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निबन्ध लिखिये :बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है जो विनाश कर डालती है। इस विषय पर एक प्रस्ताव लिखिए।

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बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा।

भारतवर्ष पर प्रकृति देवी की सदैव कृपादृष्टि रही है। उसने अपने अनन्त वरदानों से भारत-भूमि को शस्य-श्यामला बनाये रखा है। फसलों और मानव की आवश्यकतानुसार जल की समय-समय पर वर्षा होती है, किन्तु कभी-कभी प्रकृति की दृष्टि टेढ़ी हो जाती है तब नाना प्रकार के उपद्रव प्रारम्भ हो जाते हैं। बाढ़ भी इसी प्रकार की एक आपदा है जो विनाश कर डालती है। कभी-कभी अत्यधिक वर्षा होने से, नदियों में अधिक पानी बढ़ जाने से बाँध टूट जाते हैं। इस स्थिति में पानी की गति इतनी बढ़ जाती है कि मनुष्यों को सँभलने का मौका भी नहीं मिल पाता। हजारों फुट चौड़ी दीवार के बराबर पानी की परत जब उमड़ कर चलती है तो गाँव के गाँव और नगर के नगर नष्ट हो जाते हैं। पानी की इस विनाश लीला को ही बाढ़ कहते हैं।

प्रत्येक कार्य के पीछे कोई न कोई कारण होता है। बाढ़ आने के पीछे भी ऐसे ही अनेक कारण हैं। वृक्षों की अन्धा-धुन्ध कटाई इसका एक कारण है। मनुष्य अपनी आर्थिक, सामाजिक एवं दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जंगल के जंगल साफ कर रहा है। परिणामस्वरूप प्रकृति का सन्तुलन बिगड़ रहा है। पेड़ पानी का सन्तुलन बनाये रखने और अपनी जड़ों से पृथ्वी के नीचे से पानी खींच कर सूखे की स्थिति में भी पृथ्वी को गीली रखने में योगदान देते हैं। इससे वर्षा सन्तुलित होती है तथा बाढ़ नहीं आती।।

इसका दूसरा कारण है कि बिजली उत्पन्न करने के लिए तथा जल भण्डारण हेतु बहती हुई नदियों पर बाँध बना दिये जाते हैं। ये बाँध धीरे-धीरे नदियों के जल के घर्षण से कमजोर हो जाते हैं तथा धीरे-धीरे टूट जाते हैं जिससे जलराशि तेजी से बहकर प्रलय का रूप धारण कर लेती है।

यज्ञ होमादि से पर्यावरण शुद्ध रहता है, परन्तु आज के भौतिकवादी युग में इनका महत्त्व नहीं रहा। धर्म के नाम पर लोगों की आस्था समाप्त हो गई है। यही कारण है कि पर्यावरण में असन्तुलन बढ़ने से बाढ़ जैसी आपदाओं में बढ़ोत्तरी हुई है।

जनसंख्या वृद्धि, बाढ़ के प्रकोप का एक अन्य प्रमुख कारण है। यदि भमि पर अत्यधिक दबाव पडता है तो प्राकतिक आपदाएँ जैसे बाढ़, भूकम्प, सुनामी आदि की सम्भावना बढ़ जाती है। मौसम चक्र के अनायास परिवर्तन भी बाढ़ को आमन्त्रित करते हैं। अतिवृष्टि से उथली नदियों का जल भी विशाल रूप धारण कर लेता है।

बाढ़ का प्रभाव अत्यन्त भयानक होता है। बाढ़ से फसलें नष्ट हो जाती हैं जिससे अकाल पड़ने की सम्भावना बढ़ जाती है। मनुष्यों द्वारा बनाये गये सुदृढ़ मकान आदि ध्वस्त हो जाते हैं। मनुष्य बेघर हो जाते हैं। पशु-पक्षी भी बेघर होकर इधर-उधर दौड़ते हुए अपने प्राण गँवा देते हैं। कुछ भूख के मारे तथा कुछ आधारहीनता के कारण अकालमृत्यु के ग्रास बन जाते हैं।

बाढ़ में जंगल, पहाड़, बस्तियाँ जल से भर जाती हैं। जीवजन्तु मरकर सड़ने लगते हैं। जल पूरी तरह प्रदूषित हो जाता है। सीलन व सड़न से जीवाणु उत्पन्न हो जाते हैं जिनसे अनेक प्रकार के रोग हो जाते हैं। चारों और महामारी फैल जाती है, अपार धन-जन की हानि होती है। बाढ़ में चीखते-चिल्लाते लोगों का करुण क्रन्दन सुनकर हृदय विदीर्ण होने लगता है। लोगों का आर्तनाद -बचाओबचाओ की ध्वनि बड़ा ही करुण दृश्य उत्पन्न करता है। जीवन की आशा छोड़कर मनुष्य यहाँ-वहाँ बहता जाता है और असहाय होकर अन्न-जल के अभाव में प्राण त्याग देता है।

वास्तव में बाढ़ प्रकृति की भयावह आपदा है। इससे बचने के लिए हमें हर सम्भव प्रयास करने चाहिए। सर्वप्रथम हमें पेड़ों की कटाई पर सख्ती से रोक लगानी चाहिए। सरकार ने भी इस ओर ध्यान दिया है। ‘चिपको’ आन्दोलन इसी प्रयास का परिणाम है। यज्ञ होम आदि के द्वारा वातावरण को प्रदूषण रहित बनाना चाहिए। नदियों तथा तालाबों पर अतिक्रमण नहीं करना चाहिए। जल के भण्डारण के लिए सुरक्षित प्रयास करने चाहिए। शहरों व नगरों के मकान नदियों के किनारों पर बहत ऊँचे होने चाहिए। साथ ही जल के निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। इन सावधानियों के चलते हम कुछ हद तक बाढ़ के प्रकोप से बच सकते हैं।



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