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निदर्शन या प्रतिदर्श अनुसंधान क्या है? प्रतिदर्श प्रणाली के गुण व दोष बताइए।

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निदर्शन याप्रतिदर्श अनुसंधान

संगणना के विपरीत, इस प्रणाली के अंतर्गत समग्र में से कुछ इकाइयों को छाँटकर (दूसरे शब्दों में समस्त समूह के एक अंग का) उनका विधिवत् अध्ययन किया जाता है; उदाहरण के लिए यदि किसी एक कॉलेज के विद्यार्थियों के स्वास्थ्य से संबंधित सर्वेक्षण करना है तो कॉलेज के प्रत्येक विद्यार्थी का अध्ययन न करके, हम कुछ विद्यार्थियों को लेकर ही उनका अध्ययन कर सकते हैं। इससे जो निष्कर्ष निकलेंगे, वे समस्त समग्र पर लागू होंगे। प्रतिदर्श प्रणाली का आधार यह है कि छाँटे हुए प्रतिदर्श (Sample) समग्र का सदैव प्रतिनिधित्व करते हैं अर्थात् उनमें वही विशेषताएँ होती हैं, जो सम्मिलित रूप से सम्पूर्ण समग्र में देखने को मिलती हैं।

वास्तव में, प्रतिदर्श प्रणाली को संगणना प्रणाली से अधिक अच्छा समझा जाता है; क्योंकि संगणना प्रणाली की समस्त सीमाओं को प्रतिदर्श प्रणाली द्वारा दूर किया जाता है। प्रतिदर्श प्रणाली का प्रयोग कहीं-कहीं तो आवश्यक हो जाता है; क्योंकि कुछ ऐसी समस्याएँ व समग्र होते हैं, जहाँ संगणना प्रणाली का प्रयोग किया ही नहीं जा सकता।

प्रतिदर्श अनुसंधान के लिए उपयुक्त दशाएँ – निम्नलिखित दशाओं में प्रतिदर्श प्रणाली का प्रयोग अत्यंत आवश्यक है।

1. जब समग्र अनंत हो – जब समग्र अनंत अथवा कभी न समाप्त होने वाला हो तो संगणना अनुसंधान संभव नहीं हो पाता जैसे नवजात शिशुओं की किसी निश्चित समय पर गणना करना संभव नहीं है। इस प्रकार की समस्याओं में प्रतिदर्श प्रणाली ही उपयुक्त होती है; क्योंकि इसमें समय, धन व परिश्रम की बचत होती है।

2. जब समग्र नाशवान् प्रकृति का हो – कुछ समस्याएँ ऐसी होती हैं, जिनका सर्वेक्षण संगणना प्रणाली द्वारा करने पर समस्या या समग्र के ही नष्ट हो जाने की संभावना हो जाती है; उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति के शरीर में पाए जाने वाले रक्त का परीक्षण संगणना प्रणाली के आधार पर नहीं किया जा सकता। ऐसी समस्याओं में प्रतिदर्श प्रणाली का प्रयोग करना ही उचित होता है।

3. जब समग्र विस्तृत हो – विस्तृत समग्र के लिए प्रतिदर्श प्रणाली ही उपयुक्त होती है; क्योंकि इससे अनुसंधान कार्य कम समय, कम धन वे कम श्रम से ही संपन्न किया जा सकता है।

4. जब संगणना प्रणाली अव्यावहारिक हो – कुछ समस्याओं में प्रतिदर्श प्रणाली को ही प्रयोग किया जाता है; क्योंकि संगणना द्वारा उन समस्याओं का अध्ययन अव्यावहारिक होता है; उदाहरण के लिए भूगर्भ में छिपे हुए खनिज पदार्थों का अनुमान सदैव प्रतिदर्श प्रणाली के आधार पर ही किया जाता है।

5. जब धन, समय या परिश्रम की बचत करनी हो – प्रतिदर्श प्रणाली एक मितव्ययी प्रणाली है। अतः जब धन, समय या परिश्रम की बचत करनी हो तो इसी प्रणाली का उपयोग किया जाता है।
6. जब नियमों का प्रतिपादन करना हो – जब व्यापक दृष्टि से नियमों का प्रतिपादन करना हो तो इस प्रणाली का प्रयोग ही श्रेयस्कर होता है।

7. जब समग्र की प्रकृति परिवर्तनशील हो – यदि अनुसंधान से संबंधित वस्तुएँ शीघ्र परिवर्तनशील हैं तो प्रतिदर्श प्रणाली ही अपनाई जाती है।

प्रतिदर्श प्रणाली के गुण
⦁    यह रीति मितव्ययी है। इसमें समय, धन तथा श्रम सभी की बचत होती है।
⦁    शीघ्रता से बदलती हुई आर्थिक व सामाजिक समस्याओं के अध्ययन में यह प्रणाली अधिक उपयोगी है।
⦁    ऐसे सामाजिक अनुसंधानों में, जहाँ विस्तृत तथा निरन्तर अन्वेषण की आवश्यकता होती है, प्रतिदर्श अनुसंधान ही सर्वश्रेष्ठ प्रणाली है।
⦁    इस प्रणाली द्वारा गहन अनुसंधान संभव है।
⦁    इस प्रणाली के आधार पर निकाले गए निष्कर्ष पूर्णत: विश्वसनीय तथा शुद्ध होते हैं।
⦁    प्रतिदर्श अनुसंधान कार्य का संगठन व प्रशासन करना अधिक सुविधाजनक होता है।
⦁    कुछ विशेष दशाओं में प्रतिदर्श अनुसंधान ही एकमात्र उपयुक्त प्रणाली होती है।
प्रतिदर्श प्रणाली के दोष
⦁    यदि प्रतिदर्श की इकाइयों का चुनाव निष्पक्ष रूप से नहीं किया गया तो निष्कर्ष भ्रामक हो सकते हैं।
⦁    प्रतिनिधि प्रतिदर्श बनाना कठिन होता है।
⦁    प्रतिदर्श अनुसंधान प्रणाली के प्रयोग के लिए विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता होती है, जिसके अभाव में अनुसंधानकर्ता भयंकर त्रुटियाँ कर सकता है।
⦁    कभी-कभी समग्र इतना छोटा होता है कि उनमें से प्रतिदर्श बनाना संभव ही नहीं होता।
⦁    विजातीय और अस्थिर समग्र में प्रतिदर्श प्रणाली अधिक उपयुक्त नहीं होती है।



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