल हो गया है। विभिन्न देशों की सरकारें पर्यटन या देशाटन को बढ़ाने के लिए पर्यटकों को अनेक प्रकार की सुविधाएँ तथा रियायतें देती हैं। विभिन्न देशों तथा स्थानों के संबंध में विस्तृत जानकारी भी पहले से उपलब्ध रहती है।

अतः यह स्पष्ट है कि देशाटन केवल राष्ट्रीय एकता दृढ़ करने में ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव, मैत्री तथा सहयोग बढ़ाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पर्यटन’ आजकल एक व्यवसाय के रूप में फल-फूल रहा है परन्तु इसके कुप्रभावों को देखने की भी आवश्यकता है। आज के पर्यटन व्यवसायी सांस्कृतिक स्मारकों की देखभाल की ओर तनिक भी ध्यान नहीं देते। वे अपने कारोबार की चकाचौंध बढ़ा रहे हैं। सांस्कृतिक धरोहरों को तरह-तरह से हानि पहुँचाई जा रही है। व्यक्ति, समाज तथा देश के स्तर पर इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। प्रदूषण तथा भू-दृश्य का विगड़ना सबसे बड़ा खतरा है। पर्यटक प्रायः इन पर्यटन स्थलों पर भरपूर गंदगी छोड़कर अपनी राह पकड़ लेते हैं। धरोहरों की दीवारों व स्तम्भों पर अपना नाम लिख देते हैं या गोद-गोदकर स्मारकों को क्षतिग्रस्त कर जाते हैं। अतः हमें प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि इन सांस्कृतिक धरोहरों को पर्यटन या व्यवसाय बनाने के साथ-साथ इनकी साज-संभाल की भी चिंता करेंगे।

अनुशासन का महत्त्व-



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